अल्पसंख्यकों की पहचान | 18 Dec 2019
प्रीलिम्स के लिये:
अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रावधान
मेन्स के लिये:
अल्पसंख्यकों की पहचान से संबंधित वर्तमान मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य के आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान संबंधी याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका के बारे में:
- याचिकाकर्त्ता ने केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(C) के अंतर्गत 23 अक्तूबर, 1993 को जारी एक अधिसूचना के विरोध में याचिका दायर की थी।
- इस अधिसूचना में केंद्र सरकार ने मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया था। याचिकाकर्त्ता ने कहा कि सरकार ने यह अधिसूचना अल्पसंख्यक की परिभाषा तय किये बिना तथा इस संबंध में कोई भी निर्देश दिये बिना जारी की थी।
- याचिकाकर्त्ता ने टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन मामले का जिक्र करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक का दर्जा निर्धारित करने वाली इकाई में राज्य को भी आधार बनाया गया है।
टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002):
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग की पहचान हेतु दो आधार बताए गए थे- राष्ट्रीय व प्रांतीय
- याचिकाकर्त्ता ने कहा कि हिंदू आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं, अतः उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान किया जाना चाहिये।
सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार भाषा को राज्य आधारित माना जाता है परंतु धर्म को अखिल भारतीय स्तर पर माना जाना चाहिये क्योंकि धर्म को राज्य की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता।
- सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता से पूछा कि मुस्लिमों को कश्मीर में बहुसंख्यक तथा अन्य स्थानों पर अल्पसंख्यक मानने में क्या समस्या है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का पक्ष:
- यह याचिका नवंबर 2017 को दायर की गई थी तथा सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करने के लिये कहा था।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने कहा कि कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है और केवल केंद्र ही ऐसा कर सकता है।
- याचिकाकर्त्ता ने यह तर्क दिया कि लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं तथा असम, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार में इनकी काफी आबादी है फिर भी वे अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ उठा रहे हैं लेकिन जो समुदाय वास्तव में अल्पसंख्यक हैं, उन्हें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा न दिये जाने के कारण वे अपना वैध हिस्सा नहीं पा रहे हैं।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
(National Commission for Minorities):
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन वर्ष 1993 में किया गया था।
- यह अधिनियम ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं करता किंतु केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करे।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष व 5 अन्य सदस्य होते हैं।
- अध्यक्ष सहित पाँच सदस्यों का अल्पसंख्यक समुदाय से होना आवश्यक है।
- अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
- प्रमुख कार्य:
- अल्पसंख्यकों की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये केंद्र व राज्य सरकार को प्रभावी उपायों की सिफारिश करना।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस
(National Minorities Right Day):
- अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिये हर वर्ष 18 दिसंबर को भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है।
- यह दिवस 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा’ को अपनाने का प्रतीक है।
- यह दिन अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों और उनकी सुरक्षा के बारे में लोगों में बेहतर समझ विकसित करने तथा उन्हें शिक्षित करने पर केंद्रित है।