द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज: ICCR | 11 Apr 2023
प्रिलिम्स के लिये:लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज, ICCR, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, साझा सांस्कृतिक विरासत। मेन्स के लिये:द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज प्रोजेक्ट को लागू करने में चुनौतियां और अवसर। |
चर्चा में क्यों?
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) ने 'द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज' नामक एक परियोजना की परिकल्पना की है, जिसका उद्देश्य उन पड़ोस में सांस्कृतिक पदचिह्न का विस्तार करना है जिनके साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध हैं।
- इस परियोजना का उद्देश्य भारत को अपने महाकाव्यों और शास्त्रीय के साथ-साथ समकालीन साहित्य का इन भाषाओं में अनुवाद करने में सक्षम बनाना है ताकि दोनों देशों के लोग उन्हें पढ़ सकें।
प्रोजेक्ट के बारे में:
- परिचय:
- यह परियोजना म्यांँमार, श्रीलंका, उज़्बेकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों में बोली जाने वाली भाषाओं में विशेषज्ञों का एक पूल तैयार करेगी ताकि बेहतर लोगों से लोगों के आदान-प्रदान की सुविधा मिल सके।
- यह इनमें से प्रत्येक देश की आधिकारिक भाषाओं में पाँच से 10 लोगों को प्रशिक्षित करेगा।
- अब तक, ICCR ने 10 भाषाओं पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें कज़ाख, उज़्बेक, भूटानी, घोटी (तिब्बत में बोली जाने वाली), बर्मी, खमेर (कंबोडिया में बोली जाने वाली), थाई, सिंहली और बहासा (इंडोनेशिया और मलेशिया दोनों में बोली जाने वाली) भाषाएँ शामिल हैं।
- हालाँकि कई विश्वविद्यालय और संस्थान इन भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। परंतु केवल कुछ विश्वविद्यालय और संस्थान ही ICCR सूची की 10 भाषाओं में से कोई भी पढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये, सिंहली भाषा, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और रक्षा मंत्रालय के अधीन विदेशी भाषा स्कूल (SFL) में पढ़ाया जाता है।
- महत्त्व:
- यह परियोजना भारत की विदेश नीति और सांस्कृतिक कूटनीति के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह इन देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने में मदद करेगी।
- इन देशों की आधिकारिक भाषाओं में भाषा विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने से भारत अधिक प्रभावी ढंग से संवाद करने एवं अपने पड़ोसियों के साथ मज़बूत सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध बनाने में सक्षम होगा।
- यह वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में भी विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहता है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर, भारत इन देशों के बीच मज़बूत संबंध बना सकता है, जो इस क्षेत्र में चीनी आर्थिक और रणनीतिक पहलों के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं।
ICCR
- ICCR विदेश मंत्रालय के तहत भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है।
- यह अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से सांस्कृतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1950 में भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने की थी।
- ICCR को वर्ष 2015 से विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों/केंद्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उत्सव को सुविधाजनक बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- ICCR ने प्रतिष्ठित भारतविद् पुरस्कार, विश्व संस्कृत पुरस्कार, विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार और गिसेला बॉन पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों की स्थापना की है, जो विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिये विदेशी नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं।
चुनौतियाँ:
- इसकी प्रमुख चुनौतियों में से एक इन भाषाओं को पढ़ाने के लिए भारत में बुनियादी ढाँचे और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है। इन भाषाओं को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए इस परियोजना के तहत भाषा केंद्रों की स्थापना और शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के क्रम में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी।
- इसके अतिरिक्त इस परियोजना के तहत विभिन्न देशों में इन भाषाओं का अध्ययन करने वाले भारतीय छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा इस परियोजना के तहत अन्य भाषाओं को शामिल करने की चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है क्योंकि ऐसे कई पड़ोसी देश हैं जिनसे भारत के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं तथा उन देशों की भाषाएँ वर्तमान में इस परियोजना में शामिल नहीं हैं।
आगे की राह:
- इस परियोजना में कई चुनौतियाँ होने के बावजूद इससे भारत के लिए अपने पड़ोसियों के साथ अपने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को गहरा करने एवं इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने जैसे अवसर प्राप्त होते हैं।
- विशेषज्ञों का मानना है कि ICCR की भाषाओं की सूची के विस्तार किये जाने आवश्यकता है, क्योंकि भारत के अन्य पड़ोसी देशों के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों में भी वृद्धि देखी जा रही है।
- उदाहरण के लिये, चिकित्सा पर्यटन के उदय के साथ, तुर्की, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मालदीव जैसे देशों से लोगों की यात्राओं को सुविधाजनक बनाने के लिये अनुवादकों तथा दुभाषियों की आवश्यकता होती है।
- इस ज़रूरत को पूरा करने के लिये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जल्द ही पश्तो में एक पाठ्यक्रम की शुरूआत करेगा।