हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल | 14 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने स्वदेशी रूप से विकसित हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle- HSTDV) का पहला सफल परीक्षण किया है।
  • यह परीक्षण बालासोर, ओडिशा स्थित डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप के एकीकृत परीक्षण रेंज (आइटीआर) से किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • HTDV प्रोजेक्ट DRDO की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है और इसका उद्देश्य कई सैन्य और नागरिक लक्ष्यों को सेवाएँ प्रदान करना है।
  • यह हाइपरसोनिक गति से उड़ान भरने वाला मानव रहित स्क्रैमजेट प्रदर्शन विमान है, इसकी गति ध्वनि की गति से 6 गुना अधिक होने के साथ ही यह आसमान में 20 सेकेंड में लगभग 32.5 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँच जाता है।
  • इस विमान का उपयोग क्रूज़ मिसाइलों को लॉन्च करने हेतु किया जा सकता है तथा  यह कम लागत पर उपग्रहों को लॉन्च करने में भी सक्षम है।
  • इस परियोजना के तहत ऐसा हाइपरसोनिक वाहन तैयार किया जा रहा है जिसमें स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग किया गया है।
  • निकट भविष्य में इस वाहन द्वारा लंबी दूरी की क्रूज़ मिसाइलों जैसे- ब्रह्मोस-2 को प्रक्षेपित करने में सहायकता मिलने की संभावना है।
  • इस वाहन को DRDO द्वारा इज़राइल, ब्रिटेन और रूस जैसे देशों की सहायता से तैयार किया जा रहा है।
  • इस परीक्षण के साथ ही भारत हाईपरसोनिक टेक्नोलॉजी से युक्त विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है। अभी तक यह तकनीकी केवल अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और इंग्लैंड के पास ही उपलब्ध थी।

स्क्रैमजेट इंजन टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर (Scramjet Engine Technology Demonstrator)

  • अभी तक कृत्रिम उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने हेतु जिन बहु-मंचित उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों (Multi-staged Satellite Launch Vehicles) द्वारा प्रक्षेपित किया जाता है, ये प्रक्षेपण वाहन प्रणोद उत्पन्न करने के लिये ईंधन के साथ-साथ दहन हेतु ऑक्सीडाइज़र का प्रयोग करते हैं।
  • एक बार इस्तेमाल के लिये डिज़ाइन किये प्रमोचन वाहन महँगे होते हैं और उनकी क्षमता कम होती है, क्योंकि वे अपने उत्थापन द्रव्यमान (lift-off mass) का केवल 2-4% ही वहन कर सकते हैं। इसलिये दुनिया भर में लॉन्च लागत को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • प्रक्षेपण वाहन द्वारा ले जाए जाने वाले ऑक्सीडाइज़र में लगभग 70% प्रणोदक (ईंधन ऑक्सीडाइज़र के संयोजन) होते हैं। इसलिये अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण वाहन की प्रणोदन प्रणाली को इसप्रकार विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है जो वायुमंडल से उड़ान के दौरान वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करेंगे, जिससे कि उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये अपेक्षित कुल प्रणोदक की मात्रा बहुत ही कम होगी।
  • इसके अलावा, अगर उन वाहनों को पुनःउपयोगी बनाया जाए, इससे उपग्रहों के प्रमोचन के लागत में और कमी आएगी।
  • इस प्रकार, वायुश्वसन प्रणोदन के साथ-साथ भविष्य में पुनःउपयोगी प्रक्षेपण यान अवधारणा से, कम कीमत पर अंतरिक्ष में नियमित पहुंच, एक रोमांचक बात है।
  • विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा तीन प्रकार के एयर ब्रीदिंग इंजनों अर्थात् वायुश्वसन इंजनों (Air Breathing Engines): रैमजेट (Ramjet), स्क्रैमजेट (Scramjet) और डुअल मोड रैमजेट (Dual Mode Ramjet-DMRJ) को विकसित किया जा रहा है।
  • रैमजेट इंजन, एयर ब्रीदिंग इंजन का ही एक रूप है जो वाहन की अग्र गति (forward motion) का उपयोग कर आने वाली हवा को बिना घूर्णन संपीडक (rotating compressor) के दहन (combustion) के लिये संपीड़ित करता है। ईंधन को दहन कक्ष में अंतक्षेपण किया जाता है जहाँ वह गर्म संपीड़ित हवा के साथ मिलकर प्रज्वलित होता है।

ramjets

  • एक रैमजेट-संचालित वाहन को भी एक रॉकेट की भाँति टेक-ऑफ करने की  आवश्यकता होती है इसलिये रैमजेट इंजन इस वाहन को त्वरित गति प्रदान करने में मदद करता है।

1 मैक (Mach) = 1,192.68 km/h

  • रैमजेट 3 मैक (ध्वनि की गति से तीन गुना) के आसपास सुपरसोनिक गति पर सबसे कुशलता से काम करते हैं और अधिकतम मैक 6 की गति तक इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • जब वाहन हाइपरसोनिक गति पर पहुँच जाता है तो रैमजेट इंजन की दक्षता कम होने लगती है।
  • स्क्रैमजेट इंजन, रैमजेट इंजन की तुलना में अत्यधिक कुशल है क्योंकि यह हाइपरसोनिक गति से कुशलतापूर्वक संचालित होता है और सुपरसोनिक गति से ईधन के दहन की अनुमति देता है। इसलिये इसे सुपरसोनिक दहन रैमजेट (Supersonic Combustion Ramjet) या स्क्रैमजेट कहते है।

Dual Modes Ramjet

  • डुअल मोड रैमजेट (DMRJ) एक जेट इंजन है, जिसमें  रैमजेट मैक 4-8 की गति के बाद स्क्रैमजेट में परिवर्तित हो जाता है, जिसका अर्थ है कि यह इंजन सबसोनिक और सुपरसोनिक मोड दोनों में कुशलतापूर्वक काम कर सकता है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO)

  • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation-DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment-TDEs) और तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद हुई।
  • DRDO रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के तहत काम करता है।
  • यह रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ तीनों क्षेत्रों के रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।
  • DRDO सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्र, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, मिसाइलें, नौसेना प्रणालियाँ, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है।

स्रोत: द हिंदू, इसरो को आधिकारिक वेबसाईट