समृद्ध राज्यों की तुलना में गरीब राज्यों में हाइब्रिड चावल अधिक लोकप्रिय | 04 Jun 2018
चर्चा में क्यों?
कोई राज्य जितना गरीब होता है, उसके किसानों द्वारा उच्च पैदावार वाली बीज तकनीक को अपनाने की संभावना उतनी ही कम होती है, लेकिन हाइब्रिड चावल के मामले में यह बात सही साबित नहीं हो रही है।देश के हाइब्रिड धान के अंतर्गत आने वाले कुल अनुमानित 65.8 लाख एकड़ (26.6 लाख हेक्टेयर) क्षेत्र में से उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा संयुक्त रूप से 83% क्षेत्र का नेतृत्व करते हैं।
प्रमुख बिंदु
- ये वे राज्य हैं, जिनके किसानों की दशा उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण भारत के राज्यों के किसानों जितनी अच्छी नहीं है।
- हाइब्रिड बीजों को आनुवंशिक विविधता वाले पौधों के मध्य संकरण के माध्यम से उत्पादित किया जाता है।
- इस तरह उत्पादित प्रथम पीढ़ी के पौधे सामान्यतः अपने पूर्वजों अर्थात् खुली परागित किस्मों (open-pollinated varieties) से अधिक पैदावार देते हैं।
- हालाँकि, ओपीवी के विपरीत हाइब्रिड अनाज भविष्य के लिये सुरक्षित रखने और बीज के रूप में पुनः उपयोग के लिये उपयुक्त नहीं होते। क्योंकि इनसे उत्पादित पौधों में इनके समान शक्ति नहीं रह जाती।
- अतः किसान हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल तभी करेंगे जब ओपीवी की तुलना में इनसे होने वाली पैदावार अधिक हो।
- पूर्वी और मध्य भारत के कम समृद्ध बेल्ट, जहाँ ओपीवी से प्रति एकड़ औसतन 15 क्विंटल धान पैदा होता है, वहीं हाइब्रिड बीजों के माध्यम से किसान प्रति एकड़ 25 क्विंटल धान उत्पादन कर सकते हैं।
- हाइब्रिड धान में बीज की आवश्यकता कम होती है। प्रति एकड़ में लगभग 6 किलोग्राम हाइब्रिड बीज की आवश्यकता होती है, जबकि ओपीवी के संदर्भ में यह मात्रा 20-30 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। क्योंकि, हाइब्रिड पौधे अधिक मात्रा में स्टेम उत्पन्न करते हैं।
- ₹355/किलोग्राम कीमत के हिसाब से एरिज 6444 गोल्ड नामक किस्म के 6 किलोग्राम बीज की लागत ₹2130 प्रति एकड़ बैठती है।
- लेकिन, चूँकि हाइब्रिड बीजों द्वारा 10 क्विंटल अधिक धान का उत्पादन होता है। अतः सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित कीमत ₹1,500 प्रति क्विंटल के आधार पर ₹15,500 का अतिरिक्त लाभ होता है। झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों के किसानों के लिये यह अतिरिक्त राशि हर रोपण के मौसम से पहले होने वाले खर्चों हेतु फायदेमंद हो सकती है।
- हालाँकि, यह बात सच है कि हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में हाइब्रिड फसल उतनी लोकप्रिय नहीं है, क्योंकि इन क्षेत्रों के किसान उच्च प्रबंधन वाली कृषि पद्धतियों का पालन करते हैं और यहाँ सिंचाई सुविधाएँ काफी बेहतर रूप में मौजूद हैं।
- पंजाब और हरियाणा में ओपीवी बीजों से प्रति एकड़ 30 क्विंटल से अधिक पैदावार होती है और चूँकि हाइब्रिड बीजों से ओपीवी के मुकाबले 10% अधिक पैदावार ही होती है, अतः प्रति एकड़ लगभग 33 क्विंटल पैदावार ही हो पाएगी। ऐसे में केवल 3 क्विंटल अधिक पैदावार के साथ हाइब्रिड बीज यहाँ के किसानों को अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रहे हैं।
- भारत में चावल की फसल के अंतर्गत आने वाले कुल 44 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से हाइब्रिड्स के अधीन केवल 3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र ही आता है। जबकि चीन में यह आँकड़ा 30 मिलियन हेक्टेयर में से 18 मिलियन हेक्टेयर है।
- चीन की औसत धान पैदावार 6.75 टन प्रति हेक्टेयर (27.3 क्विंटल / एकड़) है, जो भारत के 3.6 टन प्रति हेक्टेयर (14.6 क्विंटल/एकड़) से काफी ज्यादा है। जबकि वहाँ के किसान आमतौर पर हाइब्रिड्स के माध्यम से 10 टन प्रति हेक्टेयर (40 क्विंटल / एकड़) का उत्पादन करते हैं।
- 2001 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पूसा आरएच-10 किस्म जारी की, जो पहली बासमती गुणवत्ता वाली सुगंधित हाइब्रिड किस्म थी। इससे प्रति हेक्टेयर 7 टन की धान उपज होती थी। साथ ही इसकी परिपक्वता अवधि 110-115 दिन थी। इसने पूसा बासमती-1 किस्म से बेहतर प्रदर्शन किया, जिससे प्रति हेक्टेयर 6 टन की धान उपज होती थी एवं परिपक्वता अवधि 135-140 दिन थी।
- हालाँकि, इस पूसा आरएच के बाद आई दो अन्य किस्मों पूसा-1121 और पूसा-1509 ने इससे भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए अपनी पकड़ बना ली।