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मानव परीक्षण

  • 27 Jul 2020
  • 20 min read

मेन्स के लिये:

मानव परीक्षण के विभिन्न चरण, COVID-19 वैक्सीन में मानव परीक्षण की प्रासंगिकता 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 के उपचार हेतु उपयोग में लाई जाने वाली संभावित दवाएँ तथा वैक्सीन विश्व स्तर पर शोधकर्त्ताओं के लिये अनुसंधान का विषय बनी हुई है। भारत सहित विश्व के कुछ अन्य देशों में इसके उपचार के लिये प्रयुक्त होने वाली संभावित वैक्सीन ‘मानव परीक्षण’ (Human Trials) के विभिन्न चरणों में है जिस कारण वर्तमान समय में ‘मानव परीक्षण’ चर्चाओं में बना हुआ है।

प्रमुख बिंदु 

  • वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस से संबंधित 18 वैक्सीन ‘मानव परीक्षण’ के विभिन्न चरणों में है जिनमे भारत की दो वैक्सीन भी शामिल हैं।
    • इनमे से एक को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक (Bharat Biotech) कंपनी  द्वारा तथा दूसरी को अहमदाबाद स्थित फार्मास्यूटिकल फर्म ज़ाइडस कैडिला (Zydus Cadila) द्वारा विकसित किया जा रहा है।
  • मानव परीक्षण किसी वैक्सीन को विकसित करने के क्रम में अंतिम चरण होता है। हालाँकि इसमें भी कई चरण होते हैं जिस कारण इसे सफलतापूर्वक पूर्ण होने में लंबा समय या फिर कुछ वर्षों का समय भी लग सकता है।

मानव परीक्षण:

  • मानव परीक्षण में दवा या वैक्सीन का मनुष्यों पर प्रयोग किया जाता है।
  • हालांकि परीक्षण के दौरान मनुष्यों पर वैक्सीन का प्रयोग पूर्ण रूप से सुरक्षित होता है फिर भी 
  • मनुष्यों पर दवा या वैक्सीन के परीक्षण के दौरान मुख्य रूप से दो पहलुओं की जांच की जाती हैं- 
    • क्या दवा या वैक्सीन प्रयोग के लिये सुरक्षित है?
    • क्या दवा या वैक्सीन वही कार्य करने में सक्षम है जिसके लिये इसका परीक्षण किया जा रहा है अर्थात् क्या यह रोगजनक (Pathogen) के विरुद्ध प्रतिरक्षा (Immunity) क्षमता विकसित करने में कारगर है?

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मानव परीक्षणों की आवश्यकता: 

  • कोई वैक्सीन या दवा मनुष्य के शरीर पर किस प्रकार प्रतिक्रिया करेगा इसे सिर्फ मानव परीक्षण के द्वारा ही जाना जा सकता है।
  • मानव परीक्षण में शोधकर्त्ताओं द्वारा न केवल एक टीके की प्रभावकारिता का परीक्षण किया जाता है, बल्कि यह भी पता लगाने की कोशिश की जाती है कि प्रयोग के दौरान इसका कोई दुष्प्रभाव होगा या नहीं?,
  • मानव परीक्षण से प्राप्त सकारात्मक या नकारात्मक परिणामों के आधार पर ही शोधकर्त्ताओं द्वारा अपने कार्य की प्रगति को आगे निर्धारित किया जाता है अर्थात् यदि  परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं तो परीक्षण को आगे बढ़ाया जाता है और यदि परिणाम नकारात्मक होते हैं तो इसे यही समाप्त कर दिया जाता है।

मानव परीक्षण का आधार:

  • किसी भी दवा या वैक्सीन का मनुष्य पर परीक्षण करने से पूर्व उसमें प्रयोग होने वाले यौगिकों की प्रयोगशाला में जांच की जाती है तथा जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। इस चरण को पूर्व-नैदानिक परीक्षण (Pre-Clinical Trials) के रुप में जाना जाता है।
  • पूर्व-नैदानिक परीक्षण का मुख्य उद्देश्य इस बात का पता लगाना है कि क्या यह वैक्सीन मानव परीक्षण की दृष्टि से सुरक्षित है या नहीं? 
    • इसके अलावा इसका उद्देश्य यह भी देखना है कि क्या वैक्सीन उस कार्य को करने में सक्षम है जिसके लिये इसे विकसित किया जा रहा है?
  • यदि शोधकर्त्ताओं को पूर्व-नैदानिक परीक्षणों के परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं तो वे अगले चरण अर्थात् मानव परीक्षण के लिये नियामक संस्था (भारत में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया) से अनुमोदन प्राप्त करते हैं।

भारत में मानव परीक्षण हेतु नियामक संस्थान:

  • ब्रिटिश समय से ही ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research- ICMR) भारत में मानव परीक्षण से संबंधित दिशा-निर्देशों की एक विस्तृत सूची जारी करती है।
    • 187 पृष्ठों की यह सूची/दस्तावेज़ जिसका शीर्षक ‘नेशनल एथिकल गाइडलाइंस फॉर बायोमेडिकल एंड हेल्थ रिसर्च इन्वोल्विंग ह्यूमन पार्टिसिपेंटस ’ (National Ethical Guidelines For Biomedical And Health Research Involving Human Participants) है को अंतिम बार वर्ष 2017अद्यतन (Update) किया गया है जिसमे मानव परीक्षण से संबंधित प्रत्येक पक्ष को शामिल किया गया है।
  • भारत में मानव परीक्षणों का निरीक्षण करने वाली संस्था ‘केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन’ (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSO ) है जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत कार्य करती है। 
    • यह केंद्रीय संस्था नई दवा या वैक्सीन को अंतिम अनुमोदन प्रदान करती है जिसे मानव परीक्षणों के लिये प्रयोग किया जाता है। 
  • मानव परीक्षणों के लिये मंज़ूरी प्रदान करने वाली संस्था ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drugs Controller General of India) है जो CDSO के अंतर्गत कार्यरत है।
  • ज़मीनी स्तर पर प्रत्येक मानव परीक्षण का निरीक्षण करने के लिये एक नैतिक समिति  (Ethics Committee- EC) का गठन किया जाता है।
    • इस समिति का गठन चिकित्सा संस्थान अर्थात चिकित्सीय कॉलेज या फिर अस्पताल के स्तर पर किया जाता।
    • यदि मानव परीक्षण किसी गैर चिकित्सीय संस्थान (जैसे-निजी कंपनी के अनुसंधान केंद्र) द्वारा किया जा रहा है तो किसी पास के अस्पताल की नैतिक समिति द्वारा इसका निरीक्षण किया जाता है।
    • ICMR के अनुसार, नैतिकता समिति संस्थागत स्तर पर मानव परीक्षण को शुरू करने हेतु अनुमोदन प्रदान करती है तथा इस बात को सुनिश्चित करती है कि मानव परीक्षण उचित वैज्ञानिक-सांख्यिकीय अभ्यासों (Sound Scientific-Statistical Practices) पर आधारित है जो नैतिकता के उच्च मानकों का पालन करता है।
    • समिति द्वारा मानव परीक्षणों के प्रत्येक पहलू पर नज़र रखी जाती है।

मानव परीक्षण में शामिल व्यक्ति:

  • मानव परीक्षण में किन व्यक्तियों को शामिल किया जाना होता हैं? यह इस बात पर निर्भर करता है कि शोधकर्त्ताओं द्वारा किस उद्देश्य के लिये मानव परीक्षण किया जाना है।
    • उदाहरण के तौर पर COVID- 19 के परीक्षण में वो लोग शामिल नहीं हो सकते हैं जो  COVID- 19 से संक्रमित थे या है क्योंकि दोनों ही स्थिति में व्यक्ति द्वारा वायरस के प्रति प्रतिरक्षा क्षमता विकसित होने के कारण वैक्सीन की प्रभावकारिता को सही ढंग से नहीं पहचाना जा सकता है।
    • ठीक इसके विपरीत कैंसर के लिये मानव परीक्षण में ऐसे लोगों को शामिल किया जाता हैं जो पहले से ही कैंसर से पीड़ित है।
  • मानव परीक्षण के लिये चयनित व्यक्ति को परीक्षणों के हर संभावित जोखिमों से अवगत कराया जाता है जिसके बाद ही परीक्षण में शामिल व्यक्ति को परीक्षण के लिये अपनी सहमति से देनी होती है।
  • मानव परीक्षण के दौरान व्यक्ति को न केवल निश्चित मानदंडों का पालन करना होता है बल्कि कुछ निश्चित खाद्य पदार्थों, दवा का सेवन एवं गर्भ धारण न करने इत्यादि के लिये भी मानदंड निर्धारित किये जाते हैं।

मानव परीक्षण का प्रभाव:

  • व्यक्ति पर पड़ने वाले मानव परीक्षण का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि परीक्षण किस उद्देश्य के लिये किया जा रहा है।
  • मानव परीक्षण में शामिल व्यक्ति को यादृच्छिक andomly) तरीके से  ‘प्रायोगिक समूह’ (Experimental Group) या फिर ‘नियंत्रण समूह’ (Control Group) में रखा जाता है।
    • ‘प्रायोगिक समूह’ में वे व्यक्ति शामिल होते हैं जिनपर अभी उपचार (Treatment ) के लिये अध्ययन किया जाना है, जबकि ‘नियंत्रण समूह’ में वे व्यक्ति शामिल होते हैं जिन्हें ऐसे उपचार से उपचारित (Treated) किया जाता है जो व्यक्ति के लिये पहले से ही सुरक्षित और प्रभावी होता है।
    • ‘प्रायोगिक समूह’ या फिर ‘नियंत्रण समूह’ शोधकर्ता को प्रयोगात्मक दवा या वैक्सीन की प्रभावकारिता का उचित उपचार करने के लिये तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायक होता है। 
  • हालांकि  COVID-19 एक नए वायरस की वजह से हो रहा है जिसे उपर्युक्त वर्णित (प्रायोगिक समूह/नियंत्रण समूह) किसी भी तरीके से उपचारित नहीं किया जा सकता है। अतः COVID-19 वैक्सीन के लिये मानव परीक्षण में ‘नियंत्रण समूह’ को संभवतः एक 'प्लेसबो' (Placebo) दिया जाता है। 
    • 'प्लेसबो' एक ऐसा पदार्थ है जो स्वास्थ्य व्यक्ति को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करता है।
    • मानव परीक्षण के दौरान प्रायोगिक वैक्सीन या प्लेसबो को मनुष्य के शरीर में इंजेक्शन के माध्यम से या फिर एक खुराक के रूप में प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद रक्त, मूत्र, आदि के नमूने को चिकित्सीय परीक्षण के लिये एकत्र किया जाता है।

मानव परीक्षण के चरण:

कोरोना वैक्सीन के अनुसंधान में शोधकर्ताओं द्वारा 3 चरणों को शामिल किया गया है ये चरण मानव परीक्षण की ही 3 अलग-अलग अवस्थाएँ है। 

  • प्रथम चरण 
    • प्रथम चरण में शोधकर्त्ताओं द्वारा इस बात का पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि क्या वैक्सीन मनुष्य के लिये सुरक्षित है या नहीं? क्या मानव शरीर इसे सहन करने में सक्षम है?
    • इसके अलावा प्रथम चरण में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि क्या वैक्सीन प्रतिरक्षा क्षमता के कुछ स्तरों को विकसित करने में सक्षम है या नहीं?
  • द्वितीय चरण: 
    • द्वितीय चरण में, इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जाता है कि वैक्सीन प्रतिरक्षा क्रिया के वांछित स्तर को उत्पन्न करने के लिये कितनी प्रभावी है?
    • इस चरण में शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की सही मात्रा उत्पन्न करने के लिये वैक्सीन की सही खुराक के स्तर को तैयार किया जाता है।
    • मानव परीक्षण में शामिल लोगों पर वैक्सीन के संभावित दुष्प्रभावों  का समग्र रूप से एवं सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया जाता है।
  • तृतीय चरण:
    • इस चरण में शोधकर्त्ताओं द्वारा द्वितीय चरण से प्राप्त परिणामों की  पुष्टि की जाती है तथा यह बताने का प्रयास किया जाता है कि लोगों को दी जाने वाली प्रायोगिक वैक्सीन कितनी सुरक्षित है?
    • यह मानव परीक्षणों का अंतिम महत्वपूर्ण चरण है जिसमे टीका की प्रभावकारिता एवं सुरक्षा के लिये अनिवार्य रूप से तीन जांच शामिल की जाती है।
    • उपर्युक्त तीन चरणों के बाद ही वैक्सीन बाजार में उपयोग के लिये उपलब्ध होगी जिसे अनुमोदन के लिये प्रस्तुत किया जाएगा।
    • सार्वजनिक उपयोग के लिये वैक्सीन स्वीकृत होने के बाद नैदानिक अनुसंधान का एक और चरण होता है। जो मानव परीक्षण का चुतर्थ चरण है।
      • इस चरण में मुख्य रूप से वैक्सीन निर्मातााओं एवं शोधकर्त्ताओं द्वारा विश्व में प्रयोग की जाने वाली वैक्सीन के प्रभावों अर्थात सुरक्षा और प्रभावकारिता पर निरंतर नजर रखी जाती हैं।

मानव परीक्षण में शामिल लोगों की संख्या:

  • मानव परीक्षण के किसी विशेष चरण में कितने लोगों को शामिल किया जाना चाहिये इसके लिये कोई अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित नहीं है।
  • सामान्यत चरण 1 में बहुत कम लोग, जबकि चरण 2 और 3 में लोगों के एक बड़े समूह को शामिल किया जाता है। 

वैक्सीन प्राप्त करने में लगने वाला समय: 

  • यदि रोग के लिये किसी गलत वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है तो वह बेहतर प्रतिरक्षा क्षमता का निर्माण नहीं करेगा या सबसे खराब स्थिति में वह संक्रमण को और अधिक बढ़ा सकता है। अतः किसी भी वैक्सीन के अनुसंधान एवं परीक्षण में वर्षों का समय लग सकता है।
  • उदाहरण के लिये एचआईवी की खोजे को लगभग चार दशक हो चुके हैं और अभी भी हमारे पास इस वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है।
  • वर्तमान अभिलेखों के आधार पर, सबसे तीव्र गति से विकसित की जाने वाली वैक्सीन गलदण्ड रोग/ मम्प्स शॉट (Mumps Shot) रोग के लिये है जिसे लिये 4 वर्ष के मानव परीक्षण को अनुमोदित किया गया है।
  • COVID-19 की वैक्सीन को आने में कितना समय लगेगा निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है वैज्ञानिक लगातार शोध कार्य में लगे हुए हैं।
    • हालाँकि ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले वर्ष अर्थात वर्ष 2021 के मध्य तक या फिर अंत तक वैक्सीन सार्वजनिक उपयोग के लिये तैयार हो जाएगी।
    • हालाँकि कुछ विशेषज्ञों द्वारा इस समय सीमा को अतिआशावादी बताया जा रहा है।

भारत में मानव परीक्षण की स्थिति: 

भारत की दो वैक्सीन मानव परीक्षण के चरण में हैं जिनमें एक को परंपरागत सूत्र (Traditional Formulation) द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक द्वारा विकसित किया गया है, जबकि दूसरी को रेडिकल टेक्नोलॉजी (Radical Technology) के आधार पर अहमदाबाद स्थित निजी फार्मा कंपनी ज़ाइडस कैडिला द्वारा विकसित किया गया है।

  • भारत बायोटेक: 
    • भारत बायोटेक वैक्सीन के मानव परीक्षण जुलाई के मध्य में शुरू हुए।
    • इसके चरण I में 375 लोग शामिल हैं, जबकि चरण II में 750 लोग शामिल होंगे। 
    • शोधकर्ताओं का अनुमान है कि सभी चरणों के सयुक्त परीक्षणों को पूर्ण होने में एक वर्ष तीन माह का समय लगेगा।
  • ज़ाइडस कैडिला:
    • ज़ाइडस कैडिला फर्म द्वारा निर्मित कोरोनावायरस वैक्सीन ZyCoV-D के लिये जुलाई के मध्य से मानव परीक्षण शुरू किया जा चुके है।
    • इसके संयुक्त चरण I एवं चरण II में  मानव परीक्षणों में कुल 1048 लोगों को शामिल किया जाएगा जिसे पूरा होने का अनुमानित समय एक वर्ष का है।

आगे की राह: 

  • हालाँकि यह अभी निश्चित तौर पर नहीं कहाँ जा सकता कि कोरोना के उपचार के लिये उपयुक्त वैक्सीन प्राप्त करने में कितना और समय लगेगा क्योकि यह पूर्ण रुप से ‘मानव परीक्षण’ के परिणामों पर निर्भर करेगा जो वर्तमान में भारत सहित विश्व के अन्य देशों में विभिन्न चरणों में हैं।
  • बावज़ूद सभी संभावित संभावनाओं के महामारी के उपचार के लिये एक उचित वैक्सीन प्राप्त होने की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि विभिन्न चरणों में वैक्सीन के बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
  • फिर भी जब तक अंतिम रूप से कोई वैक्सीन प्राप्त नहीं होती है तब तक सभी आवश्यक बातों पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है ताकि संक्रमण को एक सीमित स्तर पर रोका जा सके।
  • विश्व के सभी देशों को WHO द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को जागरूकता एवं ईमानदारी से पालन करने की भी आवश्यकता है। 
  • यह एक वैश्विक महामारी है जिसका समाधान वैश्विक प्रयासों एवं पहलों के से ही संभव है। 

स्रोत: इंडिया टुडे

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