कैदियों के मानवाधिकार। | 06 Jul 2017

संदर्भ
भारत में जेलों की हालत चिंता का विषय है। जेलों में भीड़, गरीब कैदियों को लंबे समय तक कारावास, समय पर ज़मानत न मिलना इत्यादि अनेक समस्याएँ हैं, जो सबका ध्यान आकर्षित करती हैं। ऐसे में कैदियों को अधिकार दिलाने के लिये जेल सुधार की आवश्यकता बड़ी शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत की जेलों में होने वाली अनेक घटनायें, जैसे – तीन दशक पहले बिहार के भागलपुर जेल में कैदियों को अँधा करने वाली घटना हो अथवा हाल ही में 23 जून को मुंबई के बाकुलवॉमेन की जेल में एक आजीवन कारावास की सज़ा पाई महिला अपराधी की क्रूर हत्या- हिरासत में हिंसा की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं।
  • यह निराशाजनक है कि मुंबई की यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना उस समय हुई, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य की तीन प्रमुख जेलों की व्यापक समीक्षा करने का निर्देश दिया था।
  • गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों, 2016 की मॉडल जेल मैनुअल और संयुक्त राष्ट्र से संबंधित प्रस्तावों के आलोक में जेलों के सभी पहलुओं पर विचार करने के लिये एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जाना था।  इस पैनल को जेलों को आधुनिक बनाने और जेलों में सुविधाओं के आधुनिकीकरण के उपायों का सुझाव देना था।
  • पिछली आधी शताब्दी से, देश की कई उच्च अदालतों ने जेलों में सुधारों, जैसे - कैदियों के अधिकारों, स्वास्थ्य, स्वच्छता और कानूनी सहायता तक पहुँच, महिला कैदियों एवं उनके बच्चों की स्थिति आदि – को  लेकर कई आदेश पारित किये हैं, लेकिन लगता है कि उन पर कोई अमल नहीं हुआ है और कैदियों के मौलिक अधिकार कैदियों की तरह ही कहीं न कहीं कैद हैं।
  • केंद्रीय गृहमंत्री ने पिछले वर्ष एक मॉडल जेल मैनुअल जारी किया था, जो यह स्पष्ट करता है कि राज्य कैदियों के अधिकारों की रक्षा के दायित्व से बंधा हुआ है और वह इससे पीछे नहीं हट सकता।
  • अतः इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि जेल सुधार केवल कैदीयों के सुविधाओं और शर्तों के बारे में नहीं हैं; बल्कि उनके जीवन के अधिकारों के बारे में भी है, जिसकी रक्षा हर हाल में सुनिश्चित की जानी चाहिये।