विलायती कीकर : एक पारिस्थितिकी खतरा | 30 May 2018
संदर्भ
दशकों से देश भर में वृक्ष प्रेमियों और पर्यावरणविदों द्वारा विलायती कीकर Prosopis juliflora के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि यह किसी अन्य प्रजाति को पनपने नहीं देता है। दिल्ली सरकार ने हाल ही में इस गैर-स्वदेशी वृक्ष को सेंट्रल रिज से हटाने की मंजूरी दी है। इस उम्मीद के साथ कि क्षेत्र की मूल वनस्पति जिसे शहर के फेफड़ों के रूप में जाना जाता है, के साथ ही जीवों को भी पुनःस्थापित किया जा सके।
विलायती कीकर से पारिस्थितिकी खतरा
- यह शुष्क परिस्थितियों में तेज़ी से वृद्धि करता है, किसी भी पौधे को बढ़ने नहीं देता है और जहाँ यह होता है वहाँ भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे चला जाता है।
- दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु में कई वैज्ञानिकों और कार्यकर्त्ताओं द्वारा इससे उत्पन्न पारिस्थितिकी खतरे संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत किये गए हैं।
- तमिलनाडु में इसे करुवेलम (karuvelam) कहा जाता है और इसकी लकड़ी को जलावन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- 2016 में मद्रास उच्च न्यायालय ने इन पेड़ों को हटाने के अंतरिम आदेश पारित किये क्योंकि पहले से ही पानी के लिये संघर्ष कर रहे क्षेत्रों में यह वृक्ष भूमिगत जल के स्तर को और कम कर रहा था।
- 2017 में न्यायालय ने कीकर को हटाने की निगरानी स्वयं शुरू की।
- दिल्ली में इस वृक्ष को हटाने का अभियान 1990 के दशक में शुरू हुआ जिसके तहत अदालत के मामलों, सरकार के प्रतिनिधियों और शोध-पत्रों के साथ इसके विरोध की ज़मीन तैयार हुई।
- हालाँकि, वजीराबाद में यमुना जैव विविधता पार्क का रूपांतरण वन विभाग को विश्वास दिलाता है कि योजना काम कर सकती है।
- 1930 की शुरुआत में अंग्रेज़ों द्वारा इस वृक्ष को दिल्ली में लगाया गया था।
- दशक के अंत तक यह पूरी तरह से सेंट्रल रिज पर फैल गया था और इसने देशी बबूल, ढाक, कदंब, अमलतास, जंगली गुलमोहर इत्यादि को नष्ट करना शुरू कर दिया।
- पेड़ों के साथ-साथ जीव-जंतु, जैसे- पक्षियाँ, तितलियाँ, तेंदुए, साही (porcupine) और गीदड़ गायब हो गए।
विलायती कीकर का हटाया जाना
- विलायती कीकर को हटाया जाना या काटा जाना और अन्य पौधों को विकसित होने की प्रतीक्षा करना दो कारणों से लाभकारी कदम है।
- सबसे पहले, अन्य प्रजाति के वृक्षों को पुनर्जीवित करना तथा दूसरा रिज को बंजर छोड़ देने और देशी प्रजातियों के बढ़ने की प्रतीक्षा करने से अतिक्रमण को बढ़ावा मिलेगा।
- अवक्रमित पारिस्थितिकी प्रणाली पर्यावरण प्रबंधन केंद्र (CEMDE) का पहला कदम पेड़ों की शाखाओं को काटना और वनस्पतियों के कवर को कम करना है ताकि सूर्य की रोशनी ज़मीन तक पहुँच सके।
- इस प्रकार इसे काटने से पेड़ की फल उत्पादन क्षमता नष्ट होने लगती है और यह मुरझाना शुरू हो जाता है। इसके साथ-साथ, यह पर्याप्त सूर्य की रोशनी और पौधे को अंकुरित होने के लिये जल प्रदान करता है।
- इस प्रक्रिया को तेज़ करने के लिये उपयोग की जाने वाली एक अन्य विधि परजीवी रोपण है।
प्रतिस्थापन (Replacement)
- विलायती कीकर का प्रतिस्थापन परियोजना का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है इसके लिये वैज्ञानिक प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
- 30 वृक्ष समुदायों जैसे- पलाश (ढाक), स्टेरकुला तथा बबूल आदि की पहचान की गई है जो सभी भारत में पाए जाते हैं।
- इनमें से कुछ वितान (canopy) हैं जो तीन मंज़िला तक लंबे हैं और पूरी तरह से उगने पर किसी भी कीकर को बौना कर सकते हैं।
- पौधे कहाँ से लाए जाएंगे यह भी एक चुनौती है। चूँकि इनमें से कई प्रजातियों का दिल्ली में उन्मूलन कर दिया गया है, इसलिये यह शहर हरियाणा और गुजरात की ओर देख रहा है।
यमुना जैव विविधता उद्यान
- 2002 में वजीराबाद में यमुना जैव विविधता उद्यान के विकास पर काम शुरू हुआ।
- 457 एकड़ से अधिक में फैले इस उद्यान में देशी पेड़, झाड़ी और क्रीपर प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसमें अनेक छोटे जल निकाय व नौका-विहार हैं।
- इसका सबसे प्रसिद्ध आगंतुक शायद एक युवा तेंदुआ था जिसे नवंबर 2016 में देखा गया था।
- तेंदुए लंबे समय तक एक क्षेत्र में तभी रह सकते हैं जब उन्हें उपयुक्त आवास, पर्याप्त शिकार, जल संसाधन और कुछ अज्ञातवास मिल जाएँ।
- बाद में तेंदुए को स्थानांतरित कर दिया गया था, यहाँ जैव विविधता अभी भी कायम है। CEMDE को उम्मीद है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को बरक़रार रखा जा सकता है।
समस्या तथा समाधान
- फैलाव – दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के कुछ भाग तथा तमिलनाडु।
- दिल्ली – 7777 हेक्टेयर, 80% विलायती कीकर रिज में पाया जाता है।
- प्रतिस्थापन परियोजना का लक्ष्य – 482 एकड़ ।
- पहले चरण में धौलाकुआँ से राष्ट्रपति भवन के बीच एसपी मार्ग पर 100 एकड़ एरिया कवर किया जाएगा।
- पहले चरण में 30 वृक्ष समुदाय विलायती कीकर को हटाने का काम करेंगे।