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आपका दुग्ध कितना सुरक्षित है?

  • 27 Apr 2018
  • 5 min read

संदर्भ

पिछले तीन दशकों में भारत तेज़ी से दुग्ध के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक के रूप में उभरा है। यह वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 18.5 प्रतिशत का योगदान देता है। पिछले साल के अंत में जारी की गई एडेलवाइस रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते उपभोक्तावाद और स्वस्थ जीवन शैली की प्राथमिकता से उत्साहित, भारतीय डेयरी उद्योग द्वारा 2020 तक 15 प्रतिशत मिश्रित वार्षिक वृद्धि दर्ज़ करने की उम्मीद है। कई बड़ी भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इस बड़े अवसर को भुनाने हेतु प्रयास में लगी हुई हैं। परिणामस्वरूप कई नए और अभिनव उत्पाद लॉन्च किये जा रहे हैं। हालाँकि इस उच्च विकास के साथ ही स्वास्थ्य संकट भी मंडरा रहा है।

भारतीय दुग्ध उद्योग क्षेत्र में विद्यमान समस्याएँ 

  • भारतीय डेयरी उद्योग विकसित देशों के डेयरी उद्योग से बहुत अलग है। विकसित देशों में डेयरी कंपनियाँ बड़े कॉर्पोरेट डेयरी फार्मों के पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करती हैं और अधिकांश खरीद कुछ बड़े फार्मों से ही की जाती है। लेकिन भारत में इस उद्योग को अभी भी सामाजिक-आर्थिक विकास के साधन के रूप में देखा जाता है।
  • भारत में केवल 18-20 प्रतिशत दुग्ध ही संगठित क्षेत्र से आता है एवं पाश्चुरीकृत होता है जबकि शेष  लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
  • अधिकांश दुग्ध की आपूर्ति ग्रामीण इलाकों में स्थित लाखों छोटे उत्पादकों से होती है जिनके पास औसतन एक या दो दुधारू पशु होते हैं जो सामान्यतः गाय या भैंसें होती हैं।
  • भारतीय दुग्ध उद्योग की एक अन्य विशेषता यह है कि यहाँ दुग्ध विक्रेता स्थानीय उत्पादकों से दुग्ध एकत्रित करते हैं और इसे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बेचते हैं। इसे आपूर्ति तंत्र की अक्षमता के तौर पर देखा जा सकता है, क्योंकि इस तरह की आपूर्ति में स्वच्छता के बुनियादी मानकों का पालन नहीं किया जाता और यह दुग्ध उपभोग हेतु अनुपयुक्त होता है।
  • भारत में 80 प्रतिशत दुग्ध की खपत तरल दुग्ध के रूप में होती है, जो स्वास्थ्य हेतु गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। गैर-ठंडा और गैर-पाश्चुरीकृत दुग्ध बीमारी पैदा करने वाले रोगाणुओं और बैक्टीरिया को जन्म दे सकता है।
  • भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) द्वारा वर्ष 2012 में 33 राज्यों में कराए गए सर्वे में जाँच किये गए  1,791 दूध नमूनों में से 68.4 प्रतिशत दूषित पाए गए थे।
  • शहरी क्षेत्रों के 70 प्रतिशत नमूने दूषित पाए गए थे, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के 31 फीसदी नमूने दूषित थे। 

अपेक्षित समाधान 

  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि भारतीय डेयरी उद्योग स्वस्थ और टिकाऊ तरीके से आगे बढ़ता रहे, आपूर्ति तंत्र के प्रत्येक तत्त्व को आधुनिक बनाना अति महत्त्वपूर्ण है।
  • साथ ही विषाक्तता मुक्त, स्वच्छ और गुणवत्ता युक्त दुग्ध उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। 
  • आपूर्ति श्रृंखला की शुरुआत में, मवेशियों के प्रबंधन और पालन पर ध्यान देने की ज़रूरत है और सही प्रकार का मवेशी चारा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
  • अगले चरण में प्रसंस्करण और शीत श्रृंखला संबंधी बुनियादी ढाँचे पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।
  • हालाँकि, ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के अंतर्गत बहुत सारे महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए, लेकिन फिर भी कुछ प्रसंस्करण इकाइयाँ अप्रचलित हो चुकी हैं जिन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
  • चूँकि, कच्चे दूध का 200 किमी. से अधिक परिवहन करना संभव नहीं है, इसलिये यह महत्त्वपूर्ण है कि दूध की गुणवत्ता को बनाए रखने और उसे खराब होने से बचाने के लिये कई सोर्सिंग, प्रसंस्करण और वितरण बिंदु स्थापित किये जाएँ।
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