अर्थव्यवस्था की हालत बयां करने में कितना सक्षम है आर्थिक सर्वेक्षण? | 14 Feb 2017

क्या है आर्थिक समीक्षा?

  • केंद्रीय बजट (Union Budget) को पेश करने से एक दिन पहले देश का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जाता है| बजट से पूर्व संसद में वित्त मंत्री देश की आर्थिक दशा की जो आधिकारिक रिपोर्ट पेश करते हैं, वह आर्थिक समीक्षा कहलाता है|इस समीक्षा में देश की आर्थिक हालत का लेखा-जोखा पेश किया जाता है| इसमें इन बातों का ज़िक्र होता है कि देश में विकास की दिशा क्या रही है, किस क्षेत्र में कितना निवेश हुआ, किस क्षेत्र में कितना विकास हुआ, किन योजनाओं को किस तरह अमल में लाया गया, जैसे सभी पहलुओं पर इस सर्वे में सूचना दी जाती है|
  • अर्थव्यवस्था, पूर्वानुमान और नीतिगत स्तर पर चुनौतियों संबंधी विस्तृत सूचनाओं का भी इसमें समावेश होता है| इसमें क्षेत्रवार हालातों की रूपरेखा और सुधार के उपायों के बारे में बताया जाता है| यदि संक्षेप में कहा जाए तो, यह सर्वेक्षण भविष्य में बनाई जाने वाली नीतियों के लिये एक दृष्टिकोण का काम करता है| हालाँकि यह जानना आवश्यक है कि आर्थिक समीक्षा केवल सिफारिशें हैं और इन्हें लेकर कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है| सरकार इन्हें केवल निर्देशात्मक रूप में ही लेती है|

समस्याएँ

  • गौरतलब है कि आर्थिक समीक्षा में विमुद्रीकरण के सन्दर्भ में पूरा एक चैप्टर जोड़ा गया था, इस चैप्टर में विमुद्रीकरण को एक क्रान्तिकारी कदम बताया गया था और कहा गया था कि असंगठित क्षेत्रों में इसका ज़्यादा प्रभाव देखने को मिलेगा, साथ में यह भी जोड़ा गया था कि विमुद्रीकरण के नकारात्मक प्रभाव क्षणिक हैं| यहाँ समस्या यह है कि विमुद्रीकरण के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा के बावजूद इस बारे में किसी भी प्रकार के विश्वसनीय आँकड़े उपलब्ध नहीं कराए गए कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था किस हद तक प्रभावित हुई है या होगी!
  • संचार एवं परिवहन के इस दौर में होना यह चाहिये कि लोग एक दुसरे से घुल-मिलकर रह रहें हों और सामाजिक और सांस्कृतिक एकता मज़बूत हो रही हो लेकिन वास्तविकता कुछ और है| भारतीय राज्यों में वैचारिक भिन्नता बढ़ती ही जा रही है और यह चिंता का विषय है| क्योंकि यदि वैचारिक भिन्नता बढ़ती रही तो एक बिहार के मज़दूर को तमिलनाडु के किसी शहर में रोज़गार संबंधी समस्याओं का सामना करना होगा और यह अर्थव्यवस्था के लिये शुभ संकेत कतई नहीं है| आर्थिक समीक्षा के पास इस सवाल का उत्तर नहीं है कि क्यों समाकलन के इस दौर में राज्यों के बीच कई बातों को लेकर वैचारिक मतभेद बढ़ते जा रहे हैं|
  • गौरतलब है कि आर्थिक समीक्षा में यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी सार्वभौम बुनियादी की बात की गई है| लेकिन यूनिवर्सल बेसिक इनकम के तहत प्रत्येक व्यक्ति के लिये न्यूनतम आधार आय सुनिश्चित करने में कई रुकावटें हैं| इसके लागू करने से पहले योजनागत तैयारियों की दिशा में बड़ी पहल करनी होगी| आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) के लागू होने से गरीबी में गिरावट आएगी| हालाँकि वर्तमान परिस्थतियों में भारत के सन्दर्भ में यूबीआई की प्रासंगिकता को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन, आर्थिक समीक्षा में यूबीआई के बारे में किसी प्रकार की योजनागत तैयारियों पर कोई सुझाव नहीं दिया गया है|

निष्कर्ष

प्रत्येक वर्ष संसद में केंद्रीय बजट प्रस्तुत किये जाने से ठीक पहले केंद्रीय वित्त मंत्रालय आर्थिक सर्वेक्षण पेश करता है| इस सर्वेक्षण में देश के वार्षिक आर्थिक विकास के संदर्भ में मंत्रालय द्वारा समीक्षा की जाती है| आर्थिक सर्वेक्षण भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक अहम् दस्तावेज़ है लेकिन इसको और अधिक प्रमाणिक बनाए जाने की आवश्यकता है| गौरतलब है कि आर्थिक समीक्षा आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों तरह से एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर तैयार की जाती है और जैसा कि हम जानते हैं की भारत में डाटा एकत्रण की प्रक्रिया विसंगतियों से युक्त है, अतः आर्थिक समीक्षा अर्थव्यवस्था की सही तश्वीर पेश करे इसके लिये यह ज़रूरी है हम पहले अपनी डाटा एकत्रण पद्धति में सुधार लाएँ|