अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चाबहार बंदरगाह परियोजना- अभी कितनी दूर
- 06 Feb 2017
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सन्दर्भ
- अब तक भारत सरकार इस बात को लेकर आलोचनाओं में रही है कि चीन जिस तेज़ी से पाकिस्तान में ग्वादर बंरगाह को विकसित कर रहा है, भारत उतनी तेजी नहीं दिखा रहा है। शायद यही वजह है कि चाबहार बंदरगाह के लिए इस बार बजटीय आवंटन में 50 फीसद की बढ़ोतरी करते हुए 150 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
- अभी पिछले महीने ही भारत और जापान के बीच चाबहार पोर्ट के विकास को लेकर एक उच्चस्तरीय वार्ता हुई थी। विदित हो कि अभी तक भारत चाबहार को अपने निजी क्षेत्र की मदद से विकसित करने की योजना बना रहा था लेकिन जापान की तरफ से निवेश के लिये तैयार होने के बाद चाबहार परियोजना को और गति मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
- माना जा रहा है कि जापान सरकार चाबहार और इसके आस पास औद्योगिक विकास क्षेत्र स्थापित करने के लिये बहुत ही सस्ती दर पर कर्ज देने को तैयार है। जापान के आगे आने के बाद ही सरकार ने आम बजट में इसके लिये आवंटन बढ़ा दिया है।
चाबहार परियोजना से संबंधित समस्याएँ
- गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि ईरान ने दुनिया के पाँच शक्तिशाली राष्ट्रों के साथ जो परमाणु समझौता (इसे पी 5+1 कहा जाता है) किया है, उसे वे रद्द कर देंगे। हाल ही में अमेरिका ने ईरान के खिलाफ़ प्रतिबंधों की घोषणा भी की है।
- अमेरिका-ईरान सबंधों में अनिश्चितता के मद्देनजर भारत ने चाबहार में विकास कार्यों की गति धीमी कर रखी है। हालाँकि विशेषज्ञों का मानना यह है कि चाबहार में अपनी परियोजना को लागू करने में इस तरह का आलस दिखाना भारत के लिये रणनीतिक भूल साबित हो सकती है।
- ईरान भी यह संकेत दे रहा है कि भारत ने अगर देर की तो वह किन्हीं अन्य देशों से भी, जिनमें चीन भी शामिल है, निवेश आमंत्रित कर सकता है। चीन खुद भी इस परियोजना में रुचि ले सकता है। विदित हो कि चीन पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का विकास कर ही रहा है और उसने चाबहार से ग्वादर तक एक रेल लाइन बिछाने का प्रस्ताव भी किया था।
- कारोबारी यह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि चाबहार में निवेश करने के लिए यह सही समय है या नहीं क्योंकि यूरोपीय बैंक अभी ईरान की किसी भी परियोजना में पैसे लगाने से हिचक रहे हैं और ऐसा ईरान के प्रति अपनी विरोधी सोच को ज़ाहिर कर चुके डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के कारण है।
- भारत के लिये यह एक अच्छी बात है कि ईरान रणनीतिक कारणों से यह चाहता था कि चाबहार बंदरगाह का विकास भारत ही करे। इसीलिये पहले उसने यह परियोजना भारत को देते समय चीन का दबाव पूरी तरह दरकिनार कर दिया था। हालाँकि अब तक भारत की इस परियोजना को विकसित करने की धीमी गति उसके लिये परेशानी और चिंता का सबब बनती दिख रही है।
भारत के लिये चाबहार का महत्त्व
- मध्य युगीन यात्री अल-बरूनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार (मध्य एशिया से) भी कहा था। चाबहार का मतलब होता है चार झरने। ज्ञात हो कि यहाँ से पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी महज 72 किलोमीटर दूर रह जाता है, जिसके विकास के लिये चीन 46 अरब डॉलर (करीब 3,131 अरब रुपए) का निवेश कर रहा है।
- चाबहार भारत के लिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के द्वार खोल सकता है। यह बंदरगाह एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ जगह है। भारत वर्ष 2003 से इस बंदरगाह के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के प्रति अपनी रुचि दिखा रहा है। लेकिन ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंधों और कुछ हद तक ईरानी नेतृत्व की दुविधा की वज़ह से बात आगे बढ़ने की गति धीमी रही। हालाँकि पिछले तीन वर्षों में काफी प्रगति भी हुई है।
- चाबहार कई मायनों में ग्वादर से बेहतर है। चाबहार गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यह ज़मीन के साथ मुख्य भू-भाग से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ सामान उतारने-चढ़ाने का कोई शुल्क नहीं लगता। यहाँ मौसम सामान्य रहता है और हिंद महासागर से गुजरने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहाँ से पहुँच बहुत आसान है।
- चाबहार बंदरगाह के जरिये अफगानिस्तान को भारत से व्यापार करने के लिये एक और रास्ता मिल जाएगा। विदित हो कि अभी तक पाकिस्तान के रास्ते भारत-अफगानिस्तान के बीच व्यापार होता है, लेकिन पाकिस्तान इसमें रोड़े अटकाता रहता है, जिससे अफगानिस्तान तो असहज महसूस करता है ही साथ में भारत अफगानिस्तान को साधने की अपनी नीति में भी कठिनाइयाँ महसूस करता है। अतः चाबहार परियोजना भारत के लिये अत्यंत ही महत्त्वों वाला है।
निष्कर्ष
- सुरक्षा की दृष्टि से भी चाबहार का अपना महत्त्व है गौरतलब है कि ईरान-इराक युद्ध के समय ईरानी सरकार ने इस बंदरगाह को अपने समुद्री संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये काफी इस्तेमाल किया था। इस सबके बावजूद भारत में एक तबका है, जो मानता है कि तालिबान या किसी अन्य चरमपंथी समूह ने अगर काबुल पर कब्ज़ा कर लिया तो चाबहार में भारत का पूरा निवेश डूब जाएगा।
- अफगानिस्तान में भी भारत को ऐसे ही कुछ हालातों से दो चार होना पड़ रहा है, जहाँ भारत लगभग दो अरब डॉलर (करीब 136.5 अरब रुपए) का निवेश कर भी चुका है। लेकिन उसे यह पता नहीं कि इस निवेश का कोई लाभ भी होगा या नहीं?
- इन सभी आशंकाओं के बावजूद हमें चाबहार की अहमियत तो पहचाननी ही होगी। अफगानिस्तान तक सामान पहुँचाने के लिये यह सबसे बढ़िया रास्ता है, यहाँ वे तमाम सुविधाएं हैं, जिनके मार्फत सिस्तान, बलूचिस्तान, खोरासान प्रांतों तक भी आसानी से व्यावसायिक पहुँच बनाई जा सकती है।
- भारत का मूंदड़ा बंदरगाह यहाँ से सिर्फ 900 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसका अपना बड़ा बाज़ार है और जहाँ राजनीतिक स्थायित्व भी है। ऐसे में चाबहार मुक्त क्षेत्र में मौजूद असीमित संभावनाओं का पूरा लाभ लिया जा सकता है। संयुक्त, विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित कर यहाँ एक समृद्ध औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा सकता है, जो कि भारत को जल्द से जल्द करना चाहिये।