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स्वास्थ्य क्षेत्र में दलित महिलाओं की चिंतनीय दशा

  • 07 Jun 2018
  • 5 min read

संदर्भ

भारत में दलित महिलाओं की सवर्ण जाति की महिलाओं की तुलना में कम उम्र में मृत्यु हो जाती है। उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में भेदभाव का सामना करना पड़ता है और लगभग सभी स्वास्थ्य संकेतकों में दलित महिलाएँ पीछे रहती हैं। यह तथ्य हाल ही के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों से निकल कर सामने आया है।

प्रमुख बिंदु 

  • दलितों के विरुद्ध हिंसा भले ही बाहरी दुनिया के लिये भेदभाव का दिखता हुआ मुख्य कारक हो सकता है, लेकिन कई अन्य कारक भी हैं, जो दलितों के साथ भेदभाव की वजह बनते हैं। स्वास्थ्य उन्हीं में से एक कारक है।
  • दलितों के लिये, जो देश की कुल जनसंख्या का 16.6% हैं, स्वास्थ्य असमानताएँ पूर्व  और वर्तमान में हो रहे भेदभावों का परिणाम हैं। इनके अंतर्गत सीमित शैक्षिक अवसर, उच्च स्वास्थ्य जोखिम वाले व्यवसायों को अपनाने की मजबूरी, भूमिहीनता और रोजगार,आवास जैसे अन्य संसाधनों तक पहुँच में भेदभाव आदि कारक शामिल हैं।
  • स्वास्थ्य से संबंधित लगभग सभी मानकों में दलित महिलाओं का राष्ट्रीय औसत से खराब प्रदर्शन रहा है। जैसे- एनीमिया के मामले में हालिया आँकड़ों के अनुसार, 25-49 आयु वर्ग की जो महिलाएँ एनीमिया का शिकार हुईं, उनमें से 55.9% दलित समुदाय से संबंधित हैं। जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 53% है।
  • हालाँकि, एनीमिया भारत में महिलाओं द्वारा झेली जाने वाली व्यापक समस्या है, लेकिन दलित महिलाओं के संदर्भ में यह समस्या और जटिल हो जाती है।
  • जीवन प्रत्याशा के संदर्भ में, दलित महिलाओं की मृत्यु की औसत आयु सवर्ण महिलाओं से 14.6 साल कम है। उच्च जाति की महिलाओं की औसत मृत्यु आयु 54.1 वर्ष है, जबकि दलित महिलाओं के लिये यह 39.5 वर्ष है।  
  • भारतीय कानून के तहत अस्पृश्यता के आधार पर अस्पताल, डिस्पेंसरी आदि में प्रवेश से इनकार करना एक दंडनीय अपराध है। फिर भी, उत्तर प्रदेश के पूरनपुर में 2016 में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नर्सिंग स्टाफ ने कथित तौर पर एक गर्भवती दलित महिला को एडमिट करने से इनकार कर दिया। महिला को बिना किसी की सहायता के बच्चे को जन्म देना पड़ा। परिणामस्वरूप, जन्म के कुछ घंटे पश्चात् बच्चे ने दम तोड़ दिया।
  • भेदभाव का यह एकमात्र मामला नहीं है। दलितों को अस्पतालों में प्रवेश न देने या उपचार प्रदान न करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। साथ ही बहुत सारे ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिनमें उन्हें एडमिट तो कर लिया गया, लेकिन उनके साथ उपचार में भेदभाव बरता गया।
  • एनएफएचएस के आँकड़ों के अनुसार, दलित समुदाय की महिलाओं में से 70.4% को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच स्थापित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसके लिये अस्पताल जाने की इजाजत न मिलना, स्वास्थ्य सुविधाओं की दूर अवस्थिति, धन की कमी जैसे कारणों को जिम्मेदार पाया गया। 
  • संस्थागत और घरेलू प्रसव के संदर्भ में पिछले पाँच वर्षों में दलित समुदाय की 15-49 वर्ष आयु वर्ग की  52.2% महिलाओं ने डॉक्टर की उपस्थिति में बच्चे को जन्म दिया, जबकि उच्च जाति की महिलाओं के मामले में यह आँकड़ा 66.8% था।
  • दलित महिलाओं की पोषण संबंधी स्थिति: 15-49 आयु वर्ग की दलित समुदाय की महिलाओं में प्रत्येक चार में से एक महिला को बॉडी मास इंडेक्स (BMI) के अनुसार अल्प-पोषित करार दिया गया है, जबकि उच्च जाति की महिलाओं के संदर्भ में यह स्थिति प्रत्येक छह में से एक महिला के स्तर पर थी।
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