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जैव विविधता और पर्यावरण

हड़प्पा सभ्यता और जलवायु परिवर्तन

  • 19 Nov 2018
  • 6 min read

संदर्भ

हाल ही में किये गए एक अध्ययन में यह खुलासा किया गया है कि हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने की वज़ह जलवायु परिवर्तन हो सकता है। अध्ययन के मुताबिक, लगभग 3000-4500 वर्ष पहले वायु तथा वर्षा के पैटर्न में बदलाव की वज़ह से तीक्ष्ण शीतकालीन मानसून का ह्रास होना शुरू हुआ होगा। सबसे पहले नमीयुक्त शीतकालीन मानसून ने शहरी हड़प्पाई समाज को ग्रामीण समाज में बदल दिया होगा, जिसके परिणामस्वरूप हड़प्पा वासियों ने घाटी से हिमालय के मैदानी क्षेत्रों में पलायन करना शुरू कर दिया होगा। इसके बाद शीतकालीन मानसून का और अधिक ह्रास ग्रामीण हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने की वज़ह बना होगा।

महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष

  • वैज्ञानिकों के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह द्वारा किये गए इस अध्ययन का शीर्षक ‘नियोग्लेशियल क्लाइमेट एनॉमलीज़ एंड हड़प्पाई मेटामॉरफोसिस (Neoglacial climate anomalies and the Harappan metamorphosis)’ था।
  • वैज्ञानिकों ने अरब सागर के पाकिस्तान के महाद्वीपीय मार्जिन से तलछट इकठ्ठा किया, पिछले 6,000 वर्षों के भारतीय शीतकालीन मानसून जैसा वातावरण पुनर्निर्मित किया और समुद्री जीवाश्म तथा समुद्री डीएनए की जाँच की।
  • सिंधु घाटी के तापमान तथा मौसम के पैटर्न में बदलाव की वज़ह से ग्रीष्मकालीन मानसूनी बारिश में धीरे-धीरे कमी आने लगी जिस वज़ह से हड़प्पाई शहरों के आस-पास कृषि कार्य किया जाना मुश्किल या असंभव हो गया।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों में बाढ़ की तीव्रता और संभाव्यता लगातार कम होती गई जिससे कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ा। सरस्वती का जलमार्ग, घग्गर-हकरा संभवतः उस दौरान ही शुष्क हुआ होगा।
  • जलवायु में इस प्रकार के परिवर्तनों की वज़ह से ही हड़प्पा सभ्यता के विनाश की शुरुआत हुई होगी।
  • जलवायु से संबंधित इन विसंगतियों की समाप्ति के बाद 3000-3300 वर्ष के दौरान शीतकालीन मानसून के ह्रास की शुरुआत हुई।

सिंधु घाटी और मानसून

  • यह सभ्यता सिंधु नदी के जलोढ़ मैदानों तथा उसके आसन्न क्षेत्रों पर विकसित हुई थी।
  • अध्ययन के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता में शहरों के नज़दीक बड़े पैमाने पर नहरों द्वारा सिंचाई के माध्यम से जल संसाधनों को नियंत्रित करने के लिये बहुत कम प्रयास किये गए थे। हड़प्पावासी मुख्य रूप से सर्दियों की फसलों के लिये नदियों पर तथा गर्मियों की फसलों के लिये बारिश पर निर्भर रहते थे।
  • यद्यपि शहरी हड़प्पाई सभ्यता के विनाश की वज़ह ग्रीष्मकालीन मानसून था, अध्ययन इस ओर भी इंगित करता है कि हड़प्पा की कृषि अर्थव्यवस्था जल-उपलब्धता पर बहुत ज़्यादा निर्भर थी।
  • हालाँकि उत्तर हड़प्पाई सभ्यता की दीर्घकालिक उत्तरजीविता अब भी अध्ययन का विषय है।

साक्ष्य

  • शोधकर्त्ताओं की टीम सिंधु नदी के उद्गम स्थल के पास समुद्र तल की तलछट पर केंद्रित थी, जहाँ ऑक्सीजन की बहुत कम मात्रा होने की वज़ह से उत्पन्न या मृत होने वाली चीज़ें तलछटों में बहुत अच्छी तरह से संरक्षित होती हैं।
  • नमूने या साक्ष्य का संग्रह सामरिक स्थानों पर कोरिंग (किसी भी वस्तु का केंद्रीय भाग काटकर निकालना) के माध्यम से किया गया था जिन्हें चर्प (ध्वनि) का उपयोग करके चुना गया था। चर्प एक ध्वनिक उप-तल प्रोफाइलर होता है जो समुद्री शैवाल पर तलछट का चित्रण करता है।
  • कोरिंग करने वाले पिस्टन की सहायता से सागर की तली से तलछट का एक बेलन निकाला गया। वैज्ञानिक तली से निकाले गए ऐसे ही नमूनों से कैल्शियम कार्बोनेट के छोटे शेल निकालकर उनकी गिनती करते हुए यह अवलोकन करते हैं कि उनमें से कितने शीतकालीन मानसून की स्थितियों हेतु विशिष्ट हैं।

कार्य-क्षेत्र और सीमाएँ

  • हालाँकि यह अध्ययन हड़प्पाई बस्तियों में गर्मी और सर्दियों की वर्षा में विविधता के व्यापक स्थानिक और लौकिक पैटर्न प्रदर्शित करता है लेकिन साथ ही यह भी स्वीकार करता है कि इसमें ‘स्थानीय हाइड्रोक्लाइमेट पहलुओं’ पर पूरी तरह से विचार नहीं किया गया है।
  • सिंधु सभ्यता की कहानी आज इसलिये महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से संबंधित विभिन्न ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करती है। सिंधु घटी सभ्यता के लोग बुद्धिमान थे और जलवायु परिवर्तन से निपट सकते थे। लेकिन वे विस्थापित हो गए और नई परिस्थितियों के अनुरूप ढल गए। एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिरकार उन्होंने यह कुर्बानी किसलिये दी?
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