अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ऑनर किलिंग पर सर्वोच्च न्यायालय का फरमान
- 28 Mar 2018
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
मंगलवार (27 मार्च, 2018) को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में दो वयस्कों की शादी पर खाप पंचायतों के किसी भी प्रकार के दखल को गैर-कानूनी करार दे दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला एक एनजीओ शक्ति वाहिनी द्वारा दायर याचिका की सुनवाई में सुनाया। एनजीओ ने 2010 में ऑनर किलिंग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को सम्मान के लिये अपराधों को रोकने और नियंत्रित करने की मांग की गई थी।
तीन जजों की पीठ का फैसला
- मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने खाप पंचायतों के संबंध में यह फैसला सुनाया। इस पीठ में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड भी शामिल थे।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि अलग-अलग समुदायों से संबंध रखने वाले 2 वयस्क अपनी मर्जी से शादी का निर्णय करते हैं अथवा शादी करते हैं, तो किसी रिश्तेदार या पंचायत को न तो उन्हें धमकाने और न ही उन पर किसी प्रकार की हिंसा करने का कोई अधिकार है।
- खाप पंचायतों के फैसलों को अवैध करार देते हुए न्यायालय ने कहा कि ऑनर किलिंग के संबंध में लॉ कमीशन की सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है। अर्थात् जब तक इस संबंध में नए कानून नहीं बन जाते हैं, तब तक मौजूदा आधार पर ही कार्रवाही की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों की रोकथाम और सज़ा के लिये एक गाइडलाइन जारी की हैं। न्यायालय के अनुसार, ये गाइडलाइन तब तक जारी रहेंगी, जब तक नया कानून लागू नहीं हो जाता है।
- वर्तमान समय में ऑनर किलिंग के मामलों में आईपीसी की धारा के तहत, कार्रवाही की व्यवस्था है।
गैर-जातीय विवाह को सुरक्षा देने संबंधी पक्ष
- इस याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा ऑनर किलिंग को रोकने के लिये न्यायालय से देश के सभी राज्यों के लगभग प्रत्येक ज़िले में एक स्पेशल सेल बनाने के निर्देश जारी करने को कहा गया है।
- गैर-जातीय विवाह की स्थिति में राज्य सरकारों द्वारा शादीशुदा जोड़े हेतु सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- किसी भी तरीके से यदि शादीशुदा जोड़े को धमकी दी जाती है, तो उन्हें इस संबंध में नज़दीकी मैरिज अफसरों को शिकायत दर्ज़ करानी चाहिये, ताकि उनको सही समय पर सुरक्षा प्रदान की जा सके।
प्रिवेंशन ऑफ क्राइम इन द नेम ऑफ ऑनर बिल, 2010
(Prevention of Crimes in the Name of ‘Honour’ and Tradition Bill, 2010)
- इस बिल में किसी दंपती के विवाह को अस्वीकार करने के उद्देश्य से किसी भी समुदाय या गाँव की सभा, जैसे कि खाप पंचायत के आयोजन पर प्रतिबंध लगाने की बात शामिल है।
- इसमें नवविवाहित जोड़ों के बहिष्कार पर प्रतिबंध के साथ-साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसे पक्षों को भी शामिल किया गया है।
- इसके अतिरिक्त, स्वयं को निर्दोष साबित करने का दायित्व आरोपी का होगा, इसकी भी व्यवस्था की गई है।
बिल का महत्त्व
- अनुच्छेद 19 और 21 के तहत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद की स्वतंत्रता का सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित करना।
- यह निश्चित रूप से देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महिलाओं की समान भागीदारी को सुनिश्चित करना।
क्या होती है खाप पंचायत?
- एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। यह पाँच गाँवों की भी हो सकती है और 20-25 गाँवों की भी हो सकती है। जिस क्षेत्र में जो कोई गोत्र अधिक प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में सबसे अधिक दबदबा होता है।
- ऐसा नहीं है कि कम जनसंख्या वाले गोत्र पंचायत का हिस्सा नहीं होते हैं, अंतर केवल इतना है कि इनका प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है।
- किसी भी फैसले के समय सभी गाँववालों को पंचायत में आमंत्रित किया जाता है, चाहे वे शामिल हों अथवा न हों। इसके बाद पंचायत द्वारा जो भी फैसला लिया जाता है, वह सर्वसम्मति से लिया गया फैसला मानकर सभी पर लागू होता है।
- ये पारंपरिक पंचायतें होती हैं, स्पष्ट है कि इन्हें किसी प्रकार की कोई कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती है।
खाप पंचायतों का पक्ष
- रोहतक की सर्व खाप पंचायत द्वारा एक हलफनामे में खाप पंचायतों का पक्ष रखते हुए कहा गया था कि “ऑनर किलिंग के मामलों में मुख्य अपराधी खाप प्रतिनिधि नहीं होते हैं बल्कि मामले से संबंधित युगल के करीबी रिश्तेदार अथवा परिवार के लोग ही होते हैं। विशेषकर लड़की पक्ष।
- स्पष्ट रूप से यदि न्यायालय द्वारा खाप पंचायतों के आचरण और भूमिका को विनियमित करने संबंधी प्रयास किये भी जाते हैं, तो भी उनसे ऑनर किलिंग की घटनाओं पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा।
- खाप पंचायतों द्वारा, इस फैसले का पुरजोर विरोध करते हुए इस संबंध में पुनर्विचार की अपील की गई है। खाप प्रधानों एवं प्रतिनिधियों द्वारा कहा गया है कि सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिये खाप एक बेहद अहम् भूमिका निभाती है।
- खाप पंचायतें अलग-अलग जातियों, धर्मों, पंथों अथवा क्षेत्रों के लोगों द्वारा विवाह किये जाने के विरुद्ध काम नहीं करती हैं, बल्कि यह केवल सगोत्र विवाह के खिलाफ है।
- इतना ही नहीं खाप द्वारा सगोत्र विवाह को गैर-कानूनी घोषित किये जाने के संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में आवश्यक संशोधन करने की भी मांग की गई थी, जो पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक कानून है।