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हिमालय के जीवाश्म और उनका महत्त्व

  • 16 Aug 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ? 
हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति घाटी के दूर-दराज़ के गाँवों में सौ करोड़ साल पहले के जीवाश्मों को पर्यटक स्मृति चिन्ह के रूप में बेचा जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप का प्राचीन भूवैज्ञानिक इतिहास का महत्त्वपूर्ण संपर्क नष्ट हो रहा है।

इन जीवाश्मों को स्थानीय दुकानों और भोजनालयों से मात्र 50 रुपए में खरीदा जा सकता है। 

समुद्री अनुक्रम के हिस्से के रूप में वर्णित इन भौगोलिक अवशेषों को शिमला से करीब 200 किलोमीटर दूर स्पीति घाटी के लाहौल और स्पीति ज़िले में लालुंग, मड, कॉमिक, हिक्किम और लैंग्जा गाँवों के पहाड़ों में पाया जा सकता है।

कौन-कौन से जीवाश्म 

  • इनमें 250 मिलियन से 199 मिलियन वर्ष पुराने त्रिआसिक (Triassic) काल के प्रवाल रीफ तथा 199 मिलियन से 145 मिलियन वर्ष पूर्व के बीच के ट्राएसिक-जुरासिक काल के अमोनोइड्स को बेचा जा रहा है। 
  • पाराहिओ घाटी में स्थित तीन स्थानों में से दो स्थानों में त्रिलोबाइट (Trilobite) के निशान के साथ विशाल बिच्छू के जीवाश्मों का पता लगाया गया था, जो पिन घाटी तक सड़क निर्माण के दौरान नष्ट हो गए हैं। 
  • विशाल बिच्छू का निशान अद्वितीय है और यह केवल अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया और स्पिति घाटी में ही पाया जाता है।

बढ़ता पर्यटन 

  • पुरातत्त्वविज्ञानी स्पीति घाटी को ‘भारतीय भूविज्ञान के संग्रहालय’ की संज्ञा देते हैं। स्पीति घाटी में पर्यटन वृद्धि ने इनके क्षय में योगदान दिया है।
  • कई पर्यटक यहाँ जीवाश्मों की उपलब्धता के बारे में जानते हैं और उन्हें खरीदने की पेशकश करते हैं। इंटरनेट पर यहाँ के जीवाश्मों की खूब चर्चाएँ चलती हैं। 
  • पिछले दो सालों में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि से जीवाश्मों की मांग अत्यधिक हुई है। 
  • आगंतुकों को जीवाश्मों को न खरीदने के लिये चेतावनी देने संबंधी कोई भी संकेत नहीं हैं। यहाँ का परिदृश्य इतना विशाल है कि इनकी निगरानी करना एक बड़ी समस्या है। स्थानीय लोग भी इस खजाने के महत्त्व से अवगत नहीं हैं।

समस्या क्या है ? 

  • भूवैज्ञानिक विशेषज्ञों के अनुसार जीवाश्मों की हानि एक गंभीर समस्या है। यदि इसे रोका नहीं गया तो यह अनुसंधान को प्रभावित करेगी।
  • वैसे बहुत सारे जीवाश्मों को रिकॉर्ड किया जाता है। वे कोलकाता स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में या आगे के अध्ययन के लिये  विभिन्न विश्वविद्यालयों के संग्रहालयों में पंजीकृत हैं।

जीवाश्मों का क्या उपयोग है ?

  • जीवाश्म विश्व के प्राचीन भूगोल के निर्माण में मदद करते हैं। 
  • भूवैज्ञानिक विशेषज्ञों के अनुसार जीवाश्मों के अध्ययन से ही पता चलता है कि हिमालय का यह क्षेत्र कभी दक्षिणी टेथिस सागर का हिस्सा था। 
  • जीवाश्म वैश्विक समय की एक अनुक्रमणिका बनाने में मदद करते हैं और उन्हें दुनिया की अन्य जगहों के साथ प्लेट संरचनाओं से जोड़ते हैं। प्लेट्स ऐसी संरचनाएँ  हैं जो पृथ्वी के आवरण पर खिसकती हैं।
  • वैज्ञानिकों की रुचि भारतीय प्लेट  के अलगाव, 542 मिलियन वर्ष  से 50 मिलियन वर्ष पहले इसकी यूरेशियन प्लेट के साथ टक्कर और विकास को समझने में है। यह क्षेत्र भारत के पूरे भू-वैज्ञानिक इतिहास की जानकारी प्रदान करता है। 
  • स्पीति घाटी का उत्तराधिकार कैम्ब्रियन (542 मिलियन से 488 मिलियन वर्ष के बीच) से क्रेटेसियस (145 मिलियन से 65 मिलियन वर्ष के बीच ) काल तक लगातार है, जिससे यह पुरातत्त्वविज्ञानियों के लिये  एक लोकप्रिय स्थल बन गया है।
  • स्पीति घाटी में पाया जाने वाला ट्रायासिक प्राणीजात ( Triassic fauna )  आल्प्स, ओमान और तिमोर के प्राणीजात के समानांतर है।

संरक्षण के लिये  प्रोटोकॉल

  • जीवाश्मों के संरक्षण के लिये अन्य देशों में सख्त प्रोटोकॉल हैं और वे जीवाश्म के महत्त्व के बारे में जानते हैं। यदि कोई जीवाश्म दुर्लभ होता है तो उसे लेने की अनुमति किसी को नहीं होती है और यदि वे बहुतायत में हैं तो उनके अध्ययन की अनुमति दी जाती है।
  • भारत में भी अद्वितीय भौगोलिक स्मारकों को संरक्षित करने के लिये  कानून की तत्काल आवश्यकता है। जिस तरह भारतीय पुरातत्त्व  सर्वेक्षण भारतीय पुरातात्त्विक स्थलों की देखरेख करते हैं, उसी तरह जीएसआई (GSI) सभी भूवैज्ञानिक सुविधाओं का संरक्षण  करेगा।
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