तेल की ऊँची कीमतों के बावजूद प्रेषित धन की प्राप्ति में कमी आने के आसार | 12 Jun 2018
चर्चा में क्यों ?
भारत वर्ष 2017 में प्रेषित धन (remittances) का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता था। 2017 में प्राप्त हुआ प्रेषित धन 2016 से 10 प्रतिशत अधिक था। लेकिन अनुमानों के मुताबिक इसमें आने वाले समय में कमी आ सकती है।
प्रमुख बिंदु
- भारत आमतौर पर खाड़ी क्षेत्र से प्रेषण का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करता है और वैसा ही 2017 में भी हुआ।
- चूँकि प्रेषित धन का बड़ा हिस्सा मध्य-पूर्व से आता है, अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि इसका प्रवाह और पैटर्न कच्चे तेल की कीमतों के साथ सघनता से संबंधित होता है, क्योंकि मध्य-पूर्व के अधिकांश देश तेल-आधारित अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
- लेकिन इस ट्रेंड में बदलाव आ सकता है। खाड़ी देशों में राष्ट्रवादी भावनाएँ उत्थान पर हैं, जो भारत को प्रेषित होने वाले धन के लिये मुश्किलें पैदा कर सकती हैं, फिर भले ही तेल की कीमतें मज़बूत क्यों न हों।
- खाड़ी देशों में नौकरियों में विदेशी लोगों की अपेक्षा स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी रही है एवं वहाँ की सरकारें सार्वजनिक खर्चों में बढ़ोतरी कर रही हैं।
- प्रेषित धन के स्रोत वाले शीर्ष सात में से पाँच देशों द्वारा अपनाई जा रही स्थानीय भर्ती संबंधी योजनाएँ/कानून तेल की ऊँची कीमतों के कारण हो सकने वाली प्रेषित धन की मात्रा में बढ़ोतरी में बड़ी बाधक बन सकती हैं।
- ये पाँच देश संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान है। इन देशों की नीतियाँ कार्यबल के आवश्यक प्रतिशत की पूर्ति अपने देशों के नागरिकों से करने पर ध्यान केंद्रित कर रहीं हैं।
- अनुमानों के अनुसार, आगामी तिमाहियों में सऊदी अरब, कुवैत और ओमान में कुछ चुनिंदा नौकरियाँ/ सेक्टर इन देशों से होने वाले धन प्रेषण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले हैं।
- हालाँकि, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (विशेष रूप से अमेरिका) में मजबूत आर्थिक स्थितियों द्वारा भारत की समग्र प्रेषण प्राप्ति में कुछ सहारे की उम्मीद है। स्मरणीय है कि 2017 में अमेरिका दूसरा प्रमुख योगदानकर्त्ता था, जो भारत को होने वाले प्रेषण की 17% हिस्सेदारी के लिये जिम्मेदार था।
- खाड़ी क्षेत्र में उभरते प्रेषण संबंधी संबंधी जोखिम से भारत के चालू खाता घाटा (current account deficit) की स्थिति भी प्रभावित हो सकती है।