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कृषि

चावल की हर्बीसाइड-टोलेरेंट किस्म

  • 28 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR), इमाज़ेथापायर

मेन्स के लिये

चावल की नई किस्मों का लाभ, धान रोपाई vs धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान’ (IARI) ने देश की पहली गैर-जीएम (आनुवंशिक रूप से संशोधित) हर्बीसाइड-टोलेरेंट चावल की किस्में (पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985) विकसित की हैं।

  • इन किस्मों को प्रत्यक्ष तौर पर बोया जा सकता है और पारंपरिक रोपाई की तुलना में इनमें पानी एवं श्रम की काफी बचत होती है।
  • ICAR-IARI एक डीम्ड यूनिवर्सिटी है।

प्रमुख बिंदु

  • चावल की नई किस्मों के विषय में:
    • नई किस्मों में एक उत्परिवर्तित ‘एसीटोलैक्टेट सिंथेज़’ (ALS) जीन शामिल है, जो किसानों के लिये खरपतवारों को नियंत्रित करने हेतु एक व्यापक स्पेक्ट्रम हर्बिसाइड- ‘इमाज़ेथापायर’ का छिड़काव करना संभव बनाता है।
      • चावल में ‘एसीटोलैक्टेट सिंथेज़’ जीन एक एंज़ाइम (प्रोटीन) कोड है, जो फसल की  वृद्धि एवं विकास के लिये अमीनो एसिड का संश्लेषण करता है।
      • सामान्य चावल के पौधों पर छिड़काव किया जाने वाला हर्बीसाइड अमीनो एसिड के उत्पादन को बाधित करता है।
    • ‘इमाज़ेथापायर’ चौड़ी पत्ती, घास और खरपतवारों के विरुद्ध प्रभावी होता है, हालाँकि सामान्य धान की किस्मों पर इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह फसल और आक्रामक पौधों के बीच अंतर नहीं करता है।
    • हालाँकि नई बासमती किस्मों में एक उत्परिवर्तित ‘एसीटोलैक्टेट सिंथेज़’ (ALS) जीन मौजूद होता है जिसका डीएनए अनुक्रम एक रासायनिक उत्परिवर्ती एथिल मिथेनसल्फोनेट का उपयोग करके बदल दिया गया है।
      • नतीजतन ‘एसीटोलैक्टेट सिंथेज़’ एंज़ाइम में अब इमाज़ेथापायर के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, जिससे अमीनो एसिड संश्लेषण बाधित नहीं होता है।
    • इससे पौधे हर्बीसाइड के अनुप्रयोग को ‘टोलेरेट’ कर सकते हैं और इस प्रकार हर्बीसाइड केवल खरपतवार एवं आक्रामक पौधों के लिये विनाशकारी है।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है, चूँकि इस प्रक्रिया में कोई विदेशी जीन शामिल नहीं है, इसलिये हर्बीसाइड-टोलेरेंट का गुण उत्परिवर्तन प्रजनन के माध्यम से उत्पन्न होता है। इस प्रकार यह किस्म आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म नहीं है।
  • इन किस्मों के लाभ:
    • धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण: नई किस्में बस पानी को इमाज़ेथापायर (Imazethapyr) से बदल देती हैं और नर्सरी, पोखर, रोपाई तथा खेतों में अधिक जल की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
      • पानी एक प्राकृतिक शाकनाशी है जो धान की फसल के शुरुआती विकास की अवधि में खरपतवारों को उत्पन्न नहीं होने देता है।
      • नई किस्मों से धान के प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) में मदद मिलेगी, जिसके धान की रोपाई में कई फायदे हैं।
    • सस्ता विकल्प: DSR की खेती वर्तमान में दो जड़ी-बूटियों, पेंडीमेथालिन और बिसपायरीबैक-सोडियम पर आधारित है।
      • हालाँकि इमाज़ेथापायर इन दो विकल्पों की तुलना में सस्ता है।
    • सुरक्षित विकल्प: इसके अलावा इमाज़ेथापायर की व्यापक खरपतवार नियंत्रण सीमा है और यह सुरक्षित है, क्योंकि ALS जीन मनुष्यों और स्तनधारियों में मौजूद नहीं हैं।. 

धान रोपाई vs धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण

  • धान रोपाई: 
    • जिस खेत में धान की रोपाई की जाती है, उसकी जुताई पानी भरने के दौरान की करनी पड़ती है।
    • रोपाई के बाद पहले तीन हफ्तों तक 4-5 सेंटीमीटर पानी की गहराई बनाए रखने के लिये पौधों को लगभग दैनिक रूप से सिंचित किया जाता है।
    • किसान दो-तीन दिनों के अंतराल पर खेतों में पानी भरते हैं, यहाँ तक ​​कि अगले चार-पाँच सप्ताह तक जब फसल टिलरिंग (तना विकास) अवस्था में होती है।
    • धान की रोपाई श्रम और जल-गहन है।
  • धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR):
    • DSR में पहले से अंकुरित बीजों को ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन द्वारा सीधे खेत में ड्रिल किया जाता है।
    • इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयारी या प्रत्यारोपण शामिल नहीं है।
    • किसानों को केवल अपनी ज़मीन को समतल करना होता है और बुवाई से पहले सिंचाई करनी होती है।
  • धान के प्रत्यक्ष बीजारोपण के लाभ:
    • पानी की बचत।
    • श्रमिकों की कम संख्या की आवश्यकता।
    • श्रम लागत में बचत।
    • कम बाढ़ अवधि मीथेन उत्सर्जन को सीमित कर चावल की रोपाई की तुलना में मिट्टी के क्षरण को कम करती है।
  • धान के प्रत्यक्ष बीजारोपण से हानि:
    • रोपाई में 4-5 किग्रा/एकड़ की तुलना में DSR में 8-10 किग्रा/एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा DSR में लेज़र लैंड लेवलिंग अनिवार्य है। रोपाई में ऐसा अपरिहार्य नहीं है।
    • बुवाई समय पर करने की आवश्यकता होती है ताकि मानसून की बारिश से पहले पौधे ठीक से निकल आए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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