वैक्सीन आधारित प्रतिकूल घटनाओं की समीक्षा | 31 Jan 2018
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पिछले दो वर्षों की तुलना में वर्ष 2017 में टीकाकरण के बाद होने वाली "प्रतिकूल घटनाओं" में वृद्धि के संबंध में अध्ययन किया जा रहा है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- द हिंदू समाचार-पत्र द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, पिछले साल अप्रैल और दिसंबर के बीच प्रतिरक्षण (immunization) के बाद तकरीबन 1,139 बच्चों की मृत्यु हुई।
- तुलनात्मक रूप से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इसी समयावधि में वर्ष 2016 और 2015 में क्रमशः 176 और 111 बच्चों की मृत्यु हुई थी।
- आपको सूचित करते चले कि ये सभी आँकड़े स्वास्थ्य मंत्रालय के डेटाबेस से संकलित किये गए हैं।
- हालाँकि, इस संबंध में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि टीकाकरण के बाद एक निश्चित अवधि में जिन बच्चों की मृत्यु वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव या अनुचित प्रशासन या टीके में निहित दोषों के कारण हुई है। उनमें ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जो पहले से ही या तो गंभीर रूप से बीमार थे या जन्मजात बीमारियों से ग्रसित थे।
- द हिंदू समाचार-पत्र द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, 2017 के आँकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Events Following Immunisation -AEFI) के कारण होने वाली मौतों की संख्या अन्य वर्षों की अपेक्षा थोड़ी अधिक रही है, हालाँकि इस संबंध में अभी जाँच चल रही है।
टीकाकरण क्या है?
- टीकाकरण एक प्रक्रिया है। आमतौर पर इस प्रक्रिया में टीकाकरण की समय-सारणी के पालन द्वारा व्यक्ति को प्रतिरक्षित या संक्रामक रोगों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता को विकसित किया जाता है।
- टीकाकरण बच्चे को जान लेवा रोगों से बचाने में मदद करता है। यह दूसरे व्यक्तियों में रोग के प्रसारण को कम करने में भी मदद करता है।
- टीका व्यक्ति के शरीर को संक्रमण या बीमारी से बचाने के लिये उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बच्चे कुछ तरह की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता के साथ पैदा होते हैं। यह प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता उन्हें स्तनपान के माध्यम से अपनी माता से प्राप्त होती है।
- यह प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है, क्योंकि बच्चे की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित होना शुरू हो जाती है।
- टीकाकरण स्वास्थ्य निवेश के सबसे कम लागत वाले प्रभावी उपायों में से एक है। टीकाकरण के लिये जीवन शैली में कोई विशेष परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं होती है।
रिपोर्ट तैयार करने का आधार क्या है?
- भारत के एईएफआई आँकड़ों को ज़िला अधिकारियों द्वारा संकलित किया जाता है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की राष्ट्रीय एईएफआई समिति द्वारा इन आँकड़ों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है।
- वस्तुतः इस समस्त प्रक्रिया में उन मामलों की खोज पर विशेष बल दिया जाता है जिनका वैक्सीन के प्रबंधन के साथ कोई भी लिंक हो सकता है।
- राष्ट्रीय एईएफआई समिति (National AEFI committee) द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2012-2016 के दौरान एईएफआई के केवल 132 गंभीर मामले दर्ज किये गए थे, जिनमें से 54 बच्चों की मृत्यु हो गई थी।
- इन सभी मामलों में जीवित बचे बच्चों में से लगभग 50% को प्रतिक्रियाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया। गौर करने वाली बात यह है कि केवल वैक्सीन के कारण किसी बच्चे की मृत्यु नहीं हुई।
डेटा की प्रामाणिकता सटीक नहीं है
- देश के सभी राज्यों से अलग-अलग यह डेटा एकत्रित किया जाता है, स्पष्ट है कि इसके संबंध में गुणवत्ता का मुद्दा हमेशा बना रहता है।
- ऐसे में प्रामाणिकता का प्रश्न बेहद गंभीर मुद्दा बना जाता है। कभी-कभी डेटा को सत्यापित करने में ही तीन साल लग जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव होने वाली घटनाओं के विषय में बहुत कम सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इसका एक अहम् कारण यह है कि एईएफआई पैनल की साल भर में केवल चार बार ही मुलाकात होती है। ऐसे में इस संबंध में अधिक गंभीर कार्यवाही की उपेक्षा रखना कितना उचित है यह एक विचारणीय प्रश्न है।
यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme (U.I.P.))
- भारत का सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। यह दुनिया में सबसे अधिक लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम है।
उद्देश्य
- तेज़ी से टीकाकरण कवरेज को बढ़ाना।
- सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना।
- स्वास्थ्य सुविधा के स्तर पर विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम स्थापित करना।
- प्रबंधन की देख-रेख करना।
- वैक्सीन के निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
प्रमुख बिंदु
- इस कार्यक्रम के तहत गुणवत्तापूर्ण वैक्सीन का उपयोग करना, अधिक-से-अधिक लाभार्थियों तक पहुँच सुनिश्चित करना, टीकाकरण स्तरों का आयोजन करना, भौगोलिक प्रसार एवं क्षेत्रीय विविधता को कवर करने जैसे पक्षों को शामिल किया गया है।
- इसके तहत निःशुल्क टीकाकरण किया जाता है। सभी लाभार्थियों को नज़दीक के सरकारी/निजी स्वास्थ्य केन्द्रों या आंगनवाड़ी केन्द्रों पर टीके लगाए जाते हैं।
- इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1985 में की गई थी।
- इस कार्यक्रम के तहत 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 2.7 करोड़ नवजात बच्चों के टीकाकरण का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित है।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत 12 रोगों के लिये टीकाकरण किया जाता हैं। वर्तमान में देश में टीकाकरण कवरेज लगभग 65% है जबकि, सरकार का लक्ष्य चालू वर्ष के अंत तक 90% कवरेज सुनिश्चित करना है।