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नाइजीरिया में स्वास्थ्य आपातकाल

  • 22 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

लासा बुखार, कोरोना वायरस

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य आपातकाल से संबंधित मुद्दे, लासा बुखार का कारण, प्रभाव एवं रोकथाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नाइजीरियाई विज्ञान अकादमी (Nigerian Academy of Science) ने देश में लासा बुखार (Lassa Fever) के मौजूदा प्रकोप की गंभीरता के कारण राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल (National Health Emergency) घोषित करने का आह्वान किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 1969 में जब इसे पहली बार पहचाना गया था तो यह केवल 2 राज्यों में फैला था जो वर्ष 2019 तक नाइजीरिया के 23 राज्यों में फैल चुका है।
  • वर्ष 2018 में नाइजीरियन सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (Nigerian Centre for Disease Control) ने 600 से अधिक पुष्ट मामलों और 170 से अधिक मौत से संबंधित मामलों की सूचना दी थी।
  • इसके अतिरिक्त हाल ही में चीन में फैले कोरोना वायरस के व्यापक प्रसार एवं प्रभाव के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने ‘अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ घोषित किया है।

संक्रमण का कारण

  • लासा बुखार एक वायरल रक्तस्रावी रोग है जो लासा वायरस के कारण होता है। यह वायरस चूहों के मल-मूत्र के संपर्क में आने से मनुष्य में प्रेषित होता है।
  • लासा वायरस खाँसी, छींक, स्तनपान और अन्य मानव संपर्क के साथ-साथ टिशू, रक्त, शरीर के तरल पदार्थ, स्राव या उत्सर्जन के संपर्क में आने से मानव में फैलता है तथा अस्पतालों में यह बीमारी दूषित उपकरणों से फैलती है।
  • लासा बुखार जानलेवा रोग है लेकिन अगर इसके बारे में जल्द पता चल जाए तो इसका इलाज किया जा सकता है। बीमारी के इलाज के लिये दवा भी उपलब्ध है। लेकिन इसके बावजूद इसका प्रभाव कम नहीं हो रहा है क्योंकि नाइजीरिया में प्रयोगशालाएँ अक्षम हैं तथा रोगियों को अस्पताल में देर से भर्ती किया जाता है।
  • इस रोग के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण देश में चूहों की संख्या में वृद्धि है जिसके कारण लोग प्रतिदिन चूहों के संपर्क में आते हैं और यह वायरस उन तक फैलता है।
  • इसके अतिरिक्त बीमारी पर अपर्याप्त ध्यान दिया जाना, टीकाकरण और दवाओं में शोध के लिये वित्तपोषण का अभाव, कमज़ोर रोग निगरानी और प्रतिक्रिया प्रणाली इत्यादि कारणों से भी नाइजीरिया में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हुई है।

रोग के लक्षण:

  • इस बुखार की इनक्यूबेशन अवधि लगभग 10 दिन (6-21 दिन की रेंज) है। शुरू में इसके लक्षण हल्के होते हैं और इनमें लो ग्रेड का बुखार एवं सामान्य कमज़ोरी शामिल है।
  • इसके बाद सिरदर्द और खाँसी, उबकाई और उल्टी-दस्त, मुँह के छाले तथा लसिका ग्रंथियों में सूजन इत्यादि समस्याएँ आती हैं।
  • इसके अतिरिक्त कुछ रोगियों को मांसपेशियों, पेट और सीने में दर्द की शिकायत भी होती है, बाद में मरीज़ों की गर्दन एवं चेहरे सूज जाते हैं तथा उनके मुँह और आंतरिक अंगों से खून निकलने लगता है।
  • आखिरी चरण में सदमा, दौरे, कंपकंपाहट और कोमा की दशा हो सकती है।

Lassa-fever

संक्रमण की रोकथाम के लिये संभावित उपाय

  • राज्य और संघीय स्तर पर सरकारों द्वारा एक व्यापक और निरंतर सार्वजनिक लासा बुखार रोकथाम और नियंत्रण जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।
  • राज्यों को लासा बुखार पीड़ितों का उपचार करने हेतु एक अलग वार्ड निर्मित करना चाहिये जिससे कि यह अन्य रोगियों में न फैले।
  • चूहों की जनसंख्या के साथ-साथ चूहों के साथ मानव संपर्क को कम करने के लिये पूरे देश में पर्यावरण स्वच्छता में सुधार हेतु एक तंत्र स्थापित करना चाहिये।
  • लासा बुखार के इलाज के लिये नई दवाओं की खोज और लासा बुखार के टीके के विकास हेतु फंड भी उपलब्ध कराया जाना चाहिये।

सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने का उद्देश्य

  • वर्ष 2014 में नाइजीरिया ने इबोला वायरस के प्रकोप से निपटने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल लागू किया था जिसके परिणामस्वरूप 93 दिनों में राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं पर्याप्त वित्तपोषण के कारण इसके प्रकोप को रोका जा सका था।
  • इसी प्रकार लासा बुखार के प्रकोप को भी आपातकालीन स्तर पर प्रयासों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
  • संदिग्ध मामलों के विश्वसनीय और कुशल निदान के लिये राष्ट्रीय प्रयोगशाला नेटवर्क की क्षमता बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा व्यापक प्रयास किया जाना अपेक्षित है क्योंकि इसके अभाव में आमतौर पर लासा बुखार के संदिग्ध मामलों में से मात्र 20 प्रतिशत मामलों का ही निदान संभव हो पा रहा है।

आगे की राह

  • सरकार को संवेदनशील रोग निगरानी और प्रतिक्रिया प्रणाली के लिये पर्याप्त धनराशि प्रदान करनी चाहिये।
  • सरकार को देश में स्वास्थ्य गतिविधियों पर निगरानी बनाए रखनी चाहिये तथा किसी भी अनियमितता की स्थिति में तुरंत रोकथाम का प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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