सुखना झील के समीप टाटा हाउसिंग के प्रोजेक्ट को दिल्ली उच्च न्यायालय का बड़ा झटका | 13 Apr 2017
संदर्भ
उल्लेखनीय है कि 12 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने टाटा कैमलॉट हाउसिंग कॉलोनी (CAMELOT इसे उच्च प्रदर्शन आवासीय सह-खुदरा परिसर भी कहा जाता है) के सम्बन्ध में निर्णय लेते हुए कहा कि यह क्षेत्र सुखना झील के अपवाह क्षेत्र में अवस्थित है| अत: न्यायालय ने टाटा हाउसिंग के प्रोजेक्ट को दी गई सभी पर्यावरणीय मंजूरी और अनुमतियों को अस्वीकार कर दिया|
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश जी.रोहिणी और न्यायाधीश राजीव सहाय की पीठ ने पंजाब के मोहाली जिले के कंसल गाँव में निर्माण के लिये टाटा हाउसिंग डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड (Tata HDCL) द्वारा प्रस्तावित प्रोजेक्ट को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को अस्वीकृत कर दिया है|
- विदित हो कि इस फैसले की सुनवाई अधिवक्ता आलोक जग्गा और सरीन मेमोरियल लीगल ऐड फाउंडेशन द्वारा दायर की गई याचिकों के संबंध में हुई थी|
- ध्यातव्य है कि इन याचिकाओं में विभिन्न आधारों पर इस हाउसिंग प्रोजेक्ट के निर्माण को दी गई मंजूरी को चुनौती दी गई थी|
- इन याचिकाओं में यह स्पष्ट किया गया था कि यह प्रोजेक्ट पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,1986 के अंतर्गत प्राधिकृत नहीं है|
- दरअसल, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायलय द्वारा इस प्रोजेक्ट के निर्माण को मंजूरी मिलने के पश्चात् इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया गया था|
- टाटा एच.डी.सी.एल. के इस प्रोजेक्ट में 52 एकड़ के क्षेत्र में 7 से 28 मजिलों के 19 टावरों का निर्माण प्रस्तावित हैं| यह क्षेत्र सुखना झील से 1500 मीटर और वन्य जीव अभ्यारण्य से मात्र 123 मीटर की दूरी पर स्थित है|
संवैधानिक पीठ का तर्क
- सर्वे ऑफ़ इंडिया के मानचित्रों के अनुसार, जिस क्षेत्र पर प्रोजेक्ट का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है, वह सुखना झील के अपवाह क्षेत्र में अवस्थित है|
- इसके अतिरिक्त इस प्रोजेक्ट के विकास के लिये पंजाब सरकार द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी पर्यावरण और वन मंत्रालय की अधिसूचना के अनुरूप नहीं है|
- यदि पुनर्विचार करने पर इस मामले का निर्णय टाटा एच.डी.सी.एल. के पक्ष में होता है तो वह इसे पर्यावरणीय मंजूरी दिलाने के लिये केंद्र सरकार के समक्ष आवेदन कर सकती है|
- पीठ ने इस प्रोजेक्ट को श्रेणी ‘अ’ के प्रोजेक्ट की संज्ञा दी है| ध्यातव्य है कि सभी ‘अ’ श्रेणी के प्रोजेक्टों के लिये केंद्र से अनुमति मिलना अनिवार्य है|
उच्च न्यायलय का तर्क
- ध्यातव्य है कि इस संबंध में टाटा एच.डी.सी.एल. का तर्क (प्रोजेक्ट स्थल सुखना झील के अपवाह क्षेत्र में नहीं पड़ता है) अस्वीकार किये जाने योग्य है|
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986
- उल्लेखनीय है कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम भारतीय संसद का एक अधिनियम है| भोपाल गैस त्रासदी के बाद ही भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 लागू किया था| इसे मार्च 1986 में पारित किया गया तथा यह 19 नवम्बर,1986 से प्रभाव में आया|
- इस अधिनियम का उद्देश्य यूनिसेफ के निर्णयों को लागू करना था| यूनिसेफ के ये निर्णय मानव पर्यावरण के संरक्षण और सुधार तथा मानवीय आपदाओं (जीवों, पौधों और सम्पत्ति) की रोकथाम से सम्बन्धित थे|
- यह अधिनियम एक “छतरी कानून” (umbrella legislation)की भाँति जिसका कार्य पूर्व के कानूनों के अंतर्गत स्थापित विभिन्न केन्द्र और राज्य प्राधिकरणों (जैसे-जल अधिनियम और वायु अधिनियम) की गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने के लिये एक रुपरेखा तैयार करना था|
सुखना झील
- सुखना झील (चंडीगढ़) हिमालय की तलहटी में स्थित एक जलाशय है| इस 3 वर्ग किलोमीटर की वर्षायुक्त झील का निर्माण वर्ष 1958 में सुखना चोई बाँध बनाकर किया गया था|
- सुखना चोई एक मौसमी जलधारा है जो कि शिवालिक की पहाड़ियों से निकलती है| वास्तव में इस मौसमी जलधारा का प्रवाह झील में होता है जिसके कारण भारी मात्रा में सिल्ट का निष्कासन होता है|
- सिल्ट के अंतर्प्रवाह की जाँच करने के लिये इसके अपवाह क्षेत्र की 25.42वर्ग किलोमीटर भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया था तथा उस पर वृक्ष लगाए गए थे|
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1974 में सुखना चोई को स्थानांतरित कर दिया गया| तब से इस झील को तीन सिल्टेसन पॉट्स से जलापूर्ति होती है|
- सुखना झील शीतकाल के दौरान कई विदेशी प्रवासी पक्षियों (जैसे-साइबेरियाई बत्तख, स्टॉर्क और क्रेन) के लिये एक अभ्यारण्य है| इस झील को भारत सरकार द्वारा संरक्षित राष्ट्रीय आर्द्रभूमि क्षेत्र घोषित किया गया है|