हेट स्पीच तथा ईशनिंदा | 02 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत का विधि आयोग, हेट स्पीच, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)। मेन्स के लिये:ईशनिंदा, हेट स्पीच, और उनके विनियमन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में हेट स्पीच, ईशनिंदा से संबंधित मामलों में वृद्धि हुई है।
हेट स्पीच
- परिचय:
- भारत के विधि आयोग (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है।
- इस प्रकार हेट स्पीच कोई भी लिखित या मौखिक शब्द, संकेत, किसी व्यक्ति की सुनने या देखने से भय या डराना, या हिंसा के लिये उकसाने का प्रतिनिधित्त्व है।
- भारत के विधि आयोग (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है।
- संबंधित डेटा:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, समाज में हेट स्पीच को बढ़ावा देने और असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले दर्ज मामलों में भारी वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2014 में केवल 323 मामले दर्ज किये गए थे, वर्ष 2020 में यह बढ़कर 1,804 हो गया।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, समाज में हेट स्पीच को बढ़ावा देने और असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले दर्ज मामलों में भारी वृद्धि हुई है।
ईशनिंदा से संबंधित विनियम:
- परिचय:
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295 (A), किसी भी भाषण, लेखन, या संकेत को दंडित करती है जो "पूर्व नियोजित और दुर्भावनापूर्ण इरादे से" नागरिकों के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं, इसके दो या फिर अधिकतम तीन साल की सजा व आर्थिक दंड का प्रावधान है
- सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या:
- रामजी लाल मोदी मामला (1957):
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने धारा 295 (A) की वैधता की पुष्टि की थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 19 (2) सार्वजनिक व्यवस्था के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त निर्बंधन की अनुमति देता है,
- धारा 295 (A) के तहत सज़ा ईशनिंदा के गंभीर रूप से संबंधित है जो किसी भी वर्ग की धार्मिक संवेदनाओं को ठेस पहुँचाने के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से की जाती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 19 (2) सार्वजनिक व्यवस्था के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त निर्बंधन की अनुमति देता है,
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने धारा 295 (A) की वैधता की पुष्टि की थी।
- अधीक्षक, केंद्रीय कारागार, फतेहगढ़ बनाम राम मनोहर लोहिया मामला (1960):
- इसमें कहा गया है कि दिये गए भाषण और इसके परिणामस्वरूप होने वाले किसी भी सार्वजनिक अव्यवस्था के बीच की कड़ी का आईपीसी की धारा 295 (A) के बीच घनिष्ठ संबंध है।
- इसके अलावा वर्ष 2011 में यह निष्कर्ष निकाला गया कि केवल भाषण जो “आसन्न गैरकानूनी कार्रवाई के लिये उकसाने” के बराबर है, को दंडित किया जा सकता है।
- यानी अभिव्यक्ति को दबाने के औचित्य के रूप में सार्वजनिक अशांति का उपयोग करने से पहले राज्य को एक उपकरण मिलना चाहिये।
- रामजी लाल मोदी मामला (1957):
ईशनिंदा और हेट स्पीच कानूनों के बीच अंतर की आवश्यकता
- बहुत व्यापक व्याख्या:
- भारतीय दंड संहिता की धारा 295A के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति भारतीय समाज के किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण जानबूझकर कोई काम करता है या ऐसा कोई बयान देता है तो उसे दोषी माना जाएगा।
- धारा 295 (A) में अभद्र भाषा के क़ानून शामिल हैं:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कई मौकों पर कहा है कि शायद धारा 295 (A) कानून का लक्ष्य हेट स्पीच के पूर्वाग्रह को रोकना और समानता सुनिश्चित करना है।
- कानूनों में स्पष्टता की कमी:
- हेट स्पीच कानून धर्म की आलोचना करने या उसका उपहास करने और अपने विश्वास के कारण व्यक्तियों या समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह या आक्रामकता को प्रोत्साहित करने के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर पर आधारित हैं।
- दुर्भाग्य से इस स्पष्टीकरण और वास्तविक शब्दों के बीच एक बड़ी असमानता है जिसके कारण प्रशासन के सभी स्तरों पर कानून का अभी भी शोषण किया जा रहा है।
- हेट स्पीच कानून धर्म की आलोचना करने या उसका उपहास करने और अपने विश्वास के कारण व्यक्तियों या समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह या आक्रामकता को प्रोत्साहित करने के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर पर आधारित हैं।
आगे की राह
- ईशनिंदा जो आम तौर पर धर्म की आलोचना को प्रतिबंधित करती है, लोकतांत्रिक समाज के सिद्धांतों से असंगत है।
- एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज में भाषण या आपत्तियों की कोई जाँच नहीं होनी चाहिये।
- आस्था और हेट स्पीच के संरक्षण के बीच की सूक्ष्म रेखा का पालन करते हुए, ईशनिंदा को कानून के दायरे में रखना और इसे गैर-आपराधिक बनाना ही एकमात्र व्यवहार्य समाधान है।