अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सौर स्पेक्ट्रम का पूर्ण उपयोग
- 13 Jun 2017
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संदर्भ
एक अध्ययन में पाया गया है कि सूर्यताप के स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों का उपयोग फसल उत्पादन, बिजली उत्पन्न करने, ऊष्मा एकत्रित करने और जल को शुद्ध करने में किया जा सकता है और इस प्रकार हम विश्व की बढ़ती आबादी को भोजन, ऊर्जा और जल संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- विश्व में हो रही जनसंख्या वृद्धि, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी और खपत की आदतों में परिवर्तन के कारण भोजन, ऊर्जा और जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ रहा है।
- हमारे सामने बड़ी चुनौती दुर्लभ संसाधनों का उपयोग करके पृथ्वी की जरूरतों को निरंतर पूरा करने की है। अत: इस लक्ष्य की प्राप्ति में सूर्य एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत हो सकता है।
- इस अध्ययन में एक ऐसी प्रणाली की चर्चा की गई है जो दिये गए भू-क्षेत्र में सूर्य के सम्पूर्ण स्पेक्ट्रम का उपयोग करते हुए संसाधनों के उत्पादन को अधिकतम करेगी।
- ‘वैज्ञानिक रिपोर्ट’ पत्रिका में वर्णित संकल्पना में कहा गया है कि यह प्रणाली सूर्य स्पेक्ट्रम को तीन विशिष्ट क्षेत्रों में ‘विभाजित और एकत्रित’ करने पर काम करती है, जो भोजन, ऊर्जा और स्वच्छ पानी के उत्पादन के लिये सर्वोत्तम अनुकूल है।
- वर्तमान प्रणाली में ज़्यादातर स्पेक्ट्रम बर्बाद हो जाता हैं, क्योंकि यह कृषि, ऊर्जा उत्पादन या जल को साफ करने में से केवल एक ही उद्देश्य के लिये उपयोग होती है।
- नए दृष्टिकोण में सभी तीनों प्रयोजनों के लिये स्पेक्ट्रम को तीन अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है, जिससें सूर्य प्रकाश का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सके।
- वर्तमान फोटोवोल्टिक पैनल को जब खेत में स्थापित किया जाता है तो पैनल के छाया वाला क्षेत्र पौधों की वृद्धि और फसल उपज को कम कर देता है।
- प्रस्तावित नए फोटोवोल्टिक पौधों के विकास के लिये ज़िम्मेदार फोटोन को संचारित करता है जबकि सौर स्पेक्ट्रम के शेष फोटॉनों को परावर्तित करता है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन, ऊष्मा को संरक्षित करने और जल के शुद्धिकरण के लिये किया जाता है। उल्लेखनीय है कि बिजली के उत्पादन को अधिकतम करने तथा ऊष्मा संग्रहण के लिये सौर स्पेक्ट्रम का विभाजन किया जाता है।
- प्रस्तावित प्रणाली सौर उर्जा में आत्मनिर्भर समुदायों का निर्माण कर सकती है। कृषि क्षेत्रों में इस प्रणाली को कार्यान्वित करने से बिजली ग्रिडों को अतिरिक्त बिजली प्रदान की जा सकती है, साथ ही अन्य क्षेत्रों में ताज़े जल की ज़रूरत को पूरा किया जा सकता है।