हड़प्पा सभ्यता | 12 Mar 2019
चर्चा में क्यों?
केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और छात्रों के एक समूह द्वारा कच्छ (गुजरात) में किये गए पुरातात्विक उत्खनन ने हड़प्पा सभ्यता के शुरुआती चरण के दौरान प्रचलित अंत्येष्टि रिवाजों पर प्रकाश डाला है।
प्रमुख बिंदु
- कच्छ के खटिया गाँव में इस 47 सदस्यीय दल ने एक-डेढ़ महीने के लिये डेरा डाला और कब्रिस्तान जैसी जगह, जहाँ हड़प्पा सभ्यता के लोग शव को दफनाते थे, से कंकालों के नमूनों का अध्ययन किया।
- उन्होंने अलग-अलग दिखने वाली 300 कब्रों में से 26 की खुदाई की। इन सभी आयताकार कब्रों को भिन्न-भिन्न पत्थरों का उपयोग करके बनाया गया था तथा कंकालों को एक विशिष्ट तरीके से रखा गया था।
- शवों के सिर पूर्व दिशा की ओर थे और पश्चिम दिशा में पैरों के बगल में, पुरातत्वविदों को मिट्टी के बर्तन और अन्य कलाकृतियाँ मिली, जिसमें शंख-चूड़ी, पत्थर और टेराकोटा से बने मोती, कई लिथिक उपकरण और पीसने वाले पत्थर शामिल थे।
- शव के बगल में सामान संभवतः मृत्यु के पश्चात् जीवन की अवधारणा को प्रस्तुत करता है।
- खुदाई की गई 26 कब्रों में से सबसे बड़ी 6.9 मीटर लंबी और सबसे छोटी 1.2 मीटर लंबी थी।
- उनमें से अधिकांश में मानव के कंकाल के अवशेष विघटित पाए गए। मनुष्यों के साथ जानवरों के कंकालों की उपस्थिति भी कुछ कब्रों में दर्ज की गई थी।
- रोचक बात यह है कि शोधकर्ताओं ने दफनाने के तरीके को असमान पाया। प्राथमिक दफन और माध्यमिक दफन (जब प्राथमिक दफन के अवशेषों को किसी अन्य कब्र में ले जायाजाए) के उदाहरण पाए गए।
- उत्खनन टीम एक पूर्ण मानव कंकाल को प्राप्त करने में कामयाब रही, जिसे महाराजा स्याजिराव विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य कांति परमार की सहायता से प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी एक बॉक्स में रखा गया था।
- बरामद कंकाल और कलाकृतियों को केरल विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में प्रदर्शन के लिये रखा जाएगा।
- अन्य कंकालों को विभिन्न प्रयोगशालाओं में आयु, लिंग, परिस्थितियों को समझने के लिये तथा डीएनए की मुख्य विशेषताओं के परीक्षण लिये भेजा जाएगा।
स्रोत: द हिंदू