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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत के आधे से ज्यादा ऊर्जा संयंत्र बेकार

  • 15 Feb 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा किये गए एक विश्लेषण में कहा गया है कि भारत में गैर-जैवनिम्नीकरण कचरे (Non-Biodegradable Waste) को परिवर्तित कर अपशिष्ट-से-ऊर्जा (Waste-to-Energy-WTE) बनाने वाले लगभग आधे से अधिक संयंत्र खराब हो चुके हैं। इसके कारण मौजूदा संयंत्रों में क्षमता से कम काम हो रहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • 1987 के बाद देश भर में 15 WTE संयंत्र स्थापित किए गए। हालाँकि इनमें से सात संयंत्र बंद हो चुके हैं जिनमें दिल्ली, कानपुर, बंगलूरू, हैदराबाद, लखनऊ, विजयवाड़ा और करीमनगर के संयंत्र शामिल हैं।
  • इनके बंद होने के प्रमुख कारणों में मिश्रित ठोस अपशिष्ट और बिजली उत्पन्न करनें में आने वाली उच्च लागत को वहन करने में इन संयंत्रों की अक्षमता है जिससे बिजली कंपनियाँ इनके उपयोग किये जाने से बचती हैं।
  • पिछली उपलब्धियों ने हालाँकि सरकार को WTE के क्षेत्र में बड़े प्रयास करने हेतु हतोत्साहित नहीं किया है। साथ ही नीति आयोग ने अपने स्वच्छ भारत मिशन के हिस्से के रूप में 2018-19 में स्थापित WTE संयंत्रों से 800 मेगावाट उर्जा प्राप्ति की परिकल्पना की है, जो सभी मौजूदा WTE संयंत्रों की क्षमता का 10 गुना है।
  • इसमें भारत के अपशिष्ट-से-ऊर्जा निगम (Waste-to-Energy Corporation of India) की स्थापना का भी प्रस्ताव दिया गया है, जो पीपीपी मॉडल (Public Private Partnership Model) के माध्यम से संयंत्रों का निर्माण करेगा।
  • वर्तमान में 40 विवादित (Odd) WTE संयंत्र निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।

अपशिष्ट प्रबंधन पर रिपोर्ट

  • रिपोर्ट में यह पाया गया है कि संयंत्र के विवादित या बेकार होने का मूलभूत कारण अपशिष्ट की गुणवत्ता और संरचना है। भारत में MSW (Municipal Solid Waste) में कम कैलोरी और उच्च नमी की मात्रा पाई जाती है।
  • WTE संयंत्रों में भेजे जाने वाले अधिकांश अपशिष्टों में अत्यंत निष्क्रिय पदार्थ मौजूद होते हैं जो संयंत्र में अपशिष्ट को पृथक करने के लिये उपयुक्त नहीं हैं। अतः इसके लिये अतिरिक्त ईंधन की आवश्यकता होती है, जिससे संयंत्रों को चलाना महँगा हो जाता है।

क्या कहते हैं आँकड़े?

  • देश भर में प्रतिदिन लगभग 1.43 लाख टन (Tonnes Per Day-TPD) नगरपालिका का ठोस कचरा उत्पन्न होता है। इसमें से लगभग 1.11 लाख TPD (77.6%) कचरा एकत्र किया जाता है, जबकि 35,602 TPD (24.8%) को ही संसाधित किया जाता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में 25,940 TPD प्लास्टिक कचरा पाया जाता है, जिसमें से 15,342 TPD ही एकत्र किया जाता है।
  • केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के अनुसार, नगरपालिका का ठोस कचरा उत्पादन 2031 तक 4.5 लाख TPD और 2050 तक 11.9 लाख TPD तक पहुँच जाएगा।
  • नागरिकों द्वारा WTE का व्यापक रूप से विरोध किया जाता रहा है। जैसे ओखला WTE संयंत्र का वहाँ के लोगों द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित करने के कारण लगातार विरोध किया गया।
  • 2016 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने इस संयंत्र पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के लिये 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया।
  • इसके अलावा इन कारखानों से उत्पादित विद्युत की दर लगभग 7 रुपए प्रति यूनिट है जो कि थर्मल एवं सौर स्रोतों से प्राप्त 3-5 रुपए प्रति यूनिट की अपेक्षा काफी महँगी है।

स्रोत – द हिंदू

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