हलाम उप-जनजाति संघर्ष | 03 Aug 2021
प्रिलिम्स के लियेहलाम उप-जनजाति, ब्रू शरणार्थी, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह मेन्स के लियेहलाम उप-जनजाति संघर्ष एवं संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
उत्तरी त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों के साथ संघर्ष के बाद असम में शरण लेने वाले हलाम (Halam) उप-जनजातियों के लोग त्रिपुरा के उत्तरी ज़िले में अपने गाँव दामचेरा वापस लौट रहे हैं।
- मिज़ोरम में जातीय संघर्ष से बचने के लिये ब्रू शरणार्थी 1997 में त्रिपुरा आए और उत्तरी त्रिपुरा ज़िले के छह राहत शिविरों में रहने लगे।
प्रमुख बिंदु
हलाम (Halam) उप-जनजाति:
- जातीय रूप से हलाम समुदाय (त्रिपुरा में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत) तिब्बती-बर्मी जातीय समूह की कुकी-चिन जनजातियों से संबंधित हैं।
- उनकी भाषा भी कमोबेश तिब्बती-बर्मन समुदाय से मिलती-जुलती है।
- हलाम को मिला कुकी (Mila Kuki) के रूप में भी जाना जाता है, हालाँकि वे भाषा, संस्कृति और जीवनशैली के संदर्भ में कुकी से काफी अलग हैं अर्थात् इनकी संस्कृति कुकी से मेल नहीं खाती है।
- हलाम कई उप-कुलों में विभाजित हैं जिन्हें "बरकी-हलाम" (Barki-Halam) कहा जाता है।
- हलाम के प्रमुख उप-कुलों में कोलोई, कोरबोंग, काइपेंग, बोंग, साकचेप, थांगचेप, मोलसोम, रूपिनी, रंगखोल, चोराई, लंकाई, कैरेंग (डारलोंग), रंगलोंग, मार्चफांग और सैहमर हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, उनकी कुल जनसंख्या 57,210 है तथा यह संपूर्ण राज्य में पाए जाते है।
- हलाम विशिष्ट प्रकार के "टोंग घर" (Tong Ghar) में रहते हैं जो विशेष रूप से बाँस और चान घास से बने होते हैं। मैदानी क्षेत्रों में खेती के अतिरिक्त वे अभी भी झूम खेती करते हैं तथा अन्य वैकल्पिक कार्यों के अलावा दोनों गतिविधियों पर निर्भर हैं।
ब्रू शरणार्थी:
- ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक क्षेत्रीय/स्वदेशी समुदाय है, जो अधिकतर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में रहते हैं। त्रिपुरा में उन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिज़ोरम में उन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है जो उन्हें राज्य के लिये स्वदेशी नहीं मानते हैं।
- 1997 में जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिज़ोरम के ममित, कोलासिब और लुंगलेई ज़िलों से भाग गए तथा उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया।
- मिज़ोरम के साथ अंतर्राज्यीय सीमा से पहले दमचेरा त्रिपुरा का आखिरी गाँव है।
- तब से लेकर आज तक प्रत्यावर्तन के आठ चरणों में 5,000 लोग मिज़ोरम लौट आए हैं, जबकि 32,000 अभी भी उत्तरी त्रिपुरा में छह राहत शिविरों में रहते हैं।
- जून 2018 में, ब्रू शिविरों के सामुदायिक नेताओं ने मिज़ोरम में प्रत्यावर्तन के लिये केंद्र और दो राज्य सरकारों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये लेकिन शिविर में रहने वाले अधिकांश लोगों ने समझौते की शर्तों को खारिज कर दिया।
- जनवरी 2020 में केंद्र, मिज़ोरम और त्रिपुरा की सरकारों तथा ब्रू संगठनों के नेताओं ने एक चतुर्पक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- समझौते के तहत गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा में इनके बंदोबस्त का पूरा खर्च वहन करने की प्रतिबद्धता जताई है।
- इस समझौते के तहत प्रत्येक विस्थापित ब्रू परिवार के लिये निम्नलिखित व्यवस्था की गई है-
- समझौते के तहत विस्थापित परिवारों को आवासीय प्लाॅट दिया जाएगा, इसके साथ ही हर परिवार को 4 लाख रुपए फिक्स्ड डिपाॅजिट के रूप दिये जाएंगे।
- पुनर्वास सहायता के रूप में परिवारों को दो वर्षों तक प्रतिमाह 5 हज़ार रुपए और निःशुल्क राशन प्रदान किया जाएगा।
- साथ ही प्रत्येक विस्थापित परिवार को घर बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए की नकद सहायता भी दी जाएगी।
संबंधित मुद्ददे:
- पूर्वोत्तर में न केवल "स्वदेशी" एवं “अधिवासी (Settlers)" के बीच बल्कि अंतर-जनजातियों के बीच जातीय संघर्षों का इतिहास रहा है और एक ही जनजाति में छोटे उप-समूहों के भीतर भी मुद्दे उठ सकते हैं।
- त्रिपुरा में ब्रू जनजाति के लोगों को बसाने का निर्णय से उनकी नागरिकता का सवाल भी उठ सकता है, विशेष रूप से असम में जहाँ यह परिभाषित करने की प्रक्रिया चल रही है कि कौन स्वदेशी है और कौन नहीं।
- ब्रू शरणार्थियों को लेकर यह कदम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत विदेशियों के निपटान को भी वैध बनाता है, जिससे स्वदेशी लोगों सहित पहले से बसे समुदायों के साथ संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
- इससे त्रिपुरा में बसे अन्य समुदायों के लिये जगह और राजस्व की हानि भी हो सकती है।
- इसके अलावा असम-मिज़ोरम सीमा पर हालिया हिंसक झड़प के बाद अंतर-राज्यीय सीमा विवाद नए सिरे से सामने आए हैं।
आगे की राह:
- ब्रू की वर्तमान स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि चतुर्पक्षीय समझौते को अक्षरशः लागू किया जाए।
- हालाँकि वह समझौता जो त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों के पुनर्वास का प्रावधान करता है, उसे गैर-ब्रू लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिये ताकि ब्रू और गैर-ब्रू समुदायों के बीच कोई संघर्ष न हो।