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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘एच 1 बी’ वीज़ा सुधार विधेयक

  • 06 Feb 2017
  • 11 min read

सन्दर्भ

हाल ही में अमरीकी संसद में एच 1 बी वीज़ा विधेयक पेश किया गया है। इस विधेयक में वीज़ाधारकों को दिये जाने वाले न्यूनतम वेतन को दोगुना से अधिक करने का प्रस्ताव है। सरसरी तौर पर देखें तो यही प्रतीत होगा कि न्यूनतम वेतन में वृद्धि तो व्यावहारिक कदम है, फिर यह भारतीय कंपनियों के हितों को कैसे प्रभावित करेगा? कैसे यह सरंक्षणवाद को बढ़ावा देने वाला कदम है? इन सभी बातों को हम कुछ इस प्रकार से समझ सकते हैं:

विधेयक के माध्यम से लाए जाने वाले बदलाव

  • अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा में एच1बी वीजा से संबंधित इस विधेयक में इस बात का प्रावधान किया गया है कि  न्यूनतम 1,30,000 डॉलर वेतन वाली नौकरियों के लिये ही ऐसा वीज़ा दिया जा सकता है।
  • विदित हो कि संशोधित वेतन मौजूदा न्यूनतम वेतन स्तर के दोगुना से भी ज़्यादा है और इसके लागू होने पर अमेरिकी कंपनियों के लिये अमेरिका में भारत सहित कई देशों के कर्मचारियों को नौकरी देना मुश्किल हो जाएगा। दरअसल, यह पहल डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी वादों और अमेरिकियों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ाने की पहल का एक हिस्सा है।
  • हाई-स्किल्ड इंटेग्रिटी एंड फेयरनेस एक्ट-2017 (उच्च कुशल निष्ठा एवं निष्पक्षता अधिनियम-2017) के नाम से पेश किये गए इस विधेयक में उन कंपनियों को वीज़ा देने में प्राथमिकता देने का प्रस्ताव है जो बाज़ार औसत से दोगुना अधिक वेतन देने को तैयार हों। इसमें न्यूनतम भुगतान की श्रेणी को खत्म करने और एच1बी वीजा पर आने वालों के लिये वेतन का स्तर बढ़ाने का प्रावधान है।


कैसे भारतीय कंपनियों के खिलाफ़ है यह विधेयक?

  • गौरतलब है कि एच-1 बी वीज़ाधारकों का अभी सालाना न्यूनतम वेतन 60 हज़ार डॉलर है। नए बिल में इसे बढ़ाकर 1 लाख 30 हज़ार डॉलर करने का प्रस्ताव रखा गया है।
  • पहली नज़र में ये अच्छी ख़बर लगती है कि वेतन बढ़ जाएंगे लेकिन भारतीय कंपनियों के लिये यह एक बुरी खबर है, क्योंकि इंफ़ोसिस, विप्रो, टाटा कंसल्टेंसी, एचसीएल टेक जैसी कंपनियों की आय का आधे से अधिक हिस्सा अमरीका से आता है। मान लिया जाए कि एक अमरीकी कंपनी को खास किस्म का सॉफ्टवेयर इंजीनियर चाहिये जो भारत की कंपनियों मसलन टीसीएस या इंफोसिस में उपलब्ध है।
  • जब इंफोसिस ऐसे इंजीनियर को भेजता है तो वो इंजीनियर जो अब तक न्यूनतम 60 हज़ार डॉलर (सालाना) पाता था नए विधेयक के तहत अब अमरीकी कंपनी को ऐसे किसी भारतीय इंजीनियर को न्यूनतम एक लाख 30 हज़ार डॉलर की रकम (सालाना) देनी होगी। यानी कि अब अमरीकी कंपनियां इतने पैसे में अमरीका में ही ऐसे इंजीनियर खोजेंगी।


क्या है एच 1 बी वीज़ा?

  • गौरतलब है कि अमेरिका में रोज़गार के इच्छुक लोगों के बीच एच-1बी वीज़ा प्राप्त करना होता है। एच-1बी वीज़ा वस्तुतः ‘इमीग्रेशन एण्ड नेशनलिटी ऐक्ट’ (Immigration and Nationality Act)  की धारा 101(a) और 15(h) के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका में रोज़गार के इच्छुक गैर-अप्रवासी (Non-immigrants) नागरिकों को दिया जाने वाला वीज़ा है। यह अमेरिकी नियोक्ताओं को विशेषज्ञतापूर्ण व्यवसायों में अस्थायी तौर पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।
  • एच1बी वीजा ऐसे विदेशी पेशेवरों के लिये जारी किया जाता है जो किसी 'खास' कार्य में कुशल होते हैं। उल्लेखनीय है कि कंपनी को ही नौकरी करने वाले की तरफ से एच 1 बी वीज़ा के लिए इमिग्रेशन विभाग में आवेदन करना होता है। अमरीकी कंपनियाँ इस प्रकार की वीज़ा का इस्तेमाल उच्च स्तर पर कुशल पेशेवरों को नियुक्त करने के लिये करती हैं। हालाँकि अधिकतर वीज़ा आउटसोर्सिंग फर्म को जारी किया जाता है।


अमेरिका ने यह कदम क्यों उठाया है?

  • एच 1 बी वीजा को के प्रावधान के पीछे उद्देश्य विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों के लिये विदेशों से क्षमतावान लोगों को लाकर अमेरिका में रोज़गार देना था। हालाँकि आउटसोर्सिंग कंपनियों पर आरोप लगता रहा है कि वे वीज़ा का इस्तेमाल निचले स्तर की नौकरियों को भरने में भी करते हैं जिससे अमेरिका में रोज़गार का संकंट उत्पन्न हो गया है।
  • गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने चुनावी अभियान के आरम्भ के समय से ही इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाते चले आ रहें है और तभी यह साफ हो चूका था कि ट्रम्प सत्ता में आते ही इस संबंध में कोई न कोई सख्त कदम ज़रुर उठाएंगे।

इस संबंध में भारत का रुख क्या है?

  • भारत सरकार ने इस मामले में अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालाँकि विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने इस मामले का संज्ञान लिया है। गौरतलब है कि ट्रम्प प्रशासन की अधिकांश नीतियों के सन्दर्भ में भारत ने चुप्पी साध रखी है।

क्या हो आगे का रास्ता

  • विदित हो कि भारत ने पिछले साल मार्च में एच-1 बी वीज़ा से जुड़े नियमों को लेकर डब्लूटीओ में एक आपत्ति दाखिल कराई थी। इस आपत्ति को ‘विचार-विमर्श का आग्रह’ भी कहा जाता है जो व्यापारिक विवाद के निपटारे के लिये पहला कदम था। भारत ने अमेरिका के साथ विचार-विमर्श का आग्रह किया था ताकि एल-1 और एच-1 बी वीज़ा से जुड़ी चिंताओं के संबंध में कोई फैसला किया जा सके।
  • विदित हो कि एल-1 एक गैर-आप्रवासी वीजा है जिसके तहत कंपनियाँ विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में मौजूद अपनी सहायक कंपनियों या फिर मूल कंपनी में रख सकती हैं। एच-1 बी भी एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है जिसमें अमेरिकी कंपनियों को विशेषज्ञता आवश्यक नौकरियों में विदेशी कर्मचारियों को अस्थायी रूप से अपने यहाँ नौकरी पर रखने की इज़ाज़त होती है।
  • हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई थी कि अगर एच-1बी और एल-1 वीज़ा विवाद का निपटारा विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation - WTO) करता है, तो अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की जा सकती है। दरअसल, यह चुनौती अमेरिका द्वारा एच-1 बी और एल-1 वीज़ा शुल्क में इज़ाफा किये जाने सन्दर्भ में दी गई थी।
  • अब जबकि वीज़ा शुल्क में इजाफा न करके वीज़ाधारकों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि के माध्यम से भारतीय कम्पनियों के लिये आगे की राह कठिन की जा रही है तो भारत के पास द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे के समाधान के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

निष्कर्ष

  • शायद अमेरिका इस बात को नहीं समझ पा रहा है कि उसके इस कदम से उसका भी नुकसान हो सकता है। अमेरिका में एच 1 बी वीज़ा पर काम करने वाले अधिकांशतः पेशेवरों के साथ उनका परिवार भी अमेरिका में ही रहने आ जाता है। चूँकि उनका यह परिवार किसी न किसी व्यवसाय से जुड़ा होता है इसलिये अमेरिका की अर्थव्यवस्था में अहम् भूमिका निभाता है। वीज़ा नियमों के माध्यम से अमेरिका न केवल विदेशों पेशवरों को रोक रहा है बल्कि अपने अर्थव्यवस्था की प्रगति पर भी विराम लगा रहा है।
  • एक दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि अमेरिका में ऐसे पेशेवरों की कमी है जिन्हें विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों में लगाया जा सके। अतः ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि इन चिंताओं के मद्देनज़र यह विधेयक शायद पारित ही न हो पाए।
  • जहाँ तक एच 1 बी वीजा के दुरुपयोग का सवाल है, इसके रोकथाम के लिये ट्रम्प प्रशासन कोई और भी कदम उठा सकता था लेकिन वीज़ाधारकों के न्यूनतम वेतन को बढ़ाया जाना ट्रम्प की उन सरंक्षणवादी नीतियों के तहत किया गया एक प्रयास बताया जा रहा है जिसका वादा कर वे सत्ता में आए हैं।
  • इस पूरे घटनाक्रम का एक पक्ष यह भी हो सकता है कि अमेरिका में रोज़गार न मिलने की स्थिति में कुछ कुशल भारतीय आईटी पेशेवर जो कि अच्छे वेतन और सुविधाओं के लालच में भारत में काम करना पसंद नहीं करते थे, वे अब भारतीय कंपनियों में ही कार्य करें। इससे भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को मज़बूती मिलेगी। हालाँकि यह विधेयक पारित होगा या नहीं? यह अनिश्चितता बनी हुई है और ट्रम्प तथा अनिश्चितताओं का चोली-दामन का संबंध है।
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