दिवालियापन मामले से एस्सार स्टील को कोई राहत नहीं | 19 Jul 2017

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि ‘एस्सार स्टील’(Essar steel) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई दिवालियापन कार्रवाईयों के घेरे में है। हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने कंपनी द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण (National Company Law Tribunal –NCLT) में ऋण अक्षम्य क्षमता और दिवालियापन कानून (Insolvency and Bankruptcy Code -IBC) के अंतर्गत की जाने वाली कार्यवाहियों को चुनौती दी गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, इससे पूर्व भी न्यायालय ने एस्सार स्टील के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण के समक्ष दिवालियापन कार्यवाही करने पर अंतरिम रोक लगा दी थी। विदित हो कि कंपनी ने उधारकर्त्ताओं को 45,000 करोड़ रुपए का ऋण दिया था जिसमें से 31 मार्च, 2016 तक 31,671 करोड़ को गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ घोषित कर दिया गया था।
  • एस्सार स्टील ऐसी पहली कंपनी है जिसने उच्च न्यायालय में भारतीय रिज़र्व बैंक के 13 जून के आदेश को चुनौती दी है। रिज़र्व बैंक ने अपने आदेश में बैंकों को उन कंपनियों और 11 अन्य फर्मों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है जिनमें से प्रत्येक के पास ऋण अक्षम्य क्षमता और दिवालिया कानून के अंतर्गत 5,000 करोड़ से अधिक के बकाया ऋण है। 
  • अपनी याचिका में कंपनी ने रिज़र्व बैंक के अनेक दिशा-निर्देशों के संबंध में दावे किये थे। कंपनी का कहना है कि उसका वर्गीकरण तर्कहीन, अन्यायपूर्ण और एकपक्षीय है तथा यह कंपनी की सुधार प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न कर रहा है।
  • हालाँकि, एस्सार स्टील के प्रवक्ता का कहना है कि वे उच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हैं और इन मुद्दों को राष्ट्रीय कंपनी कानूनी प्राधिकरण से विचार-विमर्श के पश्चात् ही उठाएंगे।

न्यायालय के तर्क

  • इस प्रकार की कार्रवाई करने के लिये किसी भी वित्तीय कंपनी अथवा बैंकों को रिज़र्व बैंक से कोई अनुमति और दिशा-निर्देश प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह उनका अधिकार है।
  • कंपनी द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए न्यायाधीश एस.जी.शाह का यह कहना था कि कंपनी का दावा गलत है, क्योंकि रिज़र्व बैंक द्वारा उठाया गया यह कदम एकपक्षीय नहीं है।
  • किसी बैंकिंग कंपनी को रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों के बिना दिवालियापन कार्रवाई की शुरुआत करने की अनुमति प्राप्त नहीं है।
  • वास्तव में 31 मार्च, 2017 को भारत में सकल एनपीए 7,28,768 करोड़ से अधिक हो गया था जो कि जीडीपी का 5% है। 
  • एस्सार स्टील के प्रवक्ता का कहना है कि वे उच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हैं और इन मुद्दों को राष्ट्रीय कंपनी क़ानून प्राधिकरण से विचार-विमर्श के पश्चात ही उठाएंगे।
  • आरबीआई का आदेश एकपक्षीय नहीं है और जो भी कार्य भारतीय स्टेट बैंक एस्सार स्टील के पुनर्निर्माण के संबंध में कर रहा था, वे अब राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण द्वारा किये जाएंगे।

क्या है राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण? 

  • यह भारत का एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो भारत में कंपनियों से संबंधित मुद्दों का निर्णय करता है। इसकी स्थापना कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत की गई थी तथा इसका गठन 1 जून, 2016 को किया गया।
  • इसकी 11 शाखाएँ हैं, जिनमें से दो नई दिल्ली तथा एक–एक शाखा क्रमशः अहमदाबाद, इलाहाबाद, बंगलूरू, चण्डीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में है। 
  • कंपनी अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिनियम को निम्न कार्रवाइयों से संबंधित निर्णय करने का अधिकार है-

• जिनकी शुरुआत पूर्व अधिनियम(कंपनी अधिनियम, 1956) के तहत कंपनी कानून निकाय के समक्ष हुई हो।
• जो औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण के लिये बोर्ड(BIFR) के समक्ष लंबित हों। इसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जो ‘बीमार औद्योगिक कंपनियों (विशेष प्रावधान) अधिनियम’,1985 के अंतर्गत लंबित हों।
• जो औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण के लिये बोर्ड के लिये अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष लंबित हों
• जो कंपनियों के खराब प्रबंधन और उनके द्वारा किये गए उत्पीड़न का दावा करते हैं।

निष्कर्ष
यदि एस्सार स्टील के विशिष्ट आँकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो यह पता चलता है कि इसने ऋण संकल्प प्रस्ताव(debt resolution proposal) पर ऋण लेने वालों के साथ विचार-विमर्श करने में ही अप्रैल 2016 से जून 2017 के मध्य बैंकों को 3,467 करोड़ रुपए का भुगतान किया है। अतः कंपनी को अपने बकाया ऋण को पूरा करने का समय दिया जाना चाहिये, क्योंकि इस स्थिति में इस कंपनी को दिवालियापन कानून के अंतर्गत लाने के परिणामस्वरूप कंपनी के कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जिससे बैंकों के साथ इस प्रस्ताव में चर्चा करने में भी देरी हो सकती है।