भारतीय अर्थव्यवस्था
भूमि अधिग्रहण पर टकराव के रास्ते पर गुजरात के किसान
- 01 Jun 2018
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चर्चा में क्यों ?
गुजरात के भावनगर जिले के किसानों और राज्य सरकार द्वारा संचालित गुजरात पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (GPCL) के मध्य भूमि अधिग्रहण संबंधी गतिरोध बढ़ता जा रहा है। जिले के घोघा तालुका के एक दर्जन से अधिक गाँव के किसान जीपीसीएल द्वारा लिग्नाइट के खनन हेतु उनकी जमीन के अधिग्रहण के विरुद्ध भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इस लिग्नाइट का प्रयोग जीपीसीएल के 500 मेगावाट के थर्मल प्लांट के लिये ईंधन के रूप में किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- यह आंदोलन दिसंबर 2017 में शुरू हुआ था और अभी तक यह कमोबेश एक शांत आंदोलन ही था। लेकिन हाल ही में तमिलनाडु में हुए स्टरलाइट संबंधी आंदोलन से प्रेरणा लेकर इस आंदोलन ने गति प्राप्त कर ली।
- गौरतलब है कि तमिलनाडु में हुए इस हालिया आंदोलन के हिंसात्मक स्वरूप धारण करने के कारण 13 लोगों की जान चली गई। हालाँकि, इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने संयंत्र को बंद करने का आदेश दे दिया है।
- जिले के किसानों का कहना है कि वे हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहते। उनका मकसद केवल सरकार और कंपनी को अपना पक्ष सुनाना तथा मुद्दे का शांतिपूर्वक हल निकालना है। लेकिन, सरकार उन्हें शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन और रैली निकालने की इजाजत भी नहीं दे रही है। इस कारण उन्होंने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की है।
- इन गाँव के लगभग लगभग 50 लोग भूख हड़ताल पर बैठे हैं।
- कंपनी ने 1993-94 में यहाँ एक थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने और लिग्नाइट खनन करने हेतु भूमि का अधिग्रहण किया था। जिस पर अब उसने कब्ज़ा (possession) करना शुरू कर दिया है।
- किसानों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के अनुसार, यदि अधिग्रहित जमीन पर पाँच साल के अंदर कब्ज़ा नहीं किया जाता है, तो इसे जमीन के मालिकों को वापस करना होगा और अधिग्रहण की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करनी होगी।
- किसानों का कहना है कि जमीन का उपयोग खेती के लिये किया जा रहा है और इसके पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं। अतः सरकार को उनकी मांग के अनुसार मुआवजा प्रदान करना होगा, क्योंकि यह किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है।
- ऐसे में सरकार को बड़ी मुश्किल परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ, परियोजना की लागत ₹3,500 करोड़ से बढ़कर ₹5,000 करोड़ हो चुकी है। इसके अतिरिक्त लिग्नाइट की आपूर्ति न हो पाने और संयंत्र के कमीशन में देरी के कारण प्रतिदिन ₹ 4 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- दूसरी तरफ, उसे उच्च मुआवजे के बारे में विचार न करने के कारण किसानों के गुस्से का सामना भी करना पड़ा रहा है।
- वहीं, कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि किसानों को पहले ही प्रचलित दरों से 3-4 गुना अधिक भुगतान किया जा चुका है। साथ ही, 1997-2005 के दौरान एक पुनर्वास पैकेज भी प्रदान किया जा चुका है। अतः किसानों का जो भी बकाया था, उसका भुगतान पहले ही किया जा चुका है।
- हालाँकि, इस संदर्भ में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24 (2) की व्याख्या पर कोर्ट का फैसला आना शेष है।