कृषि
जीनोम एडिटेड पौधों के सुरक्षा आकलन हेतु दिशा-निर्देश, 2022
- 21 May 2022
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, जीएमओ, जीनोम एडिटिंग, डीबीटी, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें मेन्स के लिये:जेनेटिक इंजीनियरिंग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों में अनुसंधान के लिये मानदंडों को आसान बनाने और फसलों के प्रोफाइल को बदलने के लिये विदेशी जीन का उपयोग करने की चुनौतियों से बचने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- इससे पहले सरकार ने जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) में बोझिल GMO (आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव) विनियमन के बिना जीनोम-एडिटेड पौधों की अनुमति दी है।
दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएंँ:
- अनुमोदन प्राप्त करने से शोधकर्त्ताओं को छूट:
- यह उन शोधकर्त्ताओं को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) से अनुमोदन प्राप्त करने से छूट देता है जो पौधे के जीनोम को संशोधित करने के लिए जीन-एडिटिंग तकनीक का उपयोग करते हैं,
- GEAC जीएम पौधों में अनुसंधान का मूल्यांकन करता है और कृषि क्षेत्र में उनके उपयोग की सिफारिश करता है या अस्वीकृत करता है।
- हालाँकि अंतिम निर्णय पर्यावरण मंत्री के साथ-साथ उन राज्यों द्वारा लिया जाता है जहाँ इस प्रकार की कृषि की जा सकती है। पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस छूट को मंज़ूरी दे दी है।
- ये दिशा-निर्देश जीनोम एडिटिंग प्रौद्योगिकियों के सतत् उपयोग के लिये एक रोडमैप प्रदान करते हैं और पौधों की जीनोम एडिटिंग संबंधी अनुसंधान एवं विकास व संचालन में लगे सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के अनुसंधान संस्थानों पर लागू होते हैं।
- दिशा-निर्देशों से संबंधित मुद्दे:
- प्रायः GM पौधे जिनमें जीनोम एडिटिंग की गई हैं, में ट्रांसजेनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है या किसी अन्य प्रजाति के जीन को उस पौधे में जोड़ा जाता है, जैसे कि बीटी-कॉटन, जिसमें पौधे को कीट के हमले से बचाने के लिये मिट्टी के जीवाणु जीन का उपयोग किया जाता है।
- इस पद्धति के बारे में चिंता यह है कि ये जीन प्रभाव आस-पास के उन पौधों में भी फैल सकते हैं, जिनमें इस तरह के प्रभाव की आवश्यकता नहीं है और इसलिये ऐसे आवेदन विवादास्पद रहे हैं।
जीनोम एडिटिंग:
- परिचय:
- जीनोम एडिटिंग GM फसलों की तरह बाहरी जीनों को सम्मिलित किये बिना पौधों के स्वामित्व वाले जीन में संशोधन को सक्षम बनाता है।
- जीनोम-संपादित किस्मों में कोई विदेशी DNA नहीं होता है और यह पारंपरिक पौधों के प्रजनन के तरीकों या प्राकृतिक रूप से होने वाले उत्परिवर्तन का उपयोग करके विकसित फसलों से अलग हैं।
- जीनोम एडिटिंग की विधियाँ:
- जीनोम एडिटिंग के लिये कई दृष्टिकोण विकसित किये गए हैं। इसमें से एक मुख्य तकनीक को CRISPR-Cas9 कहा जाता है।
- CRISPR-Cas9 का विस्तृत नाम “क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीटस् एंड क्रिस्पर एसोटिएटिड प्रोटीन-9” है।
- इस तकनीक ने पादप प्रजनन में विभिन्न संभावनाओं को खोल दिया है। इस तकनीक का उपयोग करके कृषि वैज्ञानिक अब जीन अनुक्रम में विशिष्ट लक्षणों को सम्मिलित करने हेतु जीनोम की एडिटिंग कर सकते हैं।
- एडिटिंग की प्रकृति के आधार पर संपूर्ण प्रक्रिया को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- SDN1, SDN2 और SDN3।
- साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज़ (SDN) 1 विदेशी आनुवंशिक सामग्री के प्रवेश के बिना ही छोटे सम्मिलन/विलोपन के माध्यम से मेज़बान जीनोम के DNA में परिवर्तन का का सूत्रपात करता है।
- SDN2 के तहत एडिटिंग में विशिष्ट परिवर्तनों की उत्पत्ति हेतु एक छोटे DNA टेम्पलेट का उपयोग करना शामिल है। इन दोनों प्रक्रियाओं में विदेशी आनुवंशिक सामग्री शामिल नहीं होती है और अंतिम परिणाम पारंपरिक नस्ल वाली फसल की किस्मों के समरूप ही होता है।
- SDN3 प्रक्रिया में बड़े DNA तत्त्व या विदेशी मूल के पूर्ण लंबाई वाले जीन शामिल होते हैं जो इसे आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) के विकास के समान बनाता है।
- जीनोम एडिटिंग के लिये कई दृष्टिकोण विकसित किये गए हैं। इसमें से एक मुख्य तकनीक को CRISPR-Cas9 कहा जाता है।
- वैश्विक विकास:
- अधिकांश फसलों के पौधों में जीनोम एडिटिंग का उपयोग किया जा रहा है जिसके लिये आंशिक या पूर्ण जीनोम अनुक्रम उपलब्ध है और 25 देशों में लगभग 40 फसलों में इस तकनीक को लागू किया जा रहा है।
- अमेरिका और चीन चावल, मक्का, सोयाबीन, कैनोला तथा टमाटर जैसी फसल किस्मों को विकसित करने के लिये इस तकनीक के उपयोग में अग्रणी हैं, जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली जैविक और अजैविक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
जीन एडिटिंग और जेनेटिकली मॉडिफाइंग में अंतर:
- आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों और जानवरों के निर्माण के लिये वैज्ञानिक आमतौर पर एक जीव से एक जीन को हटा देते हैं तथा इसे दूसरे जीव में यादृच्छिक रूप से जोड़ देते हैं।
- एक प्रसिद्ध आनुवंशिक रूप से संशोधित प्रकार की फसल बीटी मक्का और कपास है, जहाँ एक जीवाणु जीन जोड़ा गया था जो पौधे के उस हिस्से में कीटनाशक विषाक्त पदार्थ पैदा करता है, जहाँ कीट के उत्पन्न होने का खतरा रहता है, इसे खाने से कीट की मृत्यु हो जाती है।
- जीन एडिटिंग नए विदेशी जीन की शुरुआत के बजाय जीवित जीव के मौजूदा डीएनए में छोटा, नियंत्रित परिवर्तन है।
- यह पता लगाना लगभग असंभव है कि किसी जीव के डीएनए को एडिटेड किया गया है या नहीं क्योंकि परिवर्तन स्वाभाविक रूप से होने वाले उत्परिवर्तन से अज्ञेय हैं।
जीनोम तकनीक का महत्त्व:
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार:
- इस प्रौद्योगिकी में काफी संभावनाएंँ हैं, यह तिलहन और दलहनी फसलों की किस्मों में सुधार लाने तथा बीमारियों, कीड़ों या कीटों के लिये प्रतिरोधी बनाने के साथ ही सूखे, लवणता एवं चरम गर्मी के प्रति सहनशीलता के गुण विकसित करेगी।
- फसल किस्मों का विकास:
- पारंपरिक प्रजनन तकनीक को कृषि फसल की किस्मों को विकसित करने में 8 से 10 साल लगते हैं, जबकि जीनोम संपादन द्वारा इसे दो से तीन साल में किया जा सकता है।
जीनोम एडिटिंग तकनीक की समस्याएंँ:
- विश्व भर में जीएम फसलें चर्चा का विषय रही हैं, कई पर्यावरणविदों ने जैव सुरक्षा और अपर्याप्त आंँकड़े के आधार पर इसका विरोध किया है। भारत में जीएम फसलों की शुरुआत श्रमसाध्य प्रक्रिया है जिसमें जांँच के कई स्तर शामिल हैं।
- अब तक एकमात्र फसल जो नियामक लालफीताशाही की बाधाओं को पार कर चुकी है, वह है बीटी कपास।
- भारत और दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा जीएम फसलों तथा जीनोम एडिटेड फसलों के बीच रेखा खींचने में तेज़ी देखी गई है। बाद में उन्होंने बताया कि उनमें कोई विदेशी आनुवंशिक सामग्री नहीं है जो उन्हें पारंपरिक संकरों से अप्रभेद्य बनाती है।
- विश्व स्तर पर यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने जीनोम-एडिटेड फसलों को जीएम फसलों के रूप में वर्गीकृत किया है। अर्जेंटीना, इज़रायल, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में जीनोम-एडिटेड फसलों के लिये उदार नियम हैं।
- जीन एडिटिंग तकनीक जिसमें जीन के कार्य को बदलकर "बड़े और अनपेक्षित परिणाम" पैदा कर सकते हैं, पौधों की "विषाक्तता और एलर्जी" को भी बदल सकते हैं।
आगे की राह
- जीनोम प्रौद्योगिकी के संबंध में इस तरह की नई प्रगति के समक्ष घरेलू और निर्यात उपभोक्ताओं के लिये नियामक व्यवस्था को मज़बूत करने के साथ-साथ तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है।.
- प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये और अनुसंधान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिये।
- सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्ती के साथ पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की आवश्यकता के साथ-साथ अवैध जीएम फसलों के प्रसार को रोकने के लिये कानूनों के प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में अक्सर चर्चा में रहने वाली 'जीनोम अनुक्रमण' की तकनीक को निकट भविष्य में किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: D व्याख्या:
अतः विकल्प (D) सही है। |