भारतीय अर्थव्यवस्था
GST रेवेन्यू गैप: NIPFP
- 26 Dec 2020
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चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान (National Institute for Public Finance and Policy- NIPFP) के अनुसार, वर्ष 2020-21 में राज्यों को दिये जाने वाले वस्तु एवं सेवा कर (GST) मुआवज़े के लिये राजस्व में लगभग 1.95 लाख करोड़ रुपए की कमी हो सकती है।
- GST परिषद द्वारा अनुमानित 2.35 लाख करोड़ रुपए की तुलना में यह राशि काफी कम है।
प्रमुख बिंदु:
GST मुआवज़ा:
- GST (राज्यों के लिये मुआवज़ा) अधिनियम, 2017 [GST (Compensation to States) Act, 2017] के अंतर्गत राज्यों को पाँच वर्षों (2017-2022) की अवधि के लिये GST के कार्यान्वयन के कारण हुए राजस्व के नुकसान की भरपाई की गारंटी दी गई है।
- मुआवज़े की गणना राज्यों के वर्तमान GST राजस्व और 2015-16 को आधार वर्ष मानकर 14% वार्षिक वृद्धि दर के आकलन के बाद संरक्षित राजस्व के बीच अंतर के आधार पर की जाती है।
- GST मुआवज़े का भुगतान विशेष रूप से मुआवज़े से प्राप्त उपकर (Cess) के रूप में एकत्र धन का उपयोग करके किया जाता है।
- क्षतिपूर्ति उपकर विलासिता (Luxury) वाले उत्पादों पर लगाया जाता है।
अन्य संबंधित बिंदु :
- राज्य GST संग्रह में राजस्व अंतर 2.85 से 3.27 लाख करोड़ रुपए के बीच तथा वर्ष 2020-21 में GST मुआवज़ा उपकर संग्रह में अंतर 82,242 करोड़ से 90,386 करोड़ रुपए के मध्य रहने की उम्मीद है।
- इसलिये वर्ष 2020-21 में राज्यों को पूर्ण GST मुआवज़ा प्रदान करने के लिये 1.95 लाख से 2.45 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता हो सकती है।
- गोवा, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और छत्तीसगढ़ के लिये अधिकतम राजस्व अंतराल की उम्मीद है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- हाल ही में वित्त मंत्रालय ने राज्यों की GST क्षतिपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये 6,000 करोड़ रुपए की आठवीं साप्ताहिक किस्त जारी की है, इस तरह अब तक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (States & UTs) को इन किस्तों के ज़रिये 48,000 करोड़ रुपए जारी किये जा चुके हैं।
- भारत सरकार ने जीएसटी से प्राप्त राजस्व में 1.10 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित कमी को पूरा करने के लिये इस वर्ष अक्तूबर में उधार लेने हेतु एक विशेष प्रक्रिया शुरू की थी। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की ओर से भारत सरकार द्वारा इस प्रक्रिया के माध्यम से ऋण लिया जा रहा है।
राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान ( NIPFP):
- निर्माण: NIPFP सार्वजनिक वित्त के क्षेत्र में अनुसंधान और एक स्वायत्त निकाय के रूप में वर्ष 1976 में स्थापित सार्वजनिक नीति के लिये एक केंद्र है। यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है।
- उद्देश्य: संस्थान का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित क्षेत्रों में नीति निर्माण में योगदान देना है।
- कार्य:
- यह सार्वजनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान, नीति एडवोकेसी और क्षमता निर्माण का कार्य करता है।
- संस्थान का एक प्रमुख अधिदेश विश्लेषणात्मक आधार प्रदान कर सार्वजनिक नीतियों के निर्माण और सुधार में केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों की सहायता करना है।
- वित्तपोषण: यह वित्त मंत्रालय और विभिन्न राज्य सरकारों से वार्षिक अनुदान प्राप्त करता है। हालाँकि यह अपने स्वतंत्र गैर-सरकारी प्रकृति को बनाए रखता है।
- नियामक निकाय:
- इसमें राजस्व सचिव, आर्थिक मामलों के सचिव और वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार तथा नीति आयोग, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) एवं तीन राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- इसमें तीन प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, प्रायोजक एजेंसियाँ और अन्य आमंत्रित सदस्य भी शामिल हैं।
- यह अध्यक्ष और निदेशक की नियुक्ति में अहम भूमिका निभाता है।
- अध्यक्ष का सामान्य कार्यकाल चार वर्ष का होता है तथा इसे बढ़ाया जा सकता है।
- वर्तमान में RBI के पूर्व गवर्नर डॉ उर्जित पटेल इसके अध्यक्ष हैं।
- स्थान: नई दिल्ली।