DNA टेस्ट की बढ़ती मांग | 01 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA), DNA परीक्षण, DNA तकनीक। मेन्स के लिये:डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA), DNA परीक्षण का महत्त्व और DNA तकनीक। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अदालती मामलों में डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) टेस्ट के बढ़ते उपयोग पर चिंता व्यक्त की है।
शामिल मुद्दे:
- बड़ी संख्या में की गई शिकायतों में DNA परीक्षण की मांग की गई है। सरकारी प्रयोगशाला के अनुसार ऐसी मांगें सालाना लगभग 20% बढ़ रही हैं।
- हालाँकि DNA प्रौद्योगिकी पर निर्भर 70 अन्य देशों की तुलना में भारतीय प्रयोगशालाओं द्वारा वार्षिक तौर पर किये जाने वाले 3,000- DNA परीक्षण महत्त्वहीन हैं, मांग में वृद्धि गोपनीयता और संभावित डेटा दुरुपयोग के संबंध में चिंता का विषय है।
- न्याय के दायरे में DNA परीक्षण हमेशा से संदेहों के दायरे में रहा है, सत्य को उजागर करने के लिये यह एक लोकप्रिय आवश्यकता बना हुआ है चाहे वह किसी आपराधिक मामले के साक्ष्य के रूप में हो, वैवाहिक बेवफाई का दावा हो या पितृत्व को साबित करने और व्यक्तिगत गोपनीयता पर आत्म-अपराध एवं अतिक्रमण के जोखिम के रूप में हो।
- यह न्याय की प्रक्रिया में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी के विस्तार पर ध्यान देता है लेकिन यह लोगों की गोपनीयता का भी उल्लंघन करता है।
- अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि शारीरिक स्वायत्तता और निजता मौलिक अधिकार का हिस्सा हैं।
- परिचय:
- डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) जटिल आणविक संरचना वाला एक कार्बनिक अणु है।
- DNA अणु की किस्में मोनोमर न्यूक्लियोटाइड्स की एक लंबी शृंखला से बनी होती हैं। यह एक डबल हेलिक्स संरचना में व्यवस्थित है।
- जेम्स वाटसन और फ्राँसिस क्रिक ने खोजा कि DNA एक डबल-हेलिक्स पॉलीमर है जिसे वर्ष 1953 में बनाया गया था।
- यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीवों की आनुवंशिक विशेषता के हस्तांतरण के लिये आवश्यक है।
- DNA का अधिकांश भाग कोशिका के केंद्रक में पाया जाता है इसलिये इसे केंद्रीय DNA कहा जाता है।
DNA चार नाइट्रोजनी क्षारों से बने कोड के रूप में डेटा को स्टोर करता है।
- प्यूरीन:
- एडेनिन (A)
- गुआनिन (G)
- पाइरिमिडीन
- साइटोसिन (C)
- थाइमिन (T)
DNA परीक्षण का उपयोग
- परित्यक्त माताओं और बच्चों से जुड़े मामलों की पहचान करने एवं उन्हें न्याय दिलाने के लिये DNA परीक्षण आवश्यक है।
- यह नागरिक विवादों में भी अत्यधिक प्रभावी तकनीक है जब अदालत को रखरखाव के मुद्दे को निर्धारित करने और बच्चे के माता-पिता की पहचान करने की आवश्यकता होती है।
विगत मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित उदाहरण:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्षों से स्थापित किये गए उदाहरण बताते हैं कि न्यायाधीश आनुवंशिक परीक्षणों के लिये "रोविंग इंक्वायरी" के रूप में आदेश नहीं दे सकते हैं (भबानी प्रसाद जेना, 2010 मामला)।
- बनारसी दास वाद, 2005 में, यह माना गया कि DNA परीक्षण को पक्षकारों के हितों को संतुलित करना चाहिये। DNA परीक्षण उस स्थिति में नहीं किया जाना चाहिये यदि मामले को साबित करने के लिये अन्य भौतिक साक्ष्य उपलब्ध हों।
- न्यायालय ने अशोक कुमार मामला, 2021 में अपने फैसले में कहा कि आनुवंशिक परीक्षण का आदेश देने से पहले अदालतों को "वैध उद्देश्यों की आनुपातिकता" पर विचार करना चाहिये।
- के.एस. पुट्टस्वामी मामला (2017) में संविधान पीठ के फैसले ने पुष्टि की कि निजता का अधिकार जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का एक बुनियादी पहलू है, इसने निजता के तर्क को सुदृढ़ किया है।
- एक महिला से जुड़े मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया कि किसी को अपनी मर्जी के खिलाफ DNA टेस्ट कराने के लिये मजबूर करना उसके व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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