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सुप्रीम कोर्ट के जजों के समूह द्वारा सीजेआई के कर्त्तव्यों को संहिताबद्ध करने का प्रयास

  • 17 Apr 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों के एक समूह ने मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के व्यापक कर्त्तव्यों को संहिताबद्ध करने का प्रयास किया, ऐसा विशेष रूप से ‘रोस्टर के मास्टर’ (Master of Roster) के रूप में मुख्य न्यायाधीश की मामलों को आवंटित करने संबंधी क्षमता के संदर्भ में किया गया।

पृष्ठभूमि  

  • सीजेआई के कार्यों को ‘संस्थागत’ बनाने का यह प्रयास 12 जनवरी की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने सर्वोच्च न्यायालय में मामलों के आवंटन के  तरीके के बारे में सवाल उठाए थे।
  • उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीश चयनात्मक रूप से संवेदनशील और राष्ट्रीय स्तर के महत्त्वपूर्ण मामलों को अपनी पसंदीदा बेंचों को आवंटित करते आए हैं।
  • उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार विनती करने के पश्चात् भी वर्तमान मुख्य न्यायाधीश समुचित कार्यवाही करने में असफल रहे हैं।
  • मामले आवंटन के तरीके को संहिताबद्ध करने का प्रयास सर्वोच्च न्यायालय के भीतर स्थिति में सुधार लाने हेतु किया गया था।
  • मध्यस्थ न्यायाधीशों के समूह में एसए बोबडे, एनवी रमन, यूयू ललित, डीवाई चंद्रचूड़ और एके सीकरी शामिल थे।
  • न्यायाधीशों के इस समूह ने अपने इस कदम को "भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्याय प्रशासन के तहत विभिन्न क्षेत्रों में प्रथाओं और सम्मेलनों को संस्थागत और सशक्त बनाने" के प्रयास के उद्देश्य के रूप में देखा।
  • पाँच सदस्यीय इस समूह ने मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ गहन बातचीत की और एक समिति के गठन का सुझाव दिया।
  • न्यायाधीशों का यह पैनल सर्वोच्च न्यायालय के अभिसमयों और प्रथाओं को संस्थागत बनाने का प्रयास करेगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अभिसमयों में यह कहा गया है कि बड़े मामलों की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिये और अगर सीजेआई द्वारा संभव न हो तो मामला दूसरे न्यायालय में भेजा जाना चाहिये और इसी तरह अदालतों के अवरोही क्रम में मामलों का स्थानांतरण किया जाना चाहिये।
  • बेंचों का गठन न्यायाधीशों की वरिष्ठता के आधार पर किया जाना चाहिये।
  • समिति का गठन और सदस्यों के बारे में विचार-विमर्श भी किया गया।
  • लेकिन इसी बीच बातचीत बंद हो गई और सारे प्रस्ताव अधर में लटक गए।

वर्तमान स्थिति

  • 11 अप्रैल, 2018 को तीन सदस्यीय बेंच द्वारा एक निर्णय दिया गया, जिसमें यह माना गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास मामलों को आवंटित करने और न्यायपीठों का गठन करने के लिये ‘अनन्य विशेषाधिकार’ है। 
  • 11 अप्रैल के इस फैसले में नवंबर 2017 में पाँच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के उस फैसले को दोहराया गया जिसमें सीजेआई को मास्टर ऑफ रोस्टर के रूप में अनन्य प्रभुत्त्व (absolute dominance) प्रदान किया गया था।
  • 13 अप्रैल, 2018 को जस्टिस सीकरी के नेतृत्व वाली एक बेंच ने इस संबंध में शांति भूषण द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय मामलों की आवंटन संबंधी प्रक्रिया न्यायालय का आंतरिक मामला है, अतः स्वयं न्यायाधीशों को स्वशासन तंत्र (self-governing mechanism) का विकास करने देना चाहिये।
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