टीवी पर प्रसारित सामग्री पर नियंत्रण हेतु शिकायत निवारण तंत्र की आवश्यकता | 13 Jan 2017
पृष्ठभूमि
12 जनवरी, 2017 को उच्चतम न्यायालय द्वारा केबल टेलीविज़न नेटवर्क (नियामक) अधिनियम [Cable Television Networks (Regulation) Act] के अंतर्गत, निजी टीवी एवं रेडियो चैनलों द्वारा प्रसारित की जाने वाली सामग्री से संबंधित शिकायतों के निवारण की प्रक्रिया को सरलीकृत करके एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है|
प्रमुख बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर की खंडपीठ ने मीडिया द्वारा उजागर की जाने वाली आत्म नियामक प्रक्रिया के कार्य के विषय में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया|
- हालाँकि,खंडपीठ द्वारा ऐसा कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया गया जो सरकार को टीवी अथवा रेडियो चैनलों द्वारा प्रसारित की जाने वाली सामग्री अथवा प्रसारण की जाँच करने का आदेश देता हो|
- उच्चतम न्यायालय द्वारा यह बयान एक गैर-सरकारी संगठन “मीडिया वॉच इंडिया” (Media watch India) द्वारा प्रस्तुत याचिका की सुनवाई के दौरान जारी किया गया है|
- ध्यातव्य है कि यह मुद्दा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) में निहित मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है|
सीमित समय
- न्यायालय द्वारा केबल नेटवर्क अधिनियम के तहत दाखिल की जाने वाली ऐसी सार्वजानिक शिकायतों तथा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया की समय सीमा के संबंध में सरकार को औपचारिक दिशा-निर्देश जारी करने को कहा गया है|
- दरअसल, न्यायालय ने एक गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज़ (Common Cause) द्वारा सामुदायिक रेडियो स्टेशनों सहित निजी एफएम रेडियो स्टेशनों पर टेलीविज़न चैनलों के ही समान समाचारों के प्रसारण के संबंध में दायर याचिका के सन्दर्भ में केंद्र सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है|
- ध्यातव्य है कि उच्चतम न्यायालय ने सरकार को चार सप्ताह में इसका जवाब देने को कहा है|
- याचिका में कहा गया है कि टेलीविज़न चैनलों की भाँति देश में कार्यरत तकरीबन 245 निजी एफएम चैनलों एवं 145 सामुदायिक चैनलों को भारत सरकार के सूचना प्रसारण केंद्र प्रसार भारती की नियमावली के अंतर्गत कार्यक्रमों के प्रसारण के विषय में कोई अनुमति प्रदान नहीं की गई है|
- वस्तुतः भारत पहला ऐसा लोकतांत्रिक राष्ट्र है जहाँ रेडियो एवं टेलीविज़न के प्रसारण के विषय में (प्रसार भारती एवं आकाशवाणी पर) सरकार को पूर्ण अधिकार प्राप्त है|