हरित न्यायाधिकरण और गन्ना क्रेशरों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम | 18 Feb 2017
गौरतलब है, कि पर्यावरण मंत्रालय चीनी उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए मानदंडों को अधिसूचित कर चुका है| राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने अपने एक निर्णय में यह संकेत दिया है कि गन्ना क्रेशर जिन्हें परंपरागत रूप से कोल्हू (kohlu) के नाम से जाना जाता है - के लिए पृथक मानदंड होंगे|
प्रमुख बिंदु :
- हाल ही में, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने निर्णय दिया कि ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central Pollution Control Board CPCB) को गन्ना क्रेशरों से होने वाले प्रदूषण के विषय में अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसका उपयोग बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में वृहत स्तर पर होता है |
- विदित हो कि यह न्यायाधिकरण सहारनपुर निवासी अनिल कुमार की याचिका की सुनवाई कर रहा था| इस याचिका में गन्ना क्रेशरों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए हरित न्यायालय से मानदंड और नियम बनाने की मांग की गयी थी |
- उल्लेखनीय है, कि न्यायाधिकरण को प्रस्तुत की गयी मांगों के सम्बन्ध में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विनियामकों को बनाने हेतु की गई आवेदक की मांग का समर्थन किया |
- इसने कहा कि प्रदूषण को कम करने के लिए ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ द्वारा ‘कोल्हू’ की निगरानी व उनका मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है|
- इसके अतिरिक्त न्यायाधिकरण ने यह भी कहा है कि गन्ना क्रेशर बड़ी मात्रा में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं तथा निलंबित पार्टिकुलेट मैटर व सम्बन्धित क्षेत्र के तापमान को बढ़ाने में भी योगदान करते हैं|
- न्यायाधिकरण ने यह भी उल्लेख किया कि भारतीय गन्ना विनिर्माण संघ(ISMA) के अनुसार, वर्ष 2010 से 2015 के मध्य औसतन 1296 लाख मेगाटन गन्ने के लिए तथा इसके 31.6% (409.4 लाख मेगाटन) भाग के लिए कोल्हू का उपयोग किया गया था|
- इसके अतिरिक्त,यह भी उल्लेख किया गया कि पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश में तक़रीबन 5000 क्रेशरों का उपयोग किया गया था |
अतः इन समस्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए हरित न्यायाधिकरण ने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से गन्ना क्रेशरों,उनके द्वारा होने वाले प्रदूषण तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके प्रभावों के विषय में एक स्वतंत्र अध्ययन करने को कहा है|