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जैव विविधता और पर्यावरण

हरित कर

  • 28 Jan 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के उपयोग को रोकने और देश में प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिये पुराने वाहनों पर ‘हरित कर’ (Green Tax) लगाने की घोषणा की।

प्रमुख बिंदु:

केंद्र सरकार का आदेश:

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय आठ वर्ष से पुराने वाहनों पर उनके फिटनेस प्रमाण पत्र के नवीनीकरण के समय एक हरित कर (रोड टैक्स की 10% से 25% दर तक) लगाएगा।
  • हरित कर से एकत्रित राजस्व को एक अलग खाते में रखा जाएगा और इसका उपयोग केवल प्रदूषण से निपटने के लिये किया जाएगा।

अपवाद:

  • मज़बूत हाइब्रिड, इलेक्ट्रिक वाहन और वैकल्पिक ईंधन जैसे कि सीएनजी, इथेनॉल और एलपीजी द्वारा संचालित और खेती में उपयोग किये जाने वाले वाहनों, जैसे- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और टीलर आदि को छूट दी जाएगी।

भेदकारी कर व्यवस्था:

  • निजी वाहनों से 15 वर्ष बाद पंजीकरण प्रमाणन के नवीनीकरण के समय हरित कर वसूला जाना प्रस्तावित है।
  • सार्वजनिक परिवहन वाहनों जैसे- सिटी बसों पर कम हरित कर लगाया जाएगा।
  • अत्यधिक प्रदूषित शहरों में पंजीकृत वाहनों पर उच्च हरित कर (रोड टैक्स का 50%) लगाया जाएगा।
  • ईंधन (पेट्रोल/डीज़ल) और वाहन के प्रकार के आधार पर भी अंतर किया जाएगा।

हरित कर का औचित्य:

  • वाहनों के प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना: 
    कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), फोटोकेमिकल ऑक्सीडेंट, लेड (Pb), पार्टिकुलेट मैटर (PM) आदि प्रमुख प्रदूषकों की वजह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम दृश्यता, कैंसर तथा श्वसन संबंधी रोगों के साथ-साथ हृदय संबंधी बीमारियों के प्रसार से मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • प्रदूषणकर्त्ता द्वारा भुगतान के (Polluter Pays Principle) सिद्धांत पर आधारित: यह आमतौर पर स्वीकार किया जाने वाला सिद्धांत है कि मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिये प्रदूषण की प्रबंधन लागत को प्रदूषणकर्त्ताओं द्वारा वहन किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये एक फैक्ट्री जो अपनी गतिविधियों के प्रतिफल के रूप में एक संभावित ज़हरीले पदार्थ का उत्पादन करती है, वह आमतौर पर इसके सुरक्षित निपटान के लिये ज़िम्मेदार है। इसी तरह प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के मालिकों द्वारा ग्रीन टैक्स का भुगतान किया जाता है।
    • यह सिद्धांत वर्ष 1992 के रियो घोषणापत्र का हिस्सा है जो दुनिया भर में सतत् विकास का मार्गदर्शन करने के लिये व्यापक उपाय सुनिश्चित करता है।
  • कार्बन प्राइसिंग: भारत के साथ-साथ अमेरिका, चीन और जापान कुछ ऐसे देश हैं जो जलवायु प्रभावों से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। पर्यावरण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये एक स्मार्ट दृष्टिकोण ही कार्बन प्राइसिंग कहलाता है। 
    • कार्बन प्राइसिंग: यह एक ऐसा उपाय है जो ग्रीनहाउस गैसों (GHG) द्वारा होने वाली हानि की लागतों की भरपाई करता है। 
    • उत्सर्जन: उत्सर्जन की लागत जिसका भुगतान जनता करती है जैसे:
      • फसलों का नुकसान
      • लू तथा सूखे के कारण स्वास्थ्य देखभाल की लागत 
      • बाढ़ और समुद्र स्तर के कारण संपत्ति का नुकसान 
    • कार्बन प्राइसिंग आमतौर पर उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को एक मूल्य के रूप निर्धारित करता है ।

हरित कर की आलोचना:

  • अतिरिक्त भार: सार्वजनिक परिवहन जैसे- बसों पर अतिरिक्त कर लगाने से इसका बोझ लोगों पर पड़ेगा जो पहले से ही महामारी के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
    • पहले से ही पेट्रोल और डीज़ल पर कर की उच्च दर आरोपित है, हरित कर वाहन मालिकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाएगा।
  • मुद्रास्फीति में वृद्धि: हरित कर समग्र परिवहन लागत को बढ़ाएगा जो समग्र मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है।

वायु प्रदूषण को रोकने हेतु अन्य पहलें

आगे की राह:

  • मूल्य समीकरण: यह कार्य कार्बन ईंधन पर आधारित वाहनों की तुलना में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देकर और अतिरिक्त कर लगाने की बजाय ऐसे कम उत्सर्जन वाले वाहनों की कीमतों को तर्कसंगत बनाकर किया जा सकता है।
  • सक्रिय उपाय:  प्रदूषण-निगरानी एप जैसे उपायों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • समन्वित प्रयास: वायु प्रदूषण से निपटना एक सार्वजनिक मुद्दा है और प्रत्येक की ज़िम्मेदारी है। इसलिये हरित कर जैसे उपायों को अपनाने के साथ सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी सहित ठोस और समन्वित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। इसमें सरकार (राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारें), शहर, समुदाय और व्यक्तियों को शामिल किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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