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भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रीडफ्लेशन

  • 30 Jun 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीडफ्लेशन, मुद्रास्फीति, अवस्फीति, अपस्फीति, पुन: मुद्रास्फीति, वेज-प्राइस स्पाइरल, आरबीआई

मेन्स के लिये:

ग्रीडफ्लेशन और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में यूरोप और अमेरिका में इस विषय पर आम सहमति बनी है कि मुद्रास्फीति के बजाय ग्रीडफ्लेशन जीवनयापन की लागत को और बढ़ा रहा है।

  • ग्रीडफ्लेशन/लालच मुद्रास्फीति को समझने के लिये यह जानना आवश्यक है कि मुद्रास्फीति कैसे काम करती है।

मुद्रास्फीति से संबंधित प्रमुख शब्दावलियाँ: 

  • मुद्रास्फीति:  
    • मुद्रास्फीति वह दर है जिस पर सामान्य मूल्य स्तर बढ़ता है। 
    • यदि यह बताया जाता है कि जून 2023 में मुद्रास्फीति की दर 5% थी तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था का सामान्य मूल्य स्तर जून 2022 की तुलना में 5% अधिक था।
  • अवस्फीति: 
    • अवस्फीति उस प्रवृत्ति को संदर्भित करती है जब मुद्रास्फीति की दर कम हो जाती है। 
    • यह उस अवधि को संदर्भित करती है जब कीमतें बढ़ रही होती हैं, लेकिन यह प्रत्येक विगत माह की तुलना में धीमी गति से बढ़ती है।
    • उदाहरणतः अप्रैल में यह 10%, मई में 7% और जून में 5% थी।  
  • अपस्फीति: 
    • अपस्फीति मुद्रास्फीति के बिल्कुल विपरीत है। कल्पना करें कि जून 2023 में सामान्य मूल्य स्तर जून 2022 की तुलना में 5% कम था। यह अपस्फीति है।
    • यह वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में एक सामान्य गिरावट है, जो आमतौर पर अर्थव्यवस्था में धन और ऋण की आपूर्ति में संकुचन से जुड़ी होती है।
  • मुद्रा संस्फीति (Reflation): 
    • मुद्रा संस्फीति आमतौर पर अपस्फीति के बाद होती है क्योंकि नीति निर्माता या तो सरकारी व्यय अधिक कर और/या ब्याज दरों को कम करके आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करते हैं।

मुद्रास्फीति का कारण:

  • कारक: 
    • लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost Push Inflation): उत्पादन के कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
      • उदाहरण: यदि आपूर्ति में विघटन के कारण कच्चे तेल की कीमतें रातोंरात 10% बढ़ जाती हैं, तो ऊर्जा लागत बढ़ने से सामान्य मूल्य स्तर बढ़ जाएगा।
    • मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation): मांग बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
      • उदाहरण: यदि भारतीय रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में तेज़ी से कटौती करता है, जिससे ब्याज दर गिरने के बाद लोग किफायती घर खरीद सकेंगे, तो नए घरों की मांग में अचानक वृद्धि से घर की कीमतें बढ़ जाएंगी।
  • मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय:
    • मौद्रिक नीति: जब अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक मांग होती है, तो केंद्रीय बैंक मांग को आपूर्ति के साथ संरेखित करने के लिये अपनी मौद्रिक नीति उपाय (संकुचनात्मक मौद्रिक नीति) के रूप में ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं। इसी तरह यदि मुद्रास्फीति लागत दबाव से उत्पन्न होती है, तो केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बढ़ाते हैं।
      • प्राथमिक उद्देश्य मांग को नियंत्रित करना है क्योंकि केंद्रीय बैंकों के पास सीधे आपूर्ति बढ़ाने के लिये सीमित उपकरण हैं।
      • उनका उद्देश्य वेतन-मूल्य वृद्धि को रोकना होता है, जहाँ बढ़ती कीमतें उच्च मज़दूरी, उत्पादन लागत में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि का कारण बनती हैं।
    • राजकोषीय नीति: यदि मुद्रास्फीति का दबाव है, तो उस स्थिति में सरकार अर्थव्यवस्था में कुल मांग में मूल्य दबाव को कम करने के लिये व्यय को कम कर सकती है या कर बढ़ा सकती है।
      • अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिये सरकारी खर्च और राजस्व संग्रह (ज़्यादातर कर, लेकिन विनिवेश और ऋण जैसे गैर-कर राजस्व भी) का उपयोग राजकोषीय नीति के रूप में जाना जाता है।

वेज-प्राइस स्पाइरल: 

  • जब कीमतों में वृद्धि होती है, तब श्रमिक उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं, लेकिन इससे बिना आपूर्ति में सुधार हुए केवल समग्र मांग में ही वृद्धि होती है।
  • परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति न्यूनतम हो जाती है क्योंकि उच्च मज़दूरी से क्रय शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
  • केंद्रीय बैंक आर्थिक गतिविधि और मांग को कम करने के लिये ब्याज दरें बढ़ाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं। इन कमियों के बावजूद इस दृष्टिकोण का उपयोग केंद्रीय बैंकों द्वारा बढ़ती मज़दूरी तथा कीमतों के चक्र को रोकने के लिये किया जाता है, जिसे वेज-प्राइस स्पाइरल के रूप में जाना जाता है,साथ ही इसका उपयोग मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिये किया जाता है।

ग्रीडफ्लेशन: 

  • परिचय: 
    • ग्रीडफ्लेशन की स्थिति का सामान्य अर्थ निगमों द्वारा लालच-प्रेरित मुद्रास्फीति में हुई वृद्धि से है। वेतन-मूल्य सर्पिल के स्थान पर यह एक लाभ-मूल्य चक्र है जहाँ कंपनियाँ अपनी बढ़ी हुई लागत को प्राप्त करने और साथ ही लाभ मार्जिन को अधिकतम करते हुए कीमतों में अत्यधिक वृद्धि कर मुद्रास्फीति का लाभ उठाती हैं। ये मुद्रास्फीति की स्थिति में और अधिक वृद्धि करती हैं।
      • यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों में इस बात पर आम सहमति बन रही है कि ग्रीडफ्लेशन ही इसके लिये महत्त्वपूर्ण कारक है। 
  • परिदृश्य: 
    • प्राकृतिक आपदाओं या महामारी जैसे संकटों के दौरान कीमतों में सामान्यतः वृद्धि हो जाती हैं क्योंकि इनपुट लागत बढ़ने के कारण व्यवसाय कीमतें बढ़ा देते हैं।
    • हालाँकि कुछ मामलों में अधिक मूल्य वृद्धि के माध्यम से व्यापार में अत्यधिक लाभ अर्जित करके स्थिति का फायदा उठाते हैं।
  • प्रभाव: 
    • ग्रीडफ्लेशन कम आय और मध्यम वर्ग के व्यक्तियों पर असमान रूप से प्रभाव डालती है, यह उपभोग में कटौती कर जीवन स्तर को कम करता है।
      • जबकि यह अधिक आय और उच्च वर्ग के व्यक्तियों को उनकी संपत्ति के मूल्य में वृद्धि करके आय असमानता को बढ़ाते हुए लाभ पहुँचाता है।
    • कीमतों में अधिक वृद्धि और लालच द्वारा संचालित अनुमानों से इकोनॉमिक बबल (Economic Bubble) और अस्थिर बाज़ार की स्थिति पैदा हो सकती है। इससे वित्तीय बाज़ार दुर्घटनाओं और संकट के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, जिससे समग्र आर्थिक स्थिरता के लिये जोखिम पैदा होता है।
    • लालच से उत्पन्न मुद्रास्फीति के दबाव के परिणामस्वरूप देशों के बीच भिन्न-भिन्न नीतियाँ बन सकती हैं। प्रत्येक राष्ट्र मुद्रास्फीति से निपटने के लिये अलग-अलग रणनीतियाँ अपना सकता है, जिससे परस्पर विरोधी दृष्टिकोण सामने आ सकते हैं।
      • इससे वैश्विक असंतुलन, व्यापार तनाव और भू-राजनीतिक संघर्ष बढ़ सकते हैं क्योंकि देश प्रतिस्पर्द्धात्मकता की स्थिति में अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं।

 भारत में ग्रीडफ्लेशन:

  • प्रचलन: 
    • सूचीबद्ध कंपनियों का निवल लाभ रिकॉर्ड उच्च स्तर पर देखा जा सकता है।
    • मार्च 2023 में भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों (4,293) का निवल लाभ बढ़कर 2.9 ट्रिलियन रुपए हो गया, जो दिसंबर 2017 से दिसंबर 2019 तक महामारी-पूर्व औसत 0.83 ट्रिलियन रुपए से 3.5 गुना अधिक है, यह महामारी के बाद असाधारण लाभ सृजन का संकेत देता है।

  • ग्रीडफ्लेशन का अस्तित्व:
    • भारत में निवल लाभ में 60% वृद्धि का श्रेय पूरी तरह से लाभ मार्जिन में वृद्धि को दिया जा सकता है। बिक्री में वृद्धि हेतु अतिरिक्त 36% का योगदान शेष दोनों के संयोजन का  परिणाम था, जो ग्रीडफ्लेशन की उपस्थिति को दर्शाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति अथवा उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? (2021)

  1. विस्तारकारी नीतियाँ
  2. राजकोषीय प्रोत्साहन
  3. मुद्रास्फीति-सूचकांकन मज़दूरी
  4. उच्च क्रय शक्ति
  5. बढ़ती ब्याज दर 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. खाद्य वस्तुओं का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में भार उनके थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता है, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान हेतु तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण और परिवर्तन हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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