महान प्राचीन शासक: सिकंदर और चंद्रगुप्त | 22 Nov 2021
प्रिलिम्स के लिये:सिकंदर, चंद्रगुप्त, चोल साम्राज्य, चंगेज़ खान मेन्स के लिये:शासकों की महानता संबंधी विवाद एवं इसके प्रभावी कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को हराया था और फिर भी इतिहासकारों ने सिकंदर को महान कहा है।
- प्रारंभिक इतिहासकारों ने सिकंदर को महान कहा था। इसी तरह भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक, राजराज, राजेंद्र चोल और अकबर के लिये 'महान' शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
- हालाँकि बाद के इतिहासकारों ने अपना ध्यान व्यक्तिगत शासकों की राजनीतिक विजय से हटाकर अपने समय के समाज, अर्थव्यवस्था, कला और वास्तुकला की ओर केंद्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
- राजाओं की महानता का कारण:
- सिकंदर:
- सिकंदर की शानदार सैन्य विजय इसका प्रमुख कारण है, जिसने प्राचीन विश्व के यूरोपीय लेखकों और इतिहासकारों को चकित कर दिया।
- उसने 30 वर्ष की आयु से पहले दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य (323 ईसा पूर्व) स्थापित किया था जो ग्रीस से लेकर भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा तक आधुनिक पश्चिमी और मध्य एशिया में फैला था।
- चंद्रगुप्त मौर्य:
- यह मौर्य साम्राज्य (321 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व) का संस्थापक था जो सिंधु और गंगा दोनों के मैदानों को नियंत्रित करता था एवं इसका साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी महासागरों तक फैला हुआ था।
- अपने शासन के केंद्र में पाटलिपुत्र के साथ मौर्य साम्राज्य ने पहली बार अधिकांश दक्षिण एशिया को एकीकृत किया।
- उन्होंने केंद्रीकृत प्रशासन और कर-संग्रह की एक व्यापक और कुशल प्रणाली की नींव रखी, जिसने उनके साम्राज्य का आधार बनाया।
- बुनियादी ढाँचे के निर्माण, वज़न और माप के मानकीकरण के साथ व्यापार एवं कृषि में सुधार तथा विनियमन किया गया एवं एक बड़ी स्थायी सेना हेतु प्रावधान किये गए।
- यह मौर्य साम्राज्य (321 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व) का संस्थापक था जो सिंधु और गंगा दोनों के मैदानों को नियंत्रित करता था एवं इसका साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी महासागरों तक फैला हुआ था।
- चोल साम्राज्य:
- चोल सम्राट राजराज प्रथम (985-1014) और राजेंद्र प्रथम (1014-1044) ने मज़बूत नौसेनाओं का निर्माण किया जिन्होंने मालदीव पर विजय प्राप्त की और बंगाल की खाड़ी के पार श्रीलंका व दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों तक पहुँचे।
- चंगेज़ खान और अन्य:
- चंगेज़ खान (1162-1227) ने एशिया और यूरोप के एक बड़े क्षेत्र पर अपने अधिकार की मुहर लगा दी तथा अन्य विजेता जैसे- तामेरलेन, एटिला द हुन और शारलेमेन के साथ ही अशोक, अकबर व औरंगज़ेब ने अपने बहुत बड़े साम्राज्यों का निर्माण किया।
- सिकंदर:
सिकंदर (356-323 BC):
- परिचय:
- सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में प्राचीन ग्रीस के पेला में हुआ था और वह 20 साल की आयु में अपने पिता राजा फिलिप द्वितीय के सिंहासन पर बैठा।
- अगले 10 वर्षों में सिकंदर ने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के बड़े हिस्सों में अभियानों का नेतृत्व किया।
- 330 ईसा पूर्व में उसने गौगामेला के निर्णायक युद्ध में डेरियस III को हराया और आज के अफगानिस्तान के उत्तर में अमु दरिया क्षेत्र में स्थित बैक्ट्रिया में एक लंबे अभियान के बाद उसने हिंदूकुश को पार किया तथा काबुल घाटी में प्रवेश किया।
- सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में प्राचीन ग्रीस के पेला में हुआ था और वह 20 साल की आयु में अपने पिता राजा फिलिप द्वितीय के सिंहासन पर बैठा।
- भारतीय अभियान:
- 326/327 ईसा पूर्व में सिकंदर ने पुराने फारसी साम्राज्य की सबसे दूर की सीमा सिंधु को पार किया और अपना भारतीय अभियान शुरू किया जो लगभग दो वर्ष तक चला।
- तक्षशिला के राजा ने सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन झेलम के पार उसे एक महान योद्धा द्वारा चुनौती दी गई, जिसे ग्रीक स्रोतों ने पोरस के रूप में पहचाना है।
- इसके बाद हुई हाइडेस्पीस की लड़ाई में सिकंदर जीत गया, लेकिन पोरस के साथ अपने प्रसिद्ध मुलाकात के बाद (जिसके बारे में कहा जाता है कि घायल राजा ने मांग की थी कि हमलावर सम्राट उसके साथ एक शासक के लिये उपयुक्त व्यवहार करे) वह अत्यधिक प्रभावित हुआ।
- वापसी:
- मगध का ‘नंद’ (362 ईसा पूर्व-321 ईसा पूर्व), जिसमें ग्रीक लेखकों के अनुसार, कम-से-कम 20,000 घुड़सवार, 200,000 पैदल सेना और 3,000 युद्ध हाथी शामिल थे।
- ‘गंगारिदाई साम्राज्य’, जो आज के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में विस्तृत था।
- पोरस की हार के बाद सिकंदर गंगा नदी बेसिन में आगे बढ़ना चाहता था लेकिन पंजाब की पाँच नदियों में से अंतिम ‘ब्यास’ तक पहुँचने पर उसके सेनापतियों ने आगे जाने से इनकार कर दिया।
- इसने सिकंदर को वापस मुड़ने के लिये मजबूर कर दिया और वह दक्षिण की ओर सिंधु नदी के साथ आगे बढ़ते हुए उसके डेल्टा तक पहुँच गया, जहाँ उसने अपनी सेना का एक हिस्सा समुद्र के रास्ते ‘मेसोपोटामिया’ भेज दिया, जबकि दूसरे हिस्से को ‘मकरान तट’ के साथ ज़मीन के रास्ते पर ले गया।
- 324 ईसा पूर्व में वह फारस में ‘सुसा’ पहुँचा और अगले वर्ष प्राचीन शहर ‘बेबीलोन’ (वर्तमान बगदाद के दक्षिण में) में उसकी मृत्यु हो गई।
- माना जाता है कि उसके निरस्त भारतीय अभियान के बावजूद, सिकंदर कभी भी किसी लड़ाई में नहीं हारा और इस भविष्यवाणी को लगभग सही सिद्ध कर दिया कि वह पूरी दुनिया को जीत लेगा।
- जिस समय सिकंदर भारत से वापस लौटा, उसकी सेना थकी हुई थी, वह भारतीय मानसून में लड़ते-लड़ते थक चुकी थी, और यह संभव है कि वह दो महान सेनाओं की कहानियों से भयभीत थी जो आगे युद्ध के लिये उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं:
चंद्रगुप्त और सिकंदर:
- इतिहासकारों का अनुमान है कि चंद्रगुप्त के सत्ता में आने का वर्ष 324 ई.पू. से 313 ई.पू. तक है; हालाँकि यह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि 321 ईसा पूर्व में उसे सत्ता प्राप्त हुई, जबकि 297 ईसा पूर्व में उसकी मृत्यु हो गई।
- हालाँकि यदि इस तिथि को स्वीकार भी किया जाता है तो यह समय सिकंदर के भारत छोड़ने के बाद और ‘बेबीलोन’ में उसकी मृत्यु से ठीक पूर्व का होगा।
- ग्रीक सूत्रों से पता चलता है कि चंद्रगुप्त, सिकंदर के बाद के भारतीय अभियान के दौरान उससे संपर्क में रहा होगा।
- ‘ए. एल. बाशम’ की ‘द वंडर दैट वाज़ इंडिया’ में बताया गया है कि “ग्रीक के शास्त्रीय स्रोत ‘सैंड्रोकोटस’ नाम के एक भारतीय युवा का ज़िक्र करते हैं, जो कि भारतीय स्रोतों में ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ के समान है।
- इतिहासकार ‘प्लूटार्क’ का कहना है कि ‘सैंड्रोकोटस’ ने सिकंदर को ब्यास से आगे बढ़ने और नंद सम्राट पर हमला करने की सलाह दी, क्योंकि नंद वंश का आशय उस समय इतना अलोकप्रिय था कि लोग स्वयं सिकंदर के समर्थन में उठ खड़े होते।
- लैटिन इतिहासकार ‘जस्टिन’ कहते हैं कि बाद में ‘सैंड्रोकोटस’ ने अपने भाषण से सिकंदर को नाराज़ कर दिया और अंततः वह ग्रीक सेना को खदेड़ने तथा भारत का सिंहासन हासिल करने में सफल रहा।
- इन स्रोतों के आधार पर ‘ए.एल. बाशम’ ने निष्कर्ष निकाला कि ‘यह मानना उचित है कि सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, जो सिकंदर के आक्रमण के तुरंत बाद सत्ता में आया, कम-से-कम सिकंदर के विषय में जानते था और शायद उससे प्रेरित भी था।’
चंद्रगुप्त:
- परिचय:
- ग्रीक और भारतीय स्रोत इस बात से सहमत हैं कि चंद्रगुप्त ने ‘नंद’ वंश के अलोकप्रिय अंतिम राजा- ‘धननंद’ को उखाड़ फेंका और उसकी राजधानी पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा कर लिया।
- माना जाता है ‘चंद्रगुप्त’ को ब्राह्मण दार्शनिक ‘कौटिल्य’ का संरक्षण प्राप्त था, जिन्हें नंद राजा द्वारा अपमानित किया गया था।
- चाणक्य (कौटिल्य और विष्णुगुप्त) को प्रमुख भारतीय ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ के लेखन का श्रेय दिया जाता है, जो कि राजनीति विज्ञान, राज्य कला, सैन्य रणनीति और अर्थव्यवस्था पर एक अग्रणी भारतीय ग्रंथ है।
- बौद्ध ग्रंथों का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य ‘शाक्य’ से जुड़े क्षत्रिय ‘मोरिया’ वंश का था।
- हालाँकि ब्राह्मणवादी ग्रंथ ‘मौर्यों’ को शूद्र के रूप में संदर्भित करते हैं।
- कौटिल्य की रणनीति और अपनी महान सैन्य शक्ति से प्रेरित होकर चंद्रगुप्त अपनी शाही महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के अभियान की ओर बढ़ गया।
- ग्रीक और भारतीय स्रोत इस बात से सहमत हैं कि चंद्रगुप्त ने ‘नंद’ वंश के अलोकप्रिय अंतिम राजा- ‘धननंद’ को उखाड़ फेंका और उसकी राजधानी पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा कर लिया।
- उत्तर-पश्चिम की ओर अभियान:
- सिकंदर की सेना द्वारा पीछे छोड़े गए क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने हेतु वह उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ गया।
- ‘सिंधु’ तक पहुँचते ही ये क्षेत्र तेज़ी से उसके कब्ज़े में आ गए, हालाँकि वह इससे आगे बढ़ने में असफल रहा, क्योंकि सिकंदर के उत्तराधिकारी ‘सेल्यूकस निकेटर’ ने इस क्षेत्र पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली थी।
- इसके पश्चात् ‘चंद्रगुप्त’ मध्य भारत की ओर चला गया, लेकिन 305 ईसा पूर्व तक वह उत्तर-पश्चिम की ओर वापस लौट आया, जहाँ उसने सेल्यूकस निकेटर के विरुद्ध एक सैन्य अभियान का नेतृत्त्व किया, जिसमें वह सफल रहा।
- 303 ईसा पूर्व में हुई ‘शांति संधि’ से सेल्यूकस निकेटर के कुछ क्षेत्र, जो वर्तमान में पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और मकरान को कवर करते हैं, चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिये गए।
- इस दौरान कुछ वैवाहिक गठबंधन भी हुए तथा अभियान के दौरान व बाद में मौर्य तथा यूनानियों के बीच सांस्कृतिक संपर्क काफी बढ़ गया।