भारतीय अर्थव्यवस्था
रेपो रेट और ब्याज़ दर को जोड़ने का प्रस्ताव
- 26 Aug 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में लगभग एक दर्जन बैंकों ने घोषणा की थी कि वे अपनी ऋण दरों को रेपो रेट (Repo Rate) से जोड़ेंगे और अब भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने कहा है कि देश की संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को इस विषय पर विचार करना चाहिये तथा रेपो रेट को ऋण दरों से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये।
प्रमुख बिंदु:
- ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व ब्याज़ दरों को मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लैंडिंग रेट (Marginal Cost of Funds based Lending Rate-MCLR) के साथ जोड़ने की नीति अपनाई जाती थी।
- मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लैंडिंग रेट (MCLR) न्यूनतम ब्याज़ दर है और इससे नीचे एक बैंक को उधार देने की अनुमति नहीं होती है, हालाँकि RBI कुछ विशेष मामलों में इस प्रकार की अनुमति दे सकता है।
क्यों किया जा रहा है ऐसा?
- RBI रेपो रेट में कटौती का लाभ अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिये बैंकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि फरवरी 2019 से जून 2019 के बीच RBI ने रेपो रेट में लगभग 75 आधार अंकों की कटौती की थी परंतु ऋण लेने वाले लोगों को उसमें से सिर्फ 29 आधार अंकों का ही फायदा मिला था।
- यह भी उम्मीद की जा रही है कि इस प्रकार की प्रणाली अपनाकर ब्याज़ दरों को तय करने में अधिक पारदर्शिता आएगी।
रेपो रेट का आशय उस ब्याज़ दर से है जिस पर RBI बैंकों को धनराशि उधार देता है।
रिज़र्व बैंक का प्रस्ताव
- अपनी दिसंबर 2018 की मौद्रिक नीति की बैठक में रिज़र्व बैंक ने 1 अप्रैल, 2019 से रेपो दर तथा ट्रेज़री बिल (Treasury Bill) जैसे बाहरी बेंचमार्क और सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों के लिये मिलने वाले खुदरा ऋण को जोड़ने का प्रस्ताव किया था।
- ट्रेज़री बिल एक मुद्रा बाज़ार प्रपत्र है जिसका प्रयोग केंद्र सरकार द्वारा अल्पकालिक अवधि के ऋण एकत्रित करने हेतु किया जाता है। इसकी अधिकतम परिपक्वता अवधि 1 वर्ष की होती है।
- ट्रेज़री बिल को भारत में पहली बार 1917 में जारी किया गया था।
- हालाँकि अप्रैल 2019 को RBI ने घोषणा की थी कि उसने उपरोक्त प्रस्ताव को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है।