विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सरकार द्वारा डीप ओशन मिशन की योजना
- 30 Jul 2018
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चर्चा में क्यों ?
हाल ही में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा 'डीप ओशन मिशन’ (DOM) की एक रूपरेखा प्रस्तुत की गई।
प्रमुख बिंदु
- उपग्रहों का डिज़ाइन तैयार करने और उन्हें लॉन्च करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सफल कार्यों का अनुकरण करते हुए, सरकार ने महासागर के गहरे कोनों का पता लगाने के लिये ₹ 8,000 करोड़ की लागत से पाँच वर्षों के लिये यह योजना तैयार की है।
- इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रमुख परिदेयों में से एक अपतटीय विलवणीकरण संयंत्र है जो ज्वारीय ऊर्जा के साथ काम करेगा और एक पनडुब्बी वाहन विकसित करना है जो बोर्ड पर तीन लोगों के साथ कम-से-कम 6,000 मीटर की गहराई तक जा सकता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, यह मिशन 35 साल पहले इसरो द्वारा शुरू किये गए अंतरिक्ष अन्वेषण के समान गहरे महासागर का पता लगाने का प्रस्ताव करता है।
भारत का हिस्सा
- संयुक्त राष्ट्र इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी द्वारा पॉलिमेटेलिक नोड्यूल (PMN) के दोहन के लिये भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में 1,50,000 वर्ग किलोमीटर की साइट आवंटित की गई है। ये पीएमएन लोहे, मैंगनीज़, निकल और कोबाल्ट से युक्त समुद्र तल पर बिखरी हुई चट्टानें हैं।
- यह अनुमान लगाया गया है कि मध्य हिंद महासागर में समुद्र के तल पर 380 मिलियन मीट्रिक टन पॉलिमेटेलिक नोड्यूल उपलब्ध हैं।
- यह पारिकल्पना की गई है कि उस बड़े रिज़र्व की 10% प्राप्ति से अगले 100 वर्षों तक भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।
- भारत का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र 2.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला हुआ है और यह गहरे समुद्र में "अज्ञात और अप्रयुक्त" है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की योजना के अनुसार, अन्य पहलुओं के साथ ही गहरे समुद्री खनन, पानी के नीचे के वाहनों, पानी के नीचे रोबोटिक्स और महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं के लिये प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।