सरकार ने अधिसूचित किये नागरिकता संबंधी नियम | 27 Oct 2018
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किया है कि सात राज्यों के कुछ ज़िलों के संग्राहक भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिये ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं। राज्यों और केंद्र से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद उन्हें नागरिकता दी जाएगी।
प्रमुख बिंदु
- गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत प्रवासियों को नागरिकता और प्राकृतिक प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिये कलेक्टरों को शक्तियाँ दी हैं।
- हाल ही में गृह मंत्रालय ने नागरिकता नियम, 2009 की अनुसूची 1 भी बदल दिया।
- नए नियमों के तहत भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित मामलों पर नागरिकता की मांग करते समय अपने धर्म के बारे में घोषणा करना अनिवार्य होगा-
- भारतीय नागरिक से विवाह करने वाले किसी व्यक्ति के लिये।
- भारतीय नागरिकों के ऐसे बच्चे जिनका जन्म विदेश में हुआ हो।
- ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हों।
- ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता में से कोई एक स्वतंत्र भारत का नागरिक रहा हो।
ध्यातव्य है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में धर्म का कोई उल्लेख नहीं है। यह अधिनियम पाँच तरीकों से नागरिकता प्रदान करता है: जन्म, वंश, पंजीकरण, नैसर्गिक और देशीयकरण के आधार पर।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016
- नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रस्ताव नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिये पारित किया गया था।
- नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ हों या नहीं।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 में इस संबंध में अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें।
- भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India -OCI) कार्डधारक यदि किसी भी कानून का उल्लंघन करते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 से संबंधित समस्याएँ
- यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है। इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
- यह विधेयक किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर OCI पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं (जैसे नो पार्किंग क्षेत्र में पार्किंग)।
प्रस्तावित संशोधन
- नियंत्रण और संशोधन: ओसीआई कार्ड के पंजीकरण को रद्द करने के लिये केंद्र सरकार को दी गई विस्तृत शक्तियों को कम करना या एक समिति या एक लोकपाल नियुक्त करके नियंत्रण और संशोधन का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
- धर्म को आधार न माना जाए: केवल धर्म के आधार पर आप्रवासियों को निवास में 12 के स्थान पर 6 साल की छूट देने को हटाया जा सकता है क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के विचार के खिलाफ है।
- शरणार्थी: शरणार्थियों की अंतर्राष्ट्रीय समस्या को ध्यान में रखते हुए शरणार्थियों की स्थिति और वे किस स्थिति में भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं, को देखना ज़रूरी है। शरणार्थी और एक आप्रवासी के बीच स्पष्ट सीमा तय करना आवश्यक है।
आगे की राह
- कानून को लागू करने में कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिये और सभी को न्याय और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिये पूरी कोशिश की जानी चाहिये। अतीत में भी भारत ने उन शरणार्थियों को आश्रय दिया है, जिन्हें उनकी भाषा (श्रीलंका में तमिल) के कारण सताया जा रहा था। इस बिल में ऐसे अल्पसंख्यक शामिल नहीं हैं, इसलिये धार्मिक अल्पसंख्यकों की बजाय 'सताए गए अल्पसंख्यक' शब्द को शामिल करके कानून के दायरे को विस्तारित करना आवश्यक है।
अवैध आप्रवासी
भारत के विदेशी नागरिक
प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता
अनुच्छेद 14
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स्रोत : द हिंदू