भारतीय अर्थव्यवस्था
NRIs के लिये FDI मापदंडों में संशोधन
- 29 Jul 2020
- 8 min read
प्रीलिम्स के लिये
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी नए नियम, अनिवासी भारतीय मेन्स के लियेएयर इंडिया के विनिवेश से संबंधी विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलू, विमानन क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने नागरिक विमानन (Civil Aviation) से संबंधित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मानदंडों में संशोधन की अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत ‘अनिवासी भारतीयों' (Non-Resident Indian-NRIs) को एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी की अनुमति दी जाएगी।
प्रमुख बिंदु
- सरकार ने यह अधिसूचना एयर इंडिया (Air India) के रणनीतिक विनिवेश की मौजूदा प्रक्रिया के बीच जारी की है।
- ध्यातव्य है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसी वर्ष मार्च माह में अनिवासी भारतीयों (NRIs) को अनुमति देने के लिये FDI मानदंडों में बदलावों को मंज़ूरी दी थी।
- इस संबंध में सरकार द्वारा अधिसूचना में कहा गया है कि ‘अनिवासी भारतीयों (NRIs) के अतिरिक्त एयर इंडिया में कोई भी विदेशी निवेश, जिसमें विदेशी एयरलाइंस द्वारा किया जाने वाला निवेश भी शामिल है, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से 49 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।’
- इस अधिसूचना से पूर्व अनिवासी भारतीय (NRIs) भी एयर इंडिया में केवल 49 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिये ही बोली लगा सकते थे।
- इस निर्णय का महत्त्व
- ध्यातव्य है कि सरकार के इस हालिया निर्णय का मुख्य उद्देश्य एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया को और अधिक सरल तथा आकर्षक बनाना है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार का यह निर्णय एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया में एक बड़ा कदम होगा, अनुमान के अनुसार विनिवेश की प्रक्रिया मौज़ूदा वर्ष के अंत तक समाप्त हो जाएगी।
- गौरतलब है कि बीते माह केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर उत्पन्न हुई बाधा के मद्देनज़र तीसरी बार एयर इंडिया के लिये बोली लगाने की समय सीमा को बढ़ा दिया था।
- बोली लगाने की समय सीमा को 2 माह के लिये 31 अगस्त तक बढ़ाया गया था।
- एयर इंडिया का रणनीतिक विनिवेश
- गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने घाटे और कर्ज के बोझ तले दबी एयर इंडिया के विनिवेश की प्रक्रिया को इसी वर्ष जनवरी माह में एक नए प्रस्ताव के साथ पुनः शुरू किया था।
- इससे पूर्व भी वर्ष 2018 में सरकार ने एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश का प्रस्ताव रखा था, किंतु विभिन्न कारणों के परिणामस्वरूप सरकार को इसकी हिस्सेदारी खरीदने के लिये कोई भी बोलीदाता नहीं मिला था।
- हालाँकि इस नए प्रस्ताव के बाद भी सरकार को खरीदारों अथवा बोलीदाताओं को आकर्षित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और बोली की अवधि को कई बार बढ़ाया गया है।
- आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2007 में एयर इंडिया (अंतर्राष्ट्रीय परिचालन) के साथ तत्कालीन इंडियन एयरलाइंस (घरेलू संचालन) के विलय के बाद से अब तक एयर इंडिया ने कभी भी लाभ दर्ज नहीं किया है।
- एयर इंडिया के विनिवेश का एक मुख्य कारण उसके कर्ज के निपटान में सरकार की असमर्थता भी है, आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 तक एयर इंडिया पर कुल 52000 करोड़ रुपए का ऋण मौजूद था।
- विनिवेश में COVID-19 की चुनौती
- गौरतलब है कि एयर इंडिया पहले से ही नुकसान और कर्ज के बोझ के तले दबी हुई है और ऐसे में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने एयर इंडिया समेत भारत के संपूर्ण विमानन क्षेत्र को काफी प्रभावित किया है।
- COVID-19 के संक्रमण के कारण दुनिया भर के लगभग सभी देशों ने आंशिक अथवा पूर्व लॉकडाउन लागू किया था और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी, ऐसे में भारत की सभी विमानन कंपनियों को नुकसान का सामना करना पड़ा था।
- वहीं दूसरी ओर COVID-19 से संबंधित प्राथमिक जाँच उपकरण स्थापित करने के कारण कंपनियों की लागत में काफी वृद्धि हुई है तथा उनके लिये सोशल डिस्टेंसिंग जैसे मानकों का पालन करना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- घरेलू स्तर पर सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियों को भी काफी नुकसान हुआ है।
- ऐसी स्थिति में एयर इंडिया हेतु बोलीदाताओं की खोज करना सरकार के लिये काफी संघर्षपूर्ण कार्य होगा, क्योंकि भारत समेत वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है, और इस स्थिति में कोई भी निवेश एक भारी भरकम कर्ज के तले दबी कंपनी में निवेश क्यों ही करना चाहेगा।
- हालाँकि विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति सदैव ऐसी नहीं रहेगी और इसलिये एयर इंडिया में निवेश दीर्घकाल के लिये काफी अच्छा अवसर हो सकता है।
एयर इंडिया- इतिहास
- एयर इंडिया की शुरुआत 15 अक्तूबर, 1932 को जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD Tata) द्वारा ‘टाटा एयर सर्विसेज़’ के रूप में की गई थी। वर्ष 1938 में टाटा एयर सर्विसेज़ का नाम बदलकर टाटा एयरलाइंस कर दिया गया और द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् 29 जुलाई, 1946 को टाटा एयरलाइंस एक सूचीबद्ध कंपनी बन गई और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने वर्ष 1948 में एयर इंडिया की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया। इसके पश्चात् वर्ष 1953 में भारत सरकार ने वायु निगम अधिनियम (Air Corporations Act) के माध्यम से एयर इंडिया की अधिकांश हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया और इसे ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड’ नया नाम दिया गया।