बीसीआईएम आर्थिक गलियारे पर अंतर सरकारी बैठक | 26 Apr 2017
समाचारों में क्यों ?
विदित हो कि चीन ने प्रस्तावित बीसीआईएम (बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार) आर्थिक गलियारा के लिये अंतर-सरकारी व्यवस्था की आज वकालत की है। हाल ही में इस परियोजना पर दो साल के अंतराल के बाद बातचीत शुरू हुई है। बीसीआईएम आर्थिक गलियारा अध्ययन समूह की तीसरी बैठक में चीनी प्रतिनिधियों की अगुवाई कर रहे वांग शाओताओ ने कहा है कि प्रस्तावित पहल के लिये एक अंतर-सरकारी सहयोग व्यवस्था स्थापित करने की जरूरत है।
क्या है बीसीआईएम?
चीन के साथ बेहतर व्यापारिक रिश्ते कायम करने के लिए हाल ही में बीसीआईएम इकोनॉमिक कॉरिडोर के चीन के प्रस्ताव पर भारत ने सहमति जताई है।
विदित हो कि बीसीआईएम इकोनॉमिक कॉरिडोर भारत, बांग्लादेश, चीन एवं म्यांमार के बीच रेल एवं सड़क संपर्क परियोजना है, जिसके तहत भारत के कोलकाता, चीन के कुनमिंग, म्यांमार के मंडाले और बांग्लादेश के ढाका और चटगांव को आपस में जोड़ा जाएगा।
उम्मीद की जा रही है कि इस परियोजना से बहुरूपीय संपर्क, एक दूसरे के आर्थिक संसाधनों का उपयोग, व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा मिलेगा और चारों देशों के लोग एक दूसरे के संपर्क में आएंगे।
गौरतलब है कि चीन बीसीआईएम कॉरिडोर की बात 1990 के दशक से ही कर रहा है, लेकिन भारत इससे इन्कार करता रहा है। भारत के विदेशी मामले और सुरक्षा से जुड़े संस्थान चीन के साथ किसी भी तरह के स्थलीय संपर्क परियोजनाओं के खिलाफ अनिच्छा जताते रहे हैं।
भारत की इस अनिच्छा की मुख्य वजह यह है कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंध अच्छे नहीं रहे हैं और सीमा विवाद का भी समाधान नहीं होना है। लेकिन वर्ष 2013 में भारत ने बीसीआईएम गलियारे पर सहमति जताई थी, उसके बाद चारो देशों ने मिलकर इसके लिये एक समुचित कार्य योजना विकसित करने का निर्णय लिया था, हालाँकि अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई है।
इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य प्राचीनकालीन दक्षिणी सिल्क रोड को पुनर्जीवित करना है। यह कॉरिडोर आसपास के बड़े एवं मध्यम दर्जे के शहरों के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा।
निष्कर्ष
बीसीआईएम आर्थिक गलियारे की उपयोगिता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में दुनिया की 40 फीसदी आबादी रहती है। यदि यह कॉरिडोर स्थापित हो गया, तो पूर्वी एशिया और दक्षिणी एशिया के बीच यह सेतू का काम करेगा। इतना ही नहीं, यह कॉरिडोर आपसी विवादों में देशों को सहयोगी बनाने की क्षमता भी रखता है। लेकिन यह तभी हो सकता है, जब सभी पक्ष सकारात्मक रवैया अपनाएं।