अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-पाकिस्तान सीमा पर दीवार निर्माण की योजना ठंढे बस्ते में
- 20 Feb 2017
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समाचारों में क्यों?
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने सीमा पार से होने वाली घुसपैठ रोकने के लिए जम्मू में पाकिस्तान सीमा पर दीवार बनाने का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया है। सीमा पर दीवार निर्माण के बजाय सरकार ने अब ‘स्मार्ट फेंस’ जैसे तकनीकी उपायों पर ध्यान देने का फैसला किया है।
सरकार क्यों बनाना चाहती थी सीमा पर दीवार?
विदित हो कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने 2013 में हीरानगर और सांबा सेक्टर में आतंकी हमले के बाद जम्मू में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 179 किमी. लम्बा दीवार बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसका पाकिस्तान ने विरोध किया था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को 2015 में लिखे पत्र में पाकिस्तान ने भारत पर नियंत्रण रेखा को अंतर्राष्ट्रीय सीमा में बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय सेना ने भी इस प्रयास का यह कहकर विरोध किया था कि इससे सेना द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों में बाधा आएगी।
क्यों सरकार ने पीछे हटाए कदम?
विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर न केवल आबादी की अधिकता है बल्कि ज़मीन भी उपजाऊ और खेती योग्य है और इस कारण ज़्यादातर लोग अपनी ज़मीनें छोड़ना नहीं चाहते। ऐसे में दीवार बनाने के लिये मुश्किल से 25 फीसदी जमीन का ही अधिग्रहण संभव है।
सीमा सुरक्षित करने के उपाय
ध्यातव्य है कि सरकार ने सीमा सुरक्षा के लिये अब ‘स्मार्ट फेंस’ जैसे तकनीकी उपायों पर ध्यान देने का फैसला किया है। गौरतलब है कि स्मार्ट फेंस नामक इस तकनीक में सीसीटीवी कैमरों, रात में देखने में सक्षम उपकरण, रडार, भूमिगत सेंसर और लेजर बैरियर जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। विदित हो कि इन्हीं तकनीकी उपायों के साथ गृह मंत्रालय अब कॉप्रेहेंसिव इंटीग्रेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम (सीआईबीएमएस) नामक एक व्यवस्था पर काम कर रहा है।
क्यों उचित है सीमा पर दीवारों का निर्माण?
गौरतलब है कि पिछले साल गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर दीवार निर्माण की बात कही थी। यदि सरसरी तौर पर देखें तो सीमा पार से होने वाले आतंकवाद को रोकने के लिये सीमा पर अभेद्य दीवारों का निर्माण एक व्यवहारिक कदम प्रतीत होता है। गौरतलब है कि इज़रायल में 1994 में सीमा घेरने का काम शुरू हुआ था। सीमा घेरने के बाद वहाँ आतंकवादी हमलों में 90 प्रतिशत तक कमी आ गई। जब इज़रायल इस यह कर सकता है तो हम क्यों नहीं!
क्यों उचित नहीं है सीमा पर दीवारों का निर्माण?
सीमा पर अभेद्य दीवारों के निर्माण का यह विचार महत्त्वपूर्ण तो है लेकिन भारत में परिस्थितियाँ अलग हैं। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद सहित तमाम सुरक्षा चुनौतियाँ हैं। जम्मू-कश्मीर में भारत-पाकिस्तान सीमा का लगभग 210 कि. मी. ऐसा भूभाग जहाँ पहाड़ों की 18,000 फीट तक ऊँची दुर्गम चोटियाँ हैं, जहाँ पारा शून्य से 50 डिग्री नीचे तक चला जाता है, जहाँ सामान ढोने के लिये आज भी खच्चर आदि का प्रयोग किया जाता है। वहीं पंजाब और जम्मू सीमा के आस-पास की अधिकांश भूमि उपजाऊ है जिनका दीवार बनाने हेतु इस्तेमाल करना आसान नहीं है।एक चिंता यह भी है कि यदि भारत-पाक सीमा पर दीवार का निर्माण हो गया तो सेना के लिये पाकिस्तान की गतिविधियों पर नज़र रखना मुश्किल हो जाएगा जबकि भारत-पाक सीमा कितनी संवेदनशील है इससे हम सभी भली-भाँती परिचित हैं।
निष्कर्ष
सीमा को लेकर मोदी सरकार आरंभ से ही नए दृष्टिकोण से विचार करती रही है। गृह मंत्रालय ने देश की पूर्वी सीमा पर सुरक्षा को और अधिक पुख्ता बनाने के लिये एक समिति का गठन किया। उसके बाद भारत और बांग्लादेश सीमा को लेकर भी एक समिति का गठन किया गया। एक अन्य समिति पश्चिम सीमा के लिये बनाई गई थी। इन सारी समितियों की रिपोर्ट सरकार को पहले ही मिल चुकी है। इसमें कोई शक नहीं है कि सीमा सुरक्षा एक गंभीर मसला है अतः सीमा सुरक्षा से संबंधित प्रत्येक प्रयास का गंभीर अवलोकन भी होना चाहिये। सीमा पर दीवारों के निर्माण के बजाय ‘स्मार्ट फेंस’ जैसी तकनीकों के माध्यम से सीमा पार से होने वाले आतंक पर अंकुश लगाने की सोच, नीतियों में सकारात्मक बदलाव के संकेत हैं जो कि निश्चित रूप से सराहनीय है।