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भारतीय राजव्यवस्था

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ

  • 06 Jul 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ, अनुच्छेद 164, भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51(1) और 51(5), प्लेजर डॉक्ट्रिन

मेन्स के लिये:

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा एक मंत्री को बर्खास्त तथा निलंबित किये जाने के हालिया निर्णय ने संवैधानिक विवाद को जन्म दिया है। हालाँकि बाद में राज्यपाल ने अपना निर्णय बदल दिया और बर्खास्तगी आदेश को निलंबित कर दिया।

मंत्रियों को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ:

  • अनुच्छेद 164: 
    • संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
    • इस अनुच्छेद का तात्पर्य यह है कि राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार किसी मंत्री को नियुक्त नहीं कर सकता है। इसलिये राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 का संदर्भ: 
    • भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51(1) और 51(5) के तहत राज्यपाल के पास औपनिवेशिक शासन को संचालित करने वाले मंत्रियों को चुनने और बर्खास्त करने का पूर्ण विवेक था।  
    • हालाँकि भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्यपाल की भूमिका एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में बदल गई, जिसका काम पूरी तरह से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना था। 
  • राज्यपाल के विवेक पर संवैधानिक सीमाएँ: 
    • किसी मंत्री को चुनने अथवा बर्खास्त करने की शक्ति मुख्यमंत्री के पास होती है। 
      • संविधान सभा की बहस के दौरान बी.आर. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र कार्यकारी कार्य नहीं है।
    • संविधान के अनुच्छेद 164 में "राज्यपाल की प्रसादपर्यंतता" का समावेश केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर बर्खास्तगी आदेश जारी करने के औपचारिक कार्य को संदर्भित करता है।

नोट: प्रसादपर्यंत के सिद्धांत को भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया है। भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51 राज्यपाल को मंत्रियों का चयन करने के साथ-साथ बर्खास्त करने का विवेकाधिकार प्रदान करती है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 164 का मसौदा तैयार किये जाने के बाद "चयनित", "बर्खास्तगी" और "विवेक" शब्द हटा दिये गए। यह एक अहम कदम था जिसने यह स्पष्ट किया कि संविधान राज्यपाल को किसी मंत्री को चुनने अथवा बर्खास्त करने का कोई विवेकाधिकार नहीं देता है। 

राज्यपाल की शक्तियों का न्यायिक स्पष्टीकरण:  

  • शमशेर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1974):
    • उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि राष्ट्रपति और राज्यपाल, जिनके पास संविधान के अंतर्गत कार्यकारी शक्तियाँ हैं, को कुछ असाधारण स्थितियों को छोड़कर अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग केवल अपने मंत्रियों की सलाह से करना चाहिये।
  • नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर (वर्ष 2015):
    • उच्चतम न्यायालय  ने फैसला सुनाया है कि राज्यपाल चुनी हुई सरकारों के पतन का कारण नहीं बन सकते। इसने शमशेर सिंह मामले में पिछले फैसले की पुष्टि की और इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ अनुच्छेद 163(1) के प्रावधानों तक सीमित हैं
      • अनुच्छेद 163(1) के अनुसार, राज्यपाल को अपने कर्तव्यों के पालन में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद द्वारा सहायता और सलाह दी जाएगी, सिवाय इसके कि वह इस संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों या उनमें से किसी का पालन करने के लिये बाध्य है।

किसी मंत्री की बर्खास्तगी के मुद्दे से संबंधित चिंताएँ: 

  • संवैधानिक दुस्साहस: 
    • किसी मंत्री को हटाना नैतिक निर्णय का मामला है, कानूनी आवश्यकता का नहीं। मुख्यमंत्री की अनुशंसा के बिना किसी मंत्री को बर्खास्त करने का राज्यपाल का निर्णय एक संवैधानिक दुस्साहस है।
  • गलत मिसाल कायम करता है: 
    •  राज्य के मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना किसी सरकार के मंत्री को बर्खास्त करने का यह अभूतपूर्व और जान-बूझकर उकसाने वाला कृत्य एक मिसाल कायम कर सकता है, साथ ही यह संघीय व्यवस्था को खतरे में डालकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने की क्षमता रखता है।
  • संवैधानिक व्यवस्था का पतन: 
    • यदि राज्यपालों को मुख्यमंत्री की जानकारी और अनुशंसा के बिना व्यक्तिगत तौर पर मंत्रियों को बर्खास्त करने की शक्ति का प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है, तब पूरी संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।

निष्कर्ष:

  • एक विधानमंडल को राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने चाहिये।
  • भारत में संसदीय लोकतंत्र के रूप में संसद के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिये, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य विधानमंडल की भी समान भूमिका और महत्त्व होना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना 
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये  आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3 
(c) केवल 2, 3 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स: 

प्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022)

स्रोत: द हिंदू 

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