सरकार ने फिर से लागू किया तीन तलाक संबंधी अध्यादेश | 14 Jan 2019
चर्चा में क्यों?
सरकार ने तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के प्रचलन पर प्रतिबंध लगाते हुए मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश, 2019 [Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Ordinance, 2019] को फिर से लागू कर दिया है।
- सितंबर 2018 में जारी पूर्व अध्यादेश को परिवर्तित करने संबंधी विधेयक को दिसंबर 2018 में लोकसभा द्वारा मंज़ूरी दी गई थी लेकिन राज्यसभा में यह विधेयक अभी लंबित है। चूँकि विधेयक को संसदीय स्वीकृति नहीं मिल पाई, इसलिये नवीनतम अध्यादेश जारी किया गया।
राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति
- संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति के पास संसद के सत्र में न होने की स्थिति में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
- अध्यादेश की शक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून के बराबर ही होती है और यह तत्काल लागू हो जाता है।
- अध्यादेश के अधिसूचित होने के बाद इसे संसद पुनः बैठक के 6 सप्ताह के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
- संसद या तो इस अध्यादेश को पारित कर सकती है या इसे अस्वीकार कर सकती है अन्यथा 6 सप्ताह की अवधि बीत जाने पर अध्यादेश प्रभावहीन हो जाएगा।
- चूँकि सदन के दो सत्रों के बीच अधिकतम अंतराल 6 महीने का हो सकता है, इसलिये अध्यादेश का अधिकतम 6 महीने और 6 सप्ताह तक लागू रह सकता है।
- इसके अलावा राष्ट्रपति कभी भी अध्यादेश को वापस ले सकता है।
- कूपर मामले (1970) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
- हालाँकि 38वें संविधान संशोधन अधिनियम 1975 के अनुसार, यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति की संतुष्टि अंतिम व मान्य होगी और न्यायिक समीक्षा से परे होगी। लेकिन 44वें संविधान संशोधन द्वारा इस उपबंध को समाप्त कर दिया गया। अतः राष्ट्रपति की संतुष्टि को असद्भाव के आधार पर न्यायिक चुनौती दी जा सकती है।
- डी.सी. बाधवा बनाम बिहार राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति के प्रयोग की आलोचना की तथा कहा कि यह विधानमण्डल की विधि बनाने की शक्ति का कार्यपालिका के द्वारा हनन है। इस शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिये न कि राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु।
- यह माना गया कि अध्यादेश के माध्यम से कानून बनाने की असाधारण शक्ति का इस्तेमाल राज्य विधानमंडल की विधायी शक्ति के विकल्प के रूप में नहीं किया जा सकता है।
- कृष्ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य (2017) मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।