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दीर्घावधिक कृषि विकास को बढ़ावा देने हेतु सरकार के प्रयास

  • 18 Jan 2017
  • 10 min read

सन्दर्भ

वर्ष 2016 में, देश में कृषि क्षेत्र में भी ज़ीजी से डिजिटलीकरण का विकास हुआ है| इस वर्ष न सिर्फ बैंकिंग प्रणाली द्वारा किसानों के लिये कृषि ऋण की सीमा बढ़ाकर 9 लाख करोड़  कर दी गई है, बल्कि विमुद्रीकरण के बाद सरकार ने कैशलैस लेन-देन और प्रत्यक्ष लाभ-अंतरण को प्रोत्साहन देने के लिये कई पहलें भी की हैं|

प्रमुख बिंदु 

  • वर्ष 2016 के अंत में, विमुद्रीकरण के चलते प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने के बावजूद कृषि क्षेत्र समग्र रूप से सरकार की प्राथमिकता सूची में अग्रणी रहा|
  • वर्ष 2016 में सरकार ने कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी, ताकि उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल से प्रभावित किसानों को बचाने के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड, नीम लेपित यूरिया और जैविक कृषि को बढ़ावा; किसानों की आय पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों कम करने के लिये फसल बीमा योजना;  निर्बाध व्यापार के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक मंच (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) तथा सिंचित कृषि के अंतर्गत ज़्यादा-से-ज़्यादा भूमि को लाने के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के रूप में विभिन्न कदम उठाए गए।
  • इसके साथ ही, अन्य संबंधित क्षेत्रों जैसे दलहन, तिलहन, बागवानी, मत्स्य, पशुपालन, दुग्ध, कृषि, वानिकी, मधुमक्खी पालन, कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने ‘किसान सुविधा एप’ (मौसम, बाज़ार की कीमतों, फसल रोगों, इत्यादि की जानकारी हेतु), ‘पूसा कृषि एप’ (बीज की नई किस्मों और नवीनतम तकनीक की जानकारी उपलब्ध कराने हेतु), ‘फसल बीमा एप’ (फसल बीमा से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी ), ‘क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट्स एप’ (फसल काटने संबंधी जानकारी हेतु) का शुभारम्भ किया है| लाखों किसान इन सारे एप्स को डाउनलोड कर लाभान्वित हो रहे हैं।

चिंता के मूल कारण 

  • मानसून की कमी के कारण इस वर्ष देश के कुछ हिस्सों में खरीफ की फसल बर्बाद हो गई, जिससे धान, मोटे अनाज, तिलहन, दलहन और पास के उत्पादन में मामूली गिरावट दर्ज की गई।
  • हालाँकि, रबी में गेहूँ की उपज  वर्ष 2015-16 में 93.5 मिलियन टन रहने का अनुमान लगाया    गया  था,  जो पिछले वर्ष  86.53 मिलियन टन था, साथ ही इसकी प्राप्ति निर्धारित लक्ष्य की तुलना में कम थी|  
  • गौरतलब है कि लगातार दो वर्षों का सूखा भी किसानों के अदम्य साहस को कमज़ोर नहीं कर पाया  जिन्होंने  वर्ष 2015-16 के चौथे अग्रिम फसल  अनुमान को गलत साबित करते हुए 252.22 मिलियन टन  खाद्यान्न का उत्पादन किया जो पिछले वर्ष के उत्पादन (252.02 मिलियन टन) से कहीं ज़्यादा है| 

कृषि विकास के लिये किये जा रहे प्रयास 

  • सरकार ने किसानों की फसलों को सूखा, बाढ़ और ओलों इत्यादि से होने वाले नुकसान से बचाने के  लिये  मुआवज़े के मानदंडों में संशोधन किया है।
  • अब, फसल क्षतिग्रस्त होने पर किसान 33 प्रतिशत की बजाय 50 प्रतिशत मुआवज़े के पात्र होंगे।
  • पिछले दो वर्षों में राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के तहत राज्यों को 24556 करोड़ रुपए खर्च करने के  लिये दिये  गए ।
  • क्षतिग्रस्त फसलों की तस्वीरें अपलोड करने के लिये स्मार्ट फोन और इसके आकलन के लिये ड्रोन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है|
  • इस वर्ष न सिर्फ किसानों के लिये बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि क्षेत्र को ऋण देने की सीमा बढ़ाकर 9 लाख करोड़ की गई है, बल्कि विमुद्रीकरण के बाद सरकार ने भुगतान के लिये कैशलेस लेनदेन और प्रत्यक्ष  लाभ अंतरण को प्रोत्साहित करने हेतु भी कई पहलें की हैं।
  • आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों को नियंत्रित रखने के लिये सरकार ने निजी खाते में शून्य प्रतिशत की  ड्यूटी पर गेहूँ आयात की अनुमति देने का निर्णय लिया है।
  • सरकार ने किसानों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि  सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये ज़्यादा से ज्यादा खाद्यान की खरीद की जाएगी और गेहूँ उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य   (जो सरकार ने फसल वर्ष 2016-17 के लिये 1625 रुपए प्रति क्विंटल तय  किया है)  हेतु तेज़ी  से बाज़ार में हस्तक्षेप भी भी करेगी।  
  • यदि ऐसा होता है तो मंडी संचालन में मिडिल मैन/कमीशन एजेंटों से किसानों  को मुक्ति मिलेगी  जिससे इन्हें अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त करने में सुविधा होगी जो इन किसानों के लिये एक बड़ा कदम होगा|
  • वर्ष 2021 तक किसानों की आय को दोगुना करने की सरकार की प्रतिबद्धता के तहत वित्त मंत्रालय   ने लंबी अवधि के उपायों कीघोषणा की है और कृषि परिव्यय जो  वित्तीय वर्ष  2015-16 के बजट में  15809 करोड़ रुपए था, उसे बढ़ाकर 39884 करोड़ रुपए कर दिया है।
  • अंतरिम बजट में कृषि कल्याण उपकर के ज़रिये  भी इस क्षेत्र को 5000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त  राशि मिलेगी ।
  • इसके अलावा, नाबार्ड के सहयोग से 20000 करोड़ रुपए  का एक अतिरिक्त कोष भी  प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत बनाया गया है  जिसके तहत हर खेत को पानी देने का उद्देश्य  रखा गया है।  इसके तहत वर्ष 2019 तक 76.03 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के तहत लाया जाना प्रस्तावित है।
  • किसानों को मानसून के प्रभाव से बचाने में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने इस वर्ष से 5500  करोड़  रुपए की राशि के प्रावधान के साथ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की है।  इस योजना के तहत राज्य और केन्द्र सरकार मिलकर प्रीमियम की 90 प्रतिशत राशि का वहन करेंगे।  इस खरीफ वर्ष में 21 राज्यों के 366.64 लाख किसानों को इसके दायरे में लाया गया है।
  • किसानों को उनकी उपज के विपणन और लाभकारी मूल्य प्राप्त करना सबसे बड़ा चिंता का विषय रहा है जिसके लिये सरकार ने 10 राज्यों की  250 से अधिक मंडियों को बेहतर कीमत वसूली और व्यापक  पहुँच के लिये एनएएम (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) पोर्टल के तहत एकीकृत किया है।  जिसे  विपणन के क्षेत्र  में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है।
  • दाल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिये सरकार ने आयात और घरेलू आपूर्ति के ज़रिये 2  मिलियन टन का बफर  स्टॉक बनाया है।  इसी समय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत सरकार ने दालों के लिये  ज़्यादा आवंटन किया है  और उत्पादन बढ़ाने के लिये  भी कई उपाय किये हैं।
  • सरकार ने अगले वर्ष 20.75 मिलियन टन दाल के उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले वर्ष  उत्पादन 16.47 मिलियन टन रहा था। इसके साथ ही, गन्ना किसानों के बकाये का भी तेज़ी  से  भुगतान किया जा रहा है।
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