शासन व्यवस्था
सुशासन
- 09 Jun 2022
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प्रिलिम्स के लिये:नागरिक केंद्रित शासन, जन समर्थ पोर्टल। मेन्स के लिये:सुशासन और संबद्ध चुनौतियों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने एकीकृत क्रेडिट पोर्टल 'जन समर्थ' का शुभारंभ करते हुए कहा कि भारत नागरिक-केंद्रित शासन के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है, जो कि सुशासन का मूल पहलू है और यह सरकार-केंद्रित दृष्टिकोण को पीछे छोड़ रहा है।
जन समर्थ पोर्टल:
- यह पोर्टल वित्त मंत्रालय की एक पहल है , जो सरकार की एक दर्जन से अधिक क्रेडिट-लिंक्ड योजनाओं के लिये वन-स्टॉप गेटवे है और लाभार्थियों को सीधे उधारदाताओं से जोड़ती है।
- यह पोर्टल क्रेडिट-लिंक्ड सरकारी योजनाओं के तहत ऋण आवेदन और प्रसंस्करण के लिये एकल मंच के रूप में कार्य करेगा।
- इस पोर्टल से छात्रों, किसानों, व्यापारियों, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के साथ-साथ उद्यमियों के जीवन में सुधार होगा तथा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में भी मदद मिलेगी।
- इस पोर्टल को लॉन्च करने का उद्देश्य कई क्षेत्रों में समावेशी वृद्धि और विकास को प्रोत्साहित करना है।
सुशासन:
- परिचय:
- ‘शासन’ निर्णय लेने की एवं जिसके द्वारा निर्णय लागू किये जाते हैं, की प्रक्रिया है।
- शासन का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट शासन, अंतर्राष्ट्रीय शासन, राष्ट्रीय शासन और स्थानीय शासन।
- सुशासन को ‘विकास के लिये देश के आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग करने के तरीके’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सुशासन की अवधारणा चाणक्य के युग में भी मौज़ूद थी।
- उन्होंने अर्थशास्त्र में इसका विस्तार से उल्लेख किया।
- नागरिक केंद्रित प्रशासन सुशासन की नींव पर आधारित होता है।
- ‘शासन’ निर्णय लेने की एवं जिसके द्वारा निर्णय लागू किये जाते हैं, की प्रक्रिया है।
- सुशासन के 8 सिद्धांत:
- भागीदारी:
- लोगों को वैध संगठनों या प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी राय देने में सक्षम होना चाहिये।
- इसमें पुरुष एवं महिलाएँ, समाज के कमज़ोर वर्ग, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक आदि शामिल हैं।
- भागीदारी का तात्पर्य संघ एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी है।
- कानून का शासन:
- कानूनी ढाँचे को निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना चाहिये, विशेषकर मानवाधिकार कानूनों के परिप्रेक्ष्य में।
- ‘कानून के शासन’ के बिना राजनीति, मत्स्य न्याय (Matsya Nyaya) के सिद्धांत का पालन करेगी जिसका अर्थ है ताकतवर कमज़ोर पर हावी होगा।
- सहमति उन्मुख:
- सर्वसम्मति उन्मुख निर्णय लेने से यह सुनिश्चित होता है कि भले ही प्रत्येक व्यक्ति, जो वह चाहता है उसे प्राप्त न कर पाए परंतु सभी को सामान्य न्यूनतम संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जो किसी अन्य के लिये हानिकारक भी नहीं होगा।
- यह एक समुदाय के सर्वोत्तम हितों पर व्यापक आम सहमति को पूरा करने के लिये अलग-अलग हितों की मध्यस्थता करता है।
- भागीदारी और समावेशिता:
- सुशासन एक समतामूलक समाज को बढ़ावा देता है।
- लोगों को अपना जीवन-स्तर सुधारने या उसको बनाए रखने के अवसर प्राप्त होने चाहिये।
- प्रभावशीलता और दक्षता:
- प्रक्रियाओं और संस्थानों को ऐसे परिणाम देने में सक्षम होना चाहिये जो उनके समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करते हों।
- अधिकतम उत्पादन के लिये समुदाय के संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिये।
- जवाबदेही:
- सुशासन का उद्देश्य लोगों की बेहतरी है और यह सरकार द्वारा लोगों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित किये बगैर नहीं किया सकता है।
- सरकारी संस्थानों, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा सार्वजनिक एवं संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- पारदर्शिता:
- सूचनाओं की प्राप्ति आम जनता के लिये सुलभ होनी चाहिये और यह उनके समझने और निगरानी योग्य होनी चाहिये।
- इसका अर्थ मुक्त मीडिया और उन तक सूचना की समग्र पहुँच भी है।
- जवाबदेही:
- संस्थानों और प्रक्रियाओं के तहत उचित समयावधि में सभी हितधारकों को सेवा प्रदान कि जानी चाहिये।
- भागीदारी:
सुशासन क्यों आवश्यक है?
- शासन में सुधार विकास प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
- यह तर्क दिया जाता है कि प्रशासन में भागीदारी, शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर शासन में व्यवस्थित परिवर्तन द्वारा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है।
- सुशासन के अधिकार को नागरिकों के अधिकारों का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है।
- रिपोर्टों से पता चला है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, स्वच्छता, ग्रामीण रोज़गार आदि के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के परिव्यय में काफी वृद्धि हुई है, जिसके वांछित परिणाम नहीं मिले हैं। इस विरोधाभास के केंद्र में 'पारदर्शी और जवाबदेह शासन' का मुद्दा शामिल है।
- सुशासन के बिना कोई भी विकासात्मक योजना नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं ला सकती है।
- लचर शासन व्यवस्था गरीबी उत्पन्न करती है और उसे बढ़ावा भी देती है। इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि आर्थिक सुधारों का लाभ समान रूप से नहीं मिल रहा है, साथ ही क्षेत्रीय और सामाजिक-सांस्कृतिक असमानताएँ बढ़ी हैं।
सुशासन के लिये चुनौतियाँ:
- सिविल सेवकों की मनोवृत्ति संबंधी समस्याएंँ: द्वितीय ARC रिपोर्ट के अनुसार, सिविल सेवक अनम्य, आत्मकेंद्रित, अंतर्मुखी हो गए हैं।
- जवाबदेही की कमी: बहुत कम ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है। इस संबंध में कोई प्रदर्शन मूल्यांकन संरचना नहीं है।
- लालफीताशाही: नौकरशाही को उन नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है जो सुशासन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, हालाँकि कभी-कभी ये नियम और प्रक्रियाएँ गलत एवं बोझिल होती हैं तथा वे अपने अस्तित्व के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं।
- नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूकता का निम्न स्तर: अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूकता यह सुनिश्चित करेगी कि अधिकारी एवं अन्य नागरिक अपने कर्तव्यों का प्रभावी तथा ईमानदारी से निर्वहन करें।
- कानूनों और नियमों का अप्रभावी कार्यान्वयन: नागरिकों और समाज के कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिये हमारे पास बड़ी संख्या में कानून हैं, लेकिन इन कानूनों का कमज़ोर कार्यान्वयन सरकारी तंत्र में नागरिकों के विश्वास को कम करता है।
सिफारिशें:
- प्रशासन को अधिक नागरिक-केंद्रित बनाने के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) ने निम्नलिखित रणनीतियों, प्रक्रियाओं, उपकरणों और तंत्रों की जाँंच की है।
- शासन को 'नागरिक-केंद्रित' बनाने के लिये पुन: अभियांत्रिकी प्रक्रियाएंँ।
- उपयुक्त आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- सूचना का अधिकार।
- सिटीज़न चार्टर्स।
- सेवाओं का स्वतंत्र मूल्यांकन।
- शिकायत निवारण तंत्र।
- सक्रिय नागरिक भागीदारी - सार्वजनिक-निजी भागीदारी।
संबंधित पहल:
- सूचना का अधिकार।
- ई-गवर्नेंस।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस
- पुलिस सुधार।
- आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम।
- सुशासन सूचकांक।
- एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस।
आगे की राह
- देश में सुशासन बहाल करने के लिये 'अंत्योदय' के गांधीवादी सिद्धांत को प्रधानता देने हेतु हमारी राष्ट्रीय रणनीति में सुधार करने की आवश्यकता है।
- भारत को शासन में ईमानदारी को विकसित करने पर भी ध्यान देना चाहिये, जो शासन को अधिक नैतिक बनाएगा।
- सरकार को सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के आदर्शों पर काम करना जारी रखना चाहिये ताकि समावेशी व सतत् विकास हो सके।
- सभी सार्वजनिक कार्यालयों को लोगों के उनके पास आने की प्रतीक्षा करने के बज़ाय लक्षित लाभार्थियों के लिये योजनाएंँ और सुधार पहल करने की आवश्यकता है।