ट्रांसजेंडर श्रमिकों के लिये कठिन हालात | 04 Sep 2017
चर्चा में क्यों ?
सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय को देश के श्रम कानूनों के ढाँचे में ‘थर्ड जेंडर’ के तौर पर रेखांकित करने का विचार त्याग दिया है, जबकि पहले ऐसा कहा गया था कि ट्रांसजेंडर श्रमिकों को रोज़गार के समान अवसर और कार्य-स्थल पर भेदभाव रहित व्यवहार सुनिश्चित करने हेतु श्रम कानूनों में बदलाव किया जाएगा।
क्यों यह चिंताजनक है?
- दरअसल, वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार ट्रांसजेंडरों के ‘थर्ड जेंडर’ के तौर पर पहचान को मान्यता दी थी और केंद्र तथा राज्यों से कहा था कि उन्हें शिक्षा और रोज़गार के उचित अवसर प्रदान किये जाएँ।
- इस संबंध में भारत सरकार के श्रम और रोज़गार मंत्रालय का कहना है कि उसके द्वारा ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को मान्यता देने संबंधी सुझाव दिये गए थे।
- लेकिन कानून मंत्रालय ने यह कहते हुए संबंधित प्रावधानों को जोड़ने से मना कर दिया कि साधारण खंड अधिनियम, 1897 (General Clauses Act of 1897) के तहत ट्रांसजेंडरों को पहले से ही ‘एक व्यक्ति’ के तौर पर परिभाषित किया जा चुका है, इसलिये उनके लिये एक अलग खंड जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है।
- किसी ट्रांसजेंडर श्रमिक की पहचान सुनिश्चित होना ही उसके अधिकार रक्षण की शर्त नहीं हो सकती। अतः यह ज़रूरी था कि उनके लिये अलग से एक नया अनुभाग जोड़ा जाता।
मुद्दे की पृष्ठभूमि
- विदित हो कि फैक्ट्रियों एवं अन्य कार्य-स्थलों में ट्रांसजेंडर्स को रोज़गार की समानता और भेदभावयुक्त व्यवहार से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से सरकार ने पहले फैसला किया था कि वह मौज़ूदा श्रम कानूनों में परिवर्तन लाएगी।
- दरअसल, फैक्ट्री संशोधन विधेयक 2015 में श्रम मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करने के उद्देश्य से धारा 66(ए) नामक एक नया अनुभाग पेश किया था।
- इस अनुभाग के संबंध में ततकालीन तौर पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था, लेकिन अब कानून मंत्रालय का यह कदम निराशाजनक माना जा रहा है।
निष्कर्ष
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में फैक्ट्री एक्ट, 1948 में प्रस्तावित संशोधनों में सरकार ने ट्रांसजेंडर श्रमिकों के लिये विशेष सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव किया था। दरअसल, तब कहा गया था कि ट्रांसजेंडर श्रमिकों के लिये रोज़गार के समान अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य सरकारें विशेष प्रावधान कर सकती हैं और इसके लिये आवश्यक कानूनी सुधार किये जाएंगे। ऐसे में श्रम कानूनों से संबंधित नवीनतम संशोधन ड्राफ्ट में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये अलग से एक क्लॉज़ या अनुभाग का नहीं जोड़ा जाना, चिंतित करने वाला है।