जीएम सरसों का विरोध | 17 Jul 2017
संदर्भ
भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों की सर्वोच्च नियामक निकाय आनुवंशिक अभियान्त्रिकी आकलन समिति ने (जीईएसी) ने इस वर्ष 11 मई को खेती के लिये जीएम सरसों को मंज़ूरी दे दी थी। परंतु अब जीएम सरसों के संभावित रिलीज़ को लेकर नेशनल अकादमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (National Academy of Agricultural Sciences-NAAS)) के कृषि वैज्ञानिकों के मध्य ही मतभेद उभर गया है।
प्रमुख बिंदु
- एनएएएस के अध्यक्ष ने मई में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सरसों की एक किस्म डीएमएच-11 के बारे में बताया कि इस प्रजाति को कई परीक्षणों के बाद सुरक्षित घोषित किया गया था तथा यह नियामकीय बैठकों में पास हो चुकी थी।
- हालाँकि इसका विरोध करने वाले एनएएएस के एक सदस्य ने कहा कि डीएमएच -11 का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था तथा इसे पारित करने वाली आनुवंशिक अभियान्त्रिकी आकलन समिति में ही हितों का टकराव था।
- उन्होंने आगे कहा कि संकर बीज की किस्मों का उत्पादन करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित तकनीक का प्रयोग एक असफल प्रयोग था, जैसा कि बीटी कपास के अनुभव से सिद्ध हो चुका है।
- आरंभ में बीटी कपास ने भारत के 95 फीसदी क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था परन्तु 2006 के पश्चात् से, मुख्यतः कीट प्रतिरोध के कारण, इसका उत्पादन गिरने लगा। इसके अलावा 2006 से 2013 के बीच इसकी लागत बढ़कर तीन गुनी हो गई थी।
- नेशनल अकादमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज 625 सदस्यों वाले कृषि वैज्ञानिकों का एक निकाय है।
क्या है डीएमएच-11 ?
- डीएमएच-11(DMH-11) सरसों की एक किस्म है जिसका विकास दिल्ली विश्वविद्यालय के एक एनएएएस सदस्य, दीपक पेंटल द्वारा किया गया है।
- इसे वरुण नामक एक पारंपरिक सरसों की प्रजाति को पूर्वी यूरोप की एक प्रजाति के साथ क्रॉस कराकर तैयार किया गया है।
- इससे सरसों की पैदावार में तीस प्रतिशत की वृद्धि होने का दावा किया जा रहा है, जिससे देश में खाद्य तेलों के आयात में कमी आ सकती है।
- यदि इस किस्म को अनुमोदित किया जाता है, तो यह भारतीय क्षेत्रों में विकसित होने वाली पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल होगी।
जीएम फसल किसे कहते हैं?
- जीएम फसल उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया गया रहता है।
- ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि फसल की उत्पादकता में वृद्धि हो सके तथा फसल को कीट प्रतिरोधी अथवा सुखा रोधी बनाया जा सके।
इनका विरोध क्यों होता है?
- इनका विरोध किये जाने के कई कारण हैं। विरोध करने वाले कहते हैं कि जीएम फसलों की लागत अधिक पड़ती है। कुछ इसे असफल प्रयोग मानते हैं तो कुछ इसके पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव को लेकर विरोध करते हैं। वे इसे स्वास्थ्य तथा जैव विविधता के लिये हानिकारक मानते हैं।
- कुछ समूह इसे भारत के अरबों रुपए के कृषि बाज़ार पर विदेशी कंपनियों के कब्जे की साजिश भी मानते हैं।