नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लाइफोसेट

  • 05 Nov 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

ग्लाइफोसेट क्या है?

मेन्स के लिये

कृषि में खरपतवारनाशी के प्रयोग का जैव-पारिस्थितिकी पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्मनी की फार्मा कंपनी बायेर (Bayer) के एक खरपतवारनाशी उत्पाद के खिलाफ अमेरिका में हजारों लोगों ने मुक़दमा दायर किया है तथा तर्क दिया जा रहा है कि यह उत्पाद कैंसर का कारक है।

वर्तमान संदर्भ :

  • कृषि तथा बागवानी कार्यों के लिये अमेरिका में बहुतायत में इसका प्रयोग किया जाता है। वर्ष 2015 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा किये गए एक शोध से यह पता चला है कि ग्लाइफोसेट संभवतः मानव में कैंसर का कारक (Carcinogenic) है जिसकी वजह से वहाँ ग्लाइफोसेट आधारित उत्पादों का विरोध किया जा रहा है।
  • ग्लाइफोसेट के वास्तविक प्रभावों के संबंध में अभी भी निश्चित तौर पर कुछ कहना मुश्किल है, साथ ही WHO ने इसे कैंसर के कारक के रूप में संभावित तौर पर ही माना है। इस वजह से जहाँ फ्राँस, इटली तथा वियतनाम ने खरपतवारनाशी में इसके प्रयोग पर पाबंदी लगाई है वहीं अमेरिका, चीन, ब्राज़ील तथा कनाडा इसका समर्थन करते हैं।
  • भारत में इसका प्रयोग पिछले दो दशकों में काफी बढ़ा है। पहले इसका प्रयोग सिर्फ असम तथा बंगाल के चाय बागानों में किया जाता था लेकिन अब इसका सर्वाधिक प्रयोग महाराष्ट्र में गन्ना, मक्का तथा फलों जैसे-अंगूर, केला, आम व संतरे को उगाने में किया जाता है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) के अनुसार, भारत में ग्लाइफोसेट का प्रयोग विशेषकर राउंडअप, ग्लाईसेल तथा ब्रेक नामक खरपतवारनाशी दवाओं में होता है।

ग्लाइफोसेट क्या है?

  • ग्लाइफोसेट एक खरपतवारनाशी है तथा इसका IUPAC नाम N-(phosphonomethyl) Glycine है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग 1970 में शुरू किया गया था। फसलों तथा बागानों में उगने वाले अवांछित घास-फूस को नष्ट करने के लिये इसका व्यापक पैमाने पर उपयोग होता है।
  • यह एक प्रकार का गैर-चयनात्मक (Non-Selective) खरपतवारनाशी (Herbicide) है जो कई पौधों को नष्ट कर देता है। यह पौधों में एक विशेष प्रकार के प्रोटीन के निर्माण को रोक देता है जोकि पौधों के विकास के लिए सहायक होते हैं।
  • ग्लाइफोसेट मिट्टी को कसकर बांधे रखता है, इस वजह से यह भूजल में भी नहीं मिलता। यह विशेष परिस्थितियों में 6 महीने तक मिट्टी में बना रह सकता है तथा मिट्टी में बैक्टीरिया द्वारा इसका अपघटन होता है।
  • हालाँकि शुद्ध ग्लाइफोसेट जलीय या अन्य वन्यजीवों के लिये हानिकारक नहीं है, लेकिन ग्लाइफोसेट युक्त उत्पाद, उनमें मौजूद अन्य अवयवों के कारण विषाक्त हो सकते हैं। ग्लाइफोसेट अप्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकता है क्योंकि पौधों के नष्ट होने से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • इंसानों के ग्लाइफोसेट के बाहरी संपर्क में आने से उनकी त्वचा या आँखों में जलन हो सकती है। इसको निगलने से मुँह तथा गले में जलन, उल्टी, डायरिया आदि लक्षण हो सकते हैं।

IUPAC (International Union for Pure and Applied Chemistry) रसायन विज्ञान से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय प्राधिकरण है जो आवर्त सारणी में उपस्थित रासायनिक तत्त्वों को नाम प्रदान करने, उनके द्रव्यमान संख्या आदि को निर्धारित करने के लिये एक मानक तय करता हैं।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow