अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ओरल इन्सुलिन पर शोध
- 08 Sep 2017
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चर्चा में क्यों?
बायोकॉन (Biocon) और जे.डी.आर.एफ. (Juvenile Diabetes Research Foundation-JDRF) ने टाइप-1 डायबिटीज़ से प्रभावित लोगों में मौखिक इंसुलिन दवा के उम्मीदवार इंसुलिन ट्रेगोपिल (Insulin Tregopil) के वैश्विक अध्ययन के लिये एक साझेदारी की घोषणा की है।
ओरल इन्सुलिन क्या है ?
- इंसुलिन ट्रेगोपिल, बायोकॉन द्वारा विकसित एक मौखिक इंसुलिन अणु है।
- यह वैश्विक स्तर पर मौखिक इंसुलिन तैयार करने से संबंधित कार्यक्रमों में से एक है।
- यह इंसुलिन दुष्प्रभाव को कम कर और अधिक अनुपालन के साथ पश्च-ग्रस्त ग्लूकोज नियंत्रण में सुधार कर सकता है। इस प्रकार यह टाइप-1 डायबिटीज़ के प्रबंधन में सहायता प्रदान कर सकता है।
प्रमुख बिंदु
- एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2014 में विश्व स्तर पर 422 मिलियन वयस्क मधुमेह से पीड़ित थे।
- टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह के लिये अलग-अलग वैश्विक अनुमान मौजूद नहीं हैं, परंतु यह अनुमान है कि 1.25 मिलियन अमेरिकी टाइप-1 डायबिटीज़ के साथ जीवित हैं।
- अमेरिका में 2050 तक पाँच लाख लोगों में टाइप-1 डायबिटीज़ होने की उम्मीद है।
बायोकॉन
- बायोकॉन भारतीय दवा निर्माता कंपनी है। किरण मजूमदार-शॉ बायोकॉन की सीएमडी हैं।
- बायोकॉन ने अमेरिका में किये गए चरण-1 के अध्ययन के बाद इंसुलिन टेग्रोपिल के लिये 2016 में सकारात्मक नैदानिक डेटा की घोषणा की थी, जिसने भोजन के बाद ग्लिसेमिक नियंत्रण में दवा की महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
- इनमें से एक अध्ययन ने इंसुलिन टेग्रोपिल की तेज़ी से क्रिया का प्रदर्शन किया है, जिसमें अन्य भेदभावपूर्ण इंसुलिन की तुलना में विशिष्ट गुण हैं।
- अतः प्राप्त सकारात्मक डेटा सेटों के आधार पर बायोकॉन ने इसके और नैदानिक परीक्षणों के माध्यम से इस शोध को आगे ले जाने का निर्णय लिया है तथा टाइप 2 डायबिटीज़ में इंसुलिन टेग्रोपिल के साथ चरण II और III के अध्ययन के लिये भारतीय नियामक के समक्ष एक क्लीनिकल ट्रायल आवेदन भी दायर किया है।
- जे.डी.आर.एफ. एक प्रमुख चैरिटेबल संस्था है जो दुनिया भर में टाइप-1 डायबिटीज़ के अनुसंधान में फंडिंग करता है। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है। इसकी स्थापना 1970 में हुई थी।
डायबिटीज़
- डायबिटीज़ दो प्रकार होती है, टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़।
- टाइप-1 डायबिटीज़ में इंसुलिन बनना कम हो जाता है या फिर इंसुलिन बनना बंद हो जाता है और यह काफी हद तक नियंत्रण हो सकता है।
- इसमें शरीर में शर्करा की मात्रा उच्च हो जाती है।
- इसमें अग्नाशय की बीटा कोशिकाएँ पूरी तरह से नष्ट हों जाती हैं।
- टाइप-2 डायबिटीज़ से ग्रस्त लोगों में रक्त शुगर का स्तर बहुत बढ़ जाता है जिसे नियंत्रित करना बहुत कठिन होता है।